पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कोयला ब्लॉक आवंटन मामले में अदालत ने सम्मन जारी किया है। अदालत का मानना है कि मनमोहन सिंह ओडिशा के तालावीरा 2 और 3 कोल ब्लॉक में हिंडालको को 15 फीसदी की हिस्सेदारी देने में अपनी जिम्मेवारी से बच नहीं सकते क्योंकि प्रधानमंत्री होने के साथ-साथ वो उस वक्त कोयला मंत्री भी थे।
मगर इस वक्त कांग्रेस पार्टी ने मनमोहन सिंह का पूरा वचाव किया है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो सोनिया गांधी मनमोहन सिंह का बचाव अंतिम समय तक करेंगी क्योंकि वे नरसिम्हा राव नहीं हैं। एनडीए सरकार के दो वरिष्ठ मंत्रियों ने भी कहा कि उनका मानना है कि मनमोहन सिंह इमानदार हैं और उनको मनमोहन सिंह से सहानुभूति है।
कांग्रेस का मानना है कि मनमोहन सिंह की इमानदारी, निष्पक्षता और पारदर्शिता जगजाहिर है, यह पूरा देश जानता है। कांग्रेस का कहना है कि इस मामले की जांच सीबीआई कर चुकी है और जांच को निष्पक्ष और पारदर्शी पाया गया है। मनमोहन सिंह भी जांच के पक्ष में हमेशा से रहा है। कांग्रेस का कहना है कि जब मनमोहन सिंह सरकार में कोल ब्लॉक की नीलामी की प्रकि्या शुरू की गई तो राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड जहां बीजेपी की सरकार थी ने इसका विरोध किया।
यही नहीं ओडिशा और बंगाल की सरकार ने भी चिट्ठी लिख कर अपना विरोध जताया। लेकिन सबको मनाया गया और सरकार द्वारा फरवरी 2012 में कोल आवंटन कानून में बदलाव का बिल लाया गया। कांग्रेस मनमोहन सिंह मामले में एकजुट है और विपक्ष भी मनमोहन सिंह पर हमले नहीं कर रहा बल्कि कांग्रेस पर हमले कर रहा है।
सरकार के साथ दिक्कत ये है कि मनमोहन सिंह के साथ बड़े उद्योगपति कुमारमंगलम बिड़ला को भी अदालत ने सम्मन भेजा है। ये सरकार कभी नहीं चाहेगी कि यूपीए की तरह उनके राज में भी उद्योगपति किसी मामले में जेल जाएं, इससे सरकार की छवि पर असर पड़ेगा। वित्त मंत्री के लिए यह दुविधा का विषय होगा।
मगर सबसे बड़ा सवाल ये है कि कांग्रेस जिसने नरसिम्हा राव को जेएमएम मामले में अकेला छोड़ दिया था और उन्हें ये पूरा मामला खुद ही लड़ना पड़ा था। नरसिम्हा राव को खूब अदालत के चक्कर लगाने पड़े थे और उस वक्त कांग्रेस में गिने चुने नेता ही राव के संर्पक में थे। इसकी वजह नरसिम्हा राव और 10 जनपथ के बीच बढ़ती दूरी थी। कहा जाता है कि दोनों एक दूसरे को पसंद नहीं करते थे। सोनिया गांधी सक्रिय राजनीति में थी नहीं और उनको जो कुछ भी बताया जाता था उससे राव और सोनिया गांधी के बीच खाई बढ़ती ही गई। फिर सीताराम केसरी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया और केसरी को हटा कर सोनिया गांधी को।
अब हालात अलग हैं। सोनिया गांधी ने पिछले दस सालों में मनमोहन सिंह का हमेशा बचाव किया। 2009 में पहली बार संवाददाता सम्मेलन में मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया, यह कांग्रेस परंपरा के खिलाफ था। जब 2002 में जम्मू-कश्मीर में मुफ्ती के साथ सरकार बनानी थी तो मनमोहन सिंह को ही श्रीनगर भेजा गया था। जब एनसीपी को यूपीए में शामिल किया जा रहा था तब भी मनमोहन सिंह को ही शरद पवार के पास सानिया ने भेजा था और खुद बाद में गई थीं।
यानी सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह की ईमानदारी और सहज स्वभाव का खूब उपयोग किया पार्टी पर अपनी धाक जमाने के लिेए। यही वजह है कि सोनिया गांधी मनमोहन सिंह को छोड़ नहीं सकती मगर जैसा कि एक कांग्रेस के नेता ने कहा मैडम का तो ठीक है मगर राहुल का कुछ नहीं कह सकते।
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