महाराष्ट्र में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्रों की छात्रवृत्ति के गबन के मामले में महाराष्ट्र सरकार ने कड़ी कार्रवाई का भरोसा दिया है। मामले में गढ़चिरौली की लोकल क्राइम ब्रांच ने अभी तक 9 शिक्षण संस्थाओं के खिलाफ मामला दर्ज कर 5 लोगों को गिरफ्तार किया है। लेकिन हज़ारों करोड़ रुपये के इस घोटाले के तार राज्य के कई ज़िलों में फैले हैं।
महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े ने इस मामले में कहा जो भी इस घोटाले में शामिल है, जिसकी भी मिलीभगत है उसकी तहकीकात क्राइम ब्रांच करेगा, जो भी दोषी होगा, चाहे वह कितना भी बड़ा नेता हो, नौकरशाह हो उसके ख़िलाफ सरकार कार्रवाई करेगी।
इस ख़बर की तह में जाने पर एक और बात सामने आई, जिस संस्था राष्ट्र भाषा प्रचार समिति ज्ञानमंडल ने इन सेंटरों को मान्यता दी थी, उसे भी धता बताकर इन सेंटर मालिकों ने 2013-14 में भी दाखिले लिए, जबकि संस्था ने उन्हें ऐसा करने से मना किया था वजह थी कि यूजीसी से देरी से मिली परमिशन।
दरअसल अनुसूचित-जाति, जनजाति के बच्चों की तकनीकी पढ़ाई के लिए सरकार वजीफा देती है, जिसकी आड़ में महाराष्ट्र के कई ज़िलों में हजारों करोड़ के फर्ज़ीवाड़े का खेल शुरू हुआ, बच्चों के नाम पर फर्जी एडमिशन लिए गए आरोप है कि वजीफे की रकम इन संस्था के संचालकों ने हड़प ली।
मामले की जांच में जुटे गढ़चिरौली लोकल क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर रविंद्र पाटिल ने एनडीटीवी इंडिया को बताया कि गढ़चिरौली में जो संस्थापक हैं, उन्होंने फर्जी फॉर्म इकट्ठा किए, एजेंट बनाए और घर पर जाकर खेती में काम करने वाले, मज़दूरी करने वाले ऐसे बच्चों के फॉर्म इकठ्ठा किए, उनका ऑनलाइन फॉर्म खुद उन्होंने भरा, साइन किए और फॉर्म जमा किए, 300 बच्चों का फॉर्म भर कर उनका पैसा कॉलेज के एकाउंट से ले लिया। यही नहीं तय संख्या से ज्यादा 300 और बच्चे जो अनुसूचित जाति, डीटीएनटी और ओबीसी वर्गों से आते थे, उनके लिए भी समाज कल्याण विभाग से स्कॉलरशिप ली।
हमने जब जानना चाहा तो पता लगा कि यूजीसी से मान्यता प्राप्त संस्था से तकनीकी शिक्षा लेने वाले हर एससी-एसटी छात्र पर महाराष्ट्र सरकार 48000 रुपये सालाना खर्चती है, जिसमें 2300 रुपये छात्र के खाते में जमा होते थे, 9000 रुपये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ज्ञानमंडल के खाते में, जबकि बाकी के तक़रीबन 35,000 रुपये संस्था के खाते में। लेकिन जब कुछ चेक वापस आने लगे, तो प्रशासन को शक हुआ और मामले की जांच शुरू हुई तो हज़ारों करोड़ के इस घोटाले की परतें खुलने लगीं।
इस योजना के तहत वर्धा की एक संस्था ने पुणे की एक संस्था के साथ मिलकर राष्ट्र भाषा प्रचार समिति ज्ञानमंडल की स्थापना की थी। साल 2010 में ज्ञानमंडल ने पूरे राज्य में 262 स्टडी सेंटर को मान्यता दी, जो 2-3 कमरों में चलते थे, ज्यादातर सेंटरों में प्रिंसिपल से लेकर चपरासी तक एक ही शख्स था।
पुलिस ने अभी तक 9 संस्थाओं के फर्जीवाड़े को उजागर करके कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है, लेकिन उसे शक है कि सभी 262 संस्थाएं फर्जी हो सकती हैं और इन्हें चलाने में सरकारी तंत्र में बैठे बड़े सफेदपोश शामिल हो सकते हैं।
जांच में एक और बात सामने आई है कि इस योजना के मद में केंद्र सरकार ने भी राशि खर्च है कि क्योंकि कुछ श्रेणियों के लिए पैसा केंद्र से आता है, राज्य सरकार सिर्फ सुपरवाइज़िंग अथॉरिटी है।
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