उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कानून के तहत अनिवार्य मृत्युदंड के प्रावधान को चुनौती देने वाली एक याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा. न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ ने अधिवक्ता रिषि मल्होत्रा की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया.
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याचिकाकर्ता ने अपनी अर्जी में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के अनिवार्य मृत्युदंड प्रावधान को यह कहते हुए खारिज करने की मांग की है कि अदालत ने अपनी संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए मृत्युदंड के अनिवार्य अधिरोपण को कई बार निरस्त किया है.
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अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3 (2) एक ऐसे मामले में अनिवार्य मौत की सजा का प्रावधान करता है जिसमें अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी निर्दोष सदस्य को संबंधित आरोपी द्वारा मुहैया कराये गए झूठे और गढ़े हुए सबूत के आधार पर दोषी ठहराने के बाद फांसी की सजा हो जाती है.
(इनपुट भाषा से)
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