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This Article is From Feb 03, 2015

राजस्थान पंचायत चुनाव : देखने को मिला पढ़ी-लिखी महिला शक्ति का प्रदर्शन

राजस्थान पंचायत चुनाव : देखने को मिला पढ़ी-लिखी महिला शक्ति का प्रदर्शन
जयपुर:

राजस्थान पंचायत चुनाव में इस बार महिला शक्ति का प्रदर्शन देखने को मिल रहा है। वैसे राज्य में पंचायती राज में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण है, लेकिन अब उससे कहीं ज़्यादा महिलाएं लोकतंत्र की इस पहली कड़ी में ज़िम्मेदारियां संभाल रही हैं।

हाल ही में आए राजस्थान सरकार के अध्यादेश के अनुसार पंचायतों में सरपंच का आठवीं पास होना ज़रूरी है, और पहली बार देश में इस नियम के साथ राजस्थान में ये चुनाव हुए हैं। अब तक चुने गए सरपंचों में से 48 फीसदी आठवीं पास तो हैं ही, लेकिन 36 प्रतिशत ग्रेजुएट हैं, और 10 फीसदी ने पोस्ट ग्रेजुएशन किया है, तथा एक प्रतिशत सरपंच डॉक्टरेट किए हुए भी हैं।

इसका बढ़िया उदाहरण हैं 21-वर्षीय अंजू यादव, जो गंगानगर में कॉलेज की पढ़ाई कर रही है और साथ ही माननीवाली ग्राम पंचायत की सरपंच बनी हैं। उनसे कुछ ही किलोमीटर दूर लीलवाली गांव में 21-वर्षीय वसुंधरा सरपंच चुनी गई हैं, जो दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रही हैं।

अंजू कहती हैं, उनके लिए सबसे बड़ा मुद्दा भ्रष्टाचार है। उन्होंने कहा, "मैं युवा भाई-बहनों को बताने की कोशिश करूंगी कि भ्रष्टाचार मत फैलाओ, जो गलत काम कर रहा है, उसके खिलाफ आवाज़ उठाओ, तभी भारत भ्रष्टाचारमुक्त होगा..."

राजस्थान के कई जिलों में कुछ ऐसा ही बदलाव दिखाई दे रहा है। नागौर जिले की जाहिल तहसील में तारनू गांव में सरपंच, उप-सरपंच, पंचायत समिति - सभी महिलाओं की बनी है, और वह भी निर्विरोध। इस 13-सदस्यीय समिति में से 10 साक्षर हैं। चुनी गई एक वृद्धा का कहना है, "हमें सरकार बनाया है, तो हम अच्छा काम करेंगे, लड़कियों को पढ़ाएंगे और गांव को बिलकुल साफ-सुथरा रखेंगे..." उन्हीं के साथ चुनी गईं संगीता का कहना है, "आजकल अनपढ़ों का ज़माना चला गया, लड़कियों का पढ़ना बहुत ज़रूरी है..."

वर्ष 2010 के पंचायत चुनावों में शिक्षा का यह नियम लागू नहीं था, इसलिए पंचायत समिति और सरपंचों में 50 फीसदी से भी कम पढ़े-लिखे थे, और इस बार भी राज्य में सात ऐसे गांव रहे, जहां आठवीं पास प्रत्याशी नहीं मिलने के कारण गांववाले सरपंच चुन ही नहीं सके। ऐसे ज़्यादातर गांव जनजातीय क्षेत्र में हैं।

लेकिन अगर पंचायत चुनावों में आ रहे नए नेतृत्व का विश्लेषण किया जाए तो यहां समाज की बदलती तस्वीर ज़रूर नज़र आती है, लेकिन क्या यह नई पीढ़ी और यह नया नेतृत्व गांव की हकीकत को बदल पाएगा।

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