अखिलेश अपनी क्लीन इमेज और विकासपरक राजनीति के दम पर चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं
नई दिल्ली:
यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अब तक का सबसे बड़ा सियासी दांव खेलते हुए रविवार को सपा में तख्तापलट कर पार्टी की बागडोर अपने हाथों में ले ली है. इसे अखिलेश (निकनेम टीपू) का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है. 2012 में राज्य की सत्ता में आने के बाद से ही उन पर आरोप लगते रहे कि वह अपने पिता-चाचा की छाया से निकल नहीं पा रहे और उनके दबाव में काम कर रहे हैं लेकिन अंतिम रूप से माना जा रहा है कि पार्टी की कमान संभालने के साथ ही वह इस छाया से बाहर निकल आए हैं.
अखिलेश की इस बड़ी छलांग के पीछे माना जा रहा है कि उनकी स्वच्छ छवि और विकासपरक राजनीति ने उनको मुलायम के बाद सपा में नई पीढ़ी का सबसे लोकप्रिय नेता बनाया. पर्दे के पीछे उनकी इस छवि को गढ़ने और रचने में उनके कई खास करीबियों का सहयोग माना जाता है.
दरअसल 2014 के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी की सफलता के बाद अखिलेश की इस यूथ ब्रिगेड ने समझ लिया था कि देश में विकास के एजेंडे पर भी राजनीति की जा सकती है. इसलिए उसके बाद से अखिलेश की स्वच्छ और ईमानदार छवि को प्रमुखता से पेश किया जाना शुरू हुआ एवं खुद मुख्यमंत्री ने विकास के एजेंडे पर ही ध्यान फोकस किया.
इसके साथ ही अब चुनाव से ऐन पहले अखिलेश यादव की चुनावी रणनीति पर काम के लिए अमेरिकी रणनीतिकार और हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में पब्लिक पॉलिसी के प्रोफेसर स्टीव जार्डिंग की सेवाएं भी ली जा रही हैं. इन सबके मद्देनजर मौजूदा परिस्थितियों में सपा में मचे घमासान के बीच आइए जानते हैं कि आखिर अखिलेश टीम के वो कौन से सदस्य हैं जिन पर मुख्यमंत्री भरोसा करते हैं. खास बात यह है कि इनमें से ज्यादातर चेहरे 2012 के चुनाव से पहले अखिलेश की रथ यात्रा के दौरान से उनके साथी हैं :
अभिषेक मिश्र
अखिलेश यादव के बेहद करीबी माने जाते हैं. राजनीति में आने से पहले आईआईएम अहमदाबाद में पढ़ाते थे. पिछले चुनाव में अखिलेश ने उनको लखनऊ नार्थ सीट से पार्टी के टिकट पर लड़ाया और पहली बार में ही न सिर्फ विधायक बने बल्कि अखिलेश की कैबिनेट में स्थान हासिल करने में सफल रहे. अभिषेक को यूपी में निवेशकों को लाने और उनको यहां निवेश के लिए प्रेरित करने का श्रेय दिया जाता है. अखिलेश की छवि को बुनने में भी अहम भूमिका निभाई. इसलिए उनके सियासी और सरकारी दोनों ही मोर्चों पर प्रमुख रणनीतिकारों में शुमार हैं.
उदयवीर सिंह
अखिलेश और उदयवीर कॉलेज के जमाने से ही एक-दूसरे को जानते हैं. उदयवीर ने भी धौलपुर के उसी मिलिट्री स्कूल से पढ़ाई की है जिससे अखिलेश पढ़े हैं. वहां पर अखिलेश उनसे दो साल सीनियर थे. यूपी में टूंडला से ताल्लुक रखते हैं. जेएनयू से एमए और एमफिल कर चुके हैं.
वह पहली बार सियासी रूप से सुर्खियों में तब आए जब अखिलेश और शिवपाल के पहले राउंड के संघर्ष में उन्होंने सपा के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए अखिलेश के समर्थन में चिट्ठी लिखी. हालांकि उसके लिए उनको पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखाया गया लेकिन उन्होंने अपनी निष्ठा नहीं बदली.
राजेंद्र चौधरी
अक्सर सार्वजनिक मंचों पर अखिलेश यादव के साथ साए की तरह साथ देखे जाते हैं. गाजियाबाद से ताल्लुक रखते हैं और अखिलेश के प्रमुख राजनीतिक सलाहकार एवं सरकार के प्रवक्ता भी हैं. पहले सपा के प्रवक्ता भी थे लेकिन चाचा-भतीजे की लड़ाई में उन्होंने अखिलेश का पक्ष लिया. इसलिए शिवपाल ने पार्टी के प्रवक्ता से उनकी छुट्टी कर दी थी. लेकिन माना जाता है कि मुलायम सिंह के भी एक समय में बेहद करीबी थे इसलिए संभवतया उन पर बहुत सख्त कार्रवाई नहीं की गई थी.
सुनील यादव 'साजन'
पिछले चुनाव से पहले अखिलेश की रथ यात्रा के दौरान उनके करीबी बने. उस दौर में बसपा के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस के डंडे खाने वाले सपा नेताओं में इनका नाम भी गिना जाता है. फिलहाल अखिलेश की युवा ब्रिगेड के अहम सदस्य हैं. उन्नाव से ताल्लुक रखते हैं. अखिलेश ने एमएलसी बनाने के अलावा राज्यमंत्री का दर्जा भी दिया.
आनंद भदौरिया
लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान छात्र राजनीति से सियासी सफर शुरू किया. पिछली बसपा सरकार के दौरान अखिलेश के साथ संघर्ष किया. नतीजतन सपा की लोहिया वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए. अखिलेश ने सत्ता में आने के बाद एमएलसी बनाया.
अखिलेश की इस बड़ी छलांग के पीछे माना जा रहा है कि उनकी स्वच्छ छवि और विकासपरक राजनीति ने उनको मुलायम के बाद सपा में नई पीढ़ी का सबसे लोकप्रिय नेता बनाया. पर्दे के पीछे उनकी इस छवि को गढ़ने और रचने में उनके कई खास करीबियों का सहयोग माना जाता है.
दरअसल 2014 के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी की सफलता के बाद अखिलेश की इस यूथ ब्रिगेड ने समझ लिया था कि देश में विकास के एजेंडे पर भी राजनीति की जा सकती है. इसलिए उसके बाद से अखिलेश की स्वच्छ और ईमानदार छवि को प्रमुखता से पेश किया जाना शुरू हुआ एवं खुद मुख्यमंत्री ने विकास के एजेंडे पर ही ध्यान फोकस किया.
इसके साथ ही अब चुनाव से ऐन पहले अखिलेश यादव की चुनावी रणनीति पर काम के लिए अमेरिकी रणनीतिकार और हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में पब्लिक पॉलिसी के प्रोफेसर स्टीव जार्डिंग की सेवाएं भी ली जा रही हैं. इन सबके मद्देनजर मौजूदा परिस्थितियों में सपा में मचे घमासान के बीच आइए जानते हैं कि आखिर अखिलेश टीम के वो कौन से सदस्य हैं जिन पर मुख्यमंत्री भरोसा करते हैं. खास बात यह है कि इनमें से ज्यादातर चेहरे 2012 के चुनाव से पहले अखिलेश की रथ यात्रा के दौरान से उनके साथी हैं :
अभिषेक मिश्र
अखिलेश यादव के बेहद करीबी माने जाते हैं. राजनीति में आने से पहले आईआईएम अहमदाबाद में पढ़ाते थे. पिछले चुनाव में अखिलेश ने उनको लखनऊ नार्थ सीट से पार्टी के टिकट पर लड़ाया और पहली बार में ही न सिर्फ विधायक बने बल्कि अखिलेश की कैबिनेट में स्थान हासिल करने में सफल रहे. अभिषेक को यूपी में निवेशकों को लाने और उनको यहां निवेश के लिए प्रेरित करने का श्रेय दिया जाता है. अखिलेश की छवि को बुनने में भी अहम भूमिका निभाई. इसलिए उनके सियासी और सरकारी दोनों ही मोर्चों पर प्रमुख रणनीतिकारों में शुमार हैं.
उदयवीर सिंह
अखिलेश और उदयवीर कॉलेज के जमाने से ही एक-दूसरे को जानते हैं. उदयवीर ने भी धौलपुर के उसी मिलिट्री स्कूल से पढ़ाई की है जिससे अखिलेश पढ़े हैं. वहां पर अखिलेश उनसे दो साल सीनियर थे. यूपी में टूंडला से ताल्लुक रखते हैं. जेएनयू से एमए और एमफिल कर चुके हैं.
वह पहली बार सियासी रूप से सुर्खियों में तब आए जब अखिलेश और शिवपाल के पहले राउंड के संघर्ष में उन्होंने सपा के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए अखिलेश के समर्थन में चिट्ठी लिखी. हालांकि उसके लिए उनको पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखाया गया लेकिन उन्होंने अपनी निष्ठा नहीं बदली.
राजेंद्र चौधरी
अक्सर सार्वजनिक मंचों पर अखिलेश यादव के साथ साए की तरह साथ देखे जाते हैं. गाजियाबाद से ताल्लुक रखते हैं और अखिलेश के प्रमुख राजनीतिक सलाहकार एवं सरकार के प्रवक्ता भी हैं. पहले सपा के प्रवक्ता भी थे लेकिन चाचा-भतीजे की लड़ाई में उन्होंने अखिलेश का पक्ष लिया. इसलिए शिवपाल ने पार्टी के प्रवक्ता से उनकी छुट्टी कर दी थी. लेकिन माना जाता है कि मुलायम सिंह के भी एक समय में बेहद करीबी थे इसलिए संभवतया उन पर बहुत सख्त कार्रवाई नहीं की गई थी.
सुनील यादव 'साजन'
पिछले चुनाव से पहले अखिलेश की रथ यात्रा के दौरान उनके करीबी बने. उस दौर में बसपा के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस के डंडे खाने वाले सपा नेताओं में इनका नाम भी गिना जाता है. फिलहाल अखिलेश की युवा ब्रिगेड के अहम सदस्य हैं. उन्नाव से ताल्लुक रखते हैं. अखिलेश ने एमएलसी बनाने के अलावा राज्यमंत्री का दर्जा भी दिया.
आनंद भदौरिया
लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान छात्र राजनीति से सियासी सफर शुरू किया. पिछली बसपा सरकार के दौरान अखिलेश के साथ संघर्ष किया. नतीजतन सपा की लोहिया वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए. अखिलेश ने सत्ता में आने के बाद एमएलसी बनाया.
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