नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
‘बीफ’पर विवादों के बीच मूडीज ऐनेलिटिक्स ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगाह किया कि यदि वे अपनी पार्टी के सदस्यों पर लगाम नहीं लगाते तो देश घरेलू और वैश्विक स्तर पर विश्वसनीयता खो देंगे।
मूडीज ऐनेलिटिक्स ने अपनी रपट ‘भारत का परिदृश्य : संभावनाओं की तलाश’ में कहा कि देश वृद्धि की अपेक्षित संभावनाओं को हासिल करे, इसके लिए उसे उन सुधार कार्यक्रमों पर अमल करना होगा, जिसका उसने वायदा किया है। रपट में कहा गया, 'निस्संदेह, अनेक राजनीतिक नतीजे सफलता का दायरा तय करेंगे।’
गौरतलब है कि सत्ताधारी दल भाजपा का राज्यसभा में बहुमत नहीं है और विपक्ष के हंगामे के कारण कई महत्वपूर्ण सुधारों संबंधी विधेयक इसी कारण संसद में अटके पड़े हैं।
रपट के मुताबिक, ‘लेकिन हाल में सरकार ने भी स्वयं अपने लिए कोई अच्छा काम नहीं किया, क्योंकि भाजपा के कई सदस्य विवादित टिप्पणी करते रहे। मोदी ने आमतौर पर राष्ट्रवादी तत्वों की टिप्पणियों से अपने आप को दूर रखा है।
मूडीज ने कहा, हिंसा बढ़ने से सरकार को राज्यसभा में और कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा और ऐसे में वहां बहस आर्थिक नीति से भटक जाएगी। मोदी को अपने पार्टी सदस्यों पर लगाम रखना चाहिए नहीं तो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता खत्म होने का जोखिम है।
मूडीज ने अनुमान जताया है कि सितंबर की तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 7.3 प्रतिशत रहेगी जबकि पूरे वित्त वर्ष के दौरान 7.6 प्रतिशत रहेगी।
साख निर्धारण एजेंसी ने कहा, प्रमुख आर्थिक सुधार से सकल घरेलू उत्पाद के लिए बड़ी संभावनाएं पैदा हो सकती हैं, क्योंकि इससे भारत की उत्पादन क्षमता सुधरेगी। इनमें भूमि अधिग्रहण विधेयक, वस्तु एवं सेवा कर विधेयक और संशोधित श्रम कानून शामिल हैं। इनके 2015 में संसद में पारित होने की संभावना नहीं है, लेकिन 2016 में इनके सफल होने की गुंजाइश है। ब्याज दर के मामले में एजेंसी ने कहा कि कम ब्याज दर से अल्पकालिक स्तर पर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन दीर्घकालिक स्तर पर संभावित वृद्धि के स्तर पर पहुंचने के लिए सुधार कार्यक्रम जरूरी हैं।
रिजर्व बैंक ने इस साल सुधार की शुरुआत की और रेपो दर में 1.25 प्रतिशत की कटौती की। मूडीज ने कहा कि वैश्विक वृद्धि में नरमी भारतीय निर्यातकों के लिए बड़ी बाधा साबित होगी और 2015 में निर्यात में हुई गिरावट 2016 में भी जारी रहेगी।
रपट में कहा, वैश्विक वृद्धि और नरमी आती है तो भारत में चालू खाते के घाटे में हाल में आया संतुलन नए दबाव में आ सकता है। अब तक कच्चे तेल में नरमी से व्यापार संतुलन सुधरा है, लेकिन कीमत बढ़ने से यदि आपूर्ति का पुनर्संतुलन होता है तो इससे व्यापार संतुलन गड़बड़ा सकता है।
मूडीज ने कहा, आरबीआई भारत के बैंकिंग और वित्तीय ढांचे में सुधार पर लगातार विचार कर रहा है। हमारा मामना है कि भारत में पूर्ण पूंजी खाता उदारीकरण अनिवार्य है। एजेंसी ने कहा, यह अगले दो से चार साल में हो सकता है। एक मुक्त पूंजी खाता भारतीय कंपनियों विदेशी बाजारों में बड़ी पहुंच प्रदान करेगा, ऋण लागत घटेगी और ऋण वृद्धि में मदद करेगा, जो निवेश बढ़ाने का मुख्य अवयव है।
मूडीज ऐनेलिटिक्स ने अपनी रपट ‘भारत का परिदृश्य : संभावनाओं की तलाश’ में कहा कि देश वृद्धि की अपेक्षित संभावनाओं को हासिल करे, इसके लिए उसे उन सुधार कार्यक्रमों पर अमल करना होगा, जिसका उसने वायदा किया है। रपट में कहा गया, 'निस्संदेह, अनेक राजनीतिक नतीजे सफलता का दायरा तय करेंगे।’
गौरतलब है कि सत्ताधारी दल भाजपा का राज्यसभा में बहुमत नहीं है और विपक्ष के हंगामे के कारण कई महत्वपूर्ण सुधारों संबंधी विधेयक इसी कारण संसद में अटके पड़े हैं।
रपट के मुताबिक, ‘लेकिन हाल में सरकार ने भी स्वयं अपने लिए कोई अच्छा काम नहीं किया, क्योंकि भाजपा के कई सदस्य विवादित टिप्पणी करते रहे। मोदी ने आमतौर पर राष्ट्रवादी तत्वों की टिप्पणियों से अपने आप को दूर रखा है।
मूडीज ने कहा, हिंसा बढ़ने से सरकार को राज्यसभा में और कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा और ऐसे में वहां बहस आर्थिक नीति से भटक जाएगी। मोदी को अपने पार्टी सदस्यों पर लगाम रखना चाहिए नहीं तो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता खत्म होने का जोखिम है।
मूडीज ने अनुमान जताया है कि सितंबर की तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 7.3 प्रतिशत रहेगी जबकि पूरे वित्त वर्ष के दौरान 7.6 प्रतिशत रहेगी।
साख निर्धारण एजेंसी ने कहा, प्रमुख आर्थिक सुधार से सकल घरेलू उत्पाद के लिए बड़ी संभावनाएं पैदा हो सकती हैं, क्योंकि इससे भारत की उत्पादन क्षमता सुधरेगी। इनमें भूमि अधिग्रहण विधेयक, वस्तु एवं सेवा कर विधेयक और संशोधित श्रम कानून शामिल हैं। इनके 2015 में संसद में पारित होने की संभावना नहीं है, लेकिन 2016 में इनके सफल होने की गुंजाइश है। ब्याज दर के मामले में एजेंसी ने कहा कि कम ब्याज दर से अल्पकालिक स्तर पर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन दीर्घकालिक स्तर पर संभावित वृद्धि के स्तर पर पहुंचने के लिए सुधार कार्यक्रम जरूरी हैं।
रिजर्व बैंक ने इस साल सुधार की शुरुआत की और रेपो दर में 1.25 प्रतिशत की कटौती की। मूडीज ने कहा कि वैश्विक वृद्धि में नरमी भारतीय निर्यातकों के लिए बड़ी बाधा साबित होगी और 2015 में निर्यात में हुई गिरावट 2016 में भी जारी रहेगी।
रपट में कहा, वैश्विक वृद्धि और नरमी आती है तो भारत में चालू खाते के घाटे में हाल में आया संतुलन नए दबाव में आ सकता है। अब तक कच्चे तेल में नरमी से व्यापार संतुलन सुधरा है, लेकिन कीमत बढ़ने से यदि आपूर्ति का पुनर्संतुलन होता है तो इससे व्यापार संतुलन गड़बड़ा सकता है।
मूडीज ने कहा, आरबीआई भारत के बैंकिंग और वित्तीय ढांचे में सुधार पर लगातार विचार कर रहा है। हमारा मामना है कि भारत में पूर्ण पूंजी खाता उदारीकरण अनिवार्य है। एजेंसी ने कहा, यह अगले दो से चार साल में हो सकता है। एक मुक्त पूंजी खाता भारतीय कंपनियों विदेशी बाजारों में बड़ी पहुंच प्रदान करेगा, ऋण लागत घटेगी और ऋण वृद्धि में मदद करेगा, जो निवेश बढ़ाने का मुख्य अवयव है।
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