सु्प्रीम कोर्ट
नई दिल्ली:
दागी सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों को जल्द निपटाने के लिए विशेष अदालतों का गठन होगा. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर बताया कि इस वक्त 1581 सांसद व विधायकों पर करीब 13500 आपराधिक मामले लंबित है और इन मामलों के निपटारे के लिए एक साल के लिए 12 विशेष अदालतों का गठन होगा. इसके लिए 7.80 करोड रुपये का खर्च आएगा. वित्त मंत्रालय ने 8 दिसंबर को इसके लिए मंजूरी भी दे दी है.
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केंद्र ने दागी सांसदों व विधायकों की जानकारी व आंकड़ों के लिए सुप्रीम कोर्ट से और वक्त मांगा है. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने दागी सांसद और विधायकों के खिलाफ लंबित मुकदमों को एक वर्ष के भीतर निपटाने को देशहित में बताते हुए केंद्र सरकार को विशेष अदालतों का गठन करने के लिए कहा था.
वहीं, केंद्र सरकार ने कहा था कि वह आपराधिक मामलों को दोषी ठहराए जाने वाले सांसद व विधायकों पर आजीवन चुनाव लड़ने के प्रतिबंध के खिलाफ है. हालांकि, सरकार के रुख से ठीक उलट चुनाव आयोग ऐसे लोगों पर आजीवन चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाने के पक्ष में है.
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सुप्रीम कोर्ट ने फास्ट ट्रैक कोर्ट की तर्ज पर इन विशेष अदालतों का गठन करने के लिए कहा था. केंद्र सरकार को छह हफ्ते के भीतर स्कीम तैयार कर यह बताने के लिए भा कहा गया था कि इसके लिए गठन को कितने फंड की दरकार है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्यायिक अधिकारी समेत अन्य स्टाफ की नियुक्तियों पर बाद में विचार किया जाएगा. उस वक्त राज्यों को भी इसमें शामिल किया जाएगा.
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केंद्र ने दागी सांसदों व विधायकों की जानकारी व आंकड़ों के लिए सुप्रीम कोर्ट से और वक्त मांगा है. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने दागी सांसद और विधायकों के खिलाफ लंबित मुकदमों को एक वर्ष के भीतर निपटाने को देशहित में बताते हुए केंद्र सरकार को विशेष अदालतों का गठन करने के लिए कहा था.
वहीं, केंद्र सरकार ने कहा था कि वह आपराधिक मामलों को दोषी ठहराए जाने वाले सांसद व विधायकों पर आजीवन चुनाव लड़ने के प्रतिबंध के खिलाफ है. हालांकि, सरकार के रुख से ठीक उलट चुनाव आयोग ऐसे लोगों पर आजीवन चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाने के पक्ष में है.
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सुप्रीम कोर्ट ने फास्ट ट्रैक कोर्ट की तर्ज पर इन विशेष अदालतों का गठन करने के लिए कहा था. केंद्र सरकार को छह हफ्ते के भीतर स्कीम तैयार कर यह बताने के लिए भा कहा गया था कि इसके लिए गठन को कितने फंड की दरकार है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्यायिक अधिकारी समेत अन्य स्टाफ की नियुक्तियों पर बाद में विचार किया जाएगा. उस वक्त राज्यों को भी इसमें शामिल किया जाएगा.
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