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This Article is From Dec 15, 2018

Exclusive: राफेल पर संसद में उठे 20 सवाल, सरकार ने बताई बेस कीमत, जानिए अब तक के जवाब

राफेल डील (Rafale Deal) से जुड़े उन सवालों के यहां पढ़ें जवाब, जिनका मोदी सरकार(Modi Govt) ने संसद में दिया है जवाब.राफेल की बेस प्राइस( Rafale Price) के बारे में भी जानिए.

Exclusive: राफेल पर संसद में उठे 20 सवाल, सरकार ने बताई बेस कीमत, जानिए अब तक के जवाब
राफेल( Rafale) विमानों की फाइल फोटो.
नई दिल्ली: राफेल डील (Rafale Deal) में घोटाले के आरोपों पर देश में हल्ला मचा है. डील पर सवाल उठाने वालीं चार याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट( Supreme Court) ने यह कहकर खारिज कर दिया कि वह रक्षा सौदे में दखल नहीं दे सकती, कोर्ट ने इसके लिए भारतीय संविधान की धारा 32 का हवाला देकर अपनी सीमाएं भी बताईं. राफेल डील (Rafale Deal Controversy) को लेकर राजनेताओं ही नहीं देश की जनता के मन में भी ढेरों सवाल हैं. कांग्रेस भी मोदी सरकार के खिलाफ इसे बड़ा मुद्दा बनाकर लगातार मुखर है. सबसे बड़ा सवाल राफेल की कीमत को लेकर है. आप कन्फ्यूज न हों, इसके लिए हम बता दें कि राफेल की दो तरह की कीमत है. एक कीमत राफेल की बेस प्राइस यानी शुरुआती कीमत से जुड़ी है, दूसरी कीमत सुसज्जित राफेल यानी हथियारों और अन्य जरूरी उपकरणों से लैस राफेल की है. कीमतों की बात करें तो मोदी सरकार दो साल पहले ही इसका खुलासा कर चुकी है. हालांकि, वह राफेल का बेस प्राइस था, न कि वेपनाइज्ड राफेल का प्राइस.

यहां बता दें कि वेपनाइज्ड (Weaponized)राफेल की कीमत को सरकार देश की सुरक्षा और भारत-फ्रांस के बीच हुई (intergovernmental agreement)करार के आर्टिकल 10 का हवाला देकर गोपनीय बता रही है. कीमत से पता चल सकता है कि राफेल के साथ और कौन-कौन से उपकरण लगे मिलेंगे. असली मामला इसी वेपनाइज्ड राफेल  की कीमत का फंसा है. इस रिपोर्ट में एनडीटीवी ने राफेल डील को लेकर अब तक संसद में पूछे गए सभी सवालों को लोकसभा की प्रश्नोत्तरी सूची में खंगाले. 2016 से 2018 के बीच 20 प्रमुख सवाल सांसदों ने पूछे हैं. ज्यादातर सवाल एक ही प्रकृति के रहे, इस नाते चुनिंदा सवालों और उनके जवाब को यहां लिया गया है. इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद राफेल डील को लेकर बहुत से सवालों का जवाब आपको मिल सकता है.

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सरकार ने क्या बताई कीमत
18 नवंबर, 2016 को सुखबीर सिंह ,  सुप्रिया सुले, लल्लू सिंह सहित 14 सांसदों ने राफेल विमानों की कीमत को लेकर सवाल पूछा था. जिसके जवाब में रक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुभाष भामरे ने बताया था कि 36 राफेल विमानों, सेवाओं और हथियारों की खरीद के लिए 23 सितंबर 2016 को भारत-फ्रांस के बीच अंतर सरकारी करार(IGA)हुआ. कीमत भी उन्होंने बताई. कहा कि प्रत्येक राफेल विमान की कीमत 670 करोड़ रुपये है. रक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुभाष भामरे ने लिखित में दावा किया कि फ्रांस सभी विमानों को अप्रैल 2022 तक भारत के सुपुर्द कर देगा.  हालांकि रक्षामंत्री  ने यह स्पष्ट नहीं किया कि यह राफेल का सिर्फ बेस प्राइस है या फिर पूरा. मगर इसे बेस प्राइस माना जाएगा. वजह कि वेपनाइज्ड कीमत को सरकार अब तक सार्वजनिक करने से इन्कार करती रही है. हाल में अरुण जेटली ने भी कहा था कि सरकार पहले ही राफेल की बेस प्राइस संसद को बता चुकी है, मगर डील से जुड़ी कुछ शर्तों और राष्ट्रीय सुरक्षा के चलते वेपनाइज्ड राफेल की कीमत नहीं बताई जाती है. 
 
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2016 में संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में मोदी सरकार ने कुछ यूं बताई राफेल विमानों की कीमत.

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सवाल- कब हुई डील ?
12 अगस्त 2016 को संसद में सांसद रंजन बेन भट्ट, और राजेंद्र अग्रवाल ने पूछा- क्या 36 रफाल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए कीमतों और अन्य संबंधित मुद्दों पर फ्रांस से सरकार की बातचीत पूरी हो गई है ? इस पर सरकार ने जवाब दिया-प्रधानमंत्री की फ्रांस की यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच जारी वक्तव्य के अनुसार प्रारूप तय करने के लिए वार्ता दल का गठन हुआ. वार्ता दल की राफेल पर रिपोर्ट के आधार पर फैसला हुआ. सरकार ने संसद में बताया कि 23 सितंबर 2016 को राफेल और आवश्यक उपकरणों, सेवाओं और अस्त्रों की खरीद के लिए फ्रांस के साथ अंतर सरकारी करार यानी इंटरगवर्नमेंटल एग्रीमेंट(IGA)किया गया. यही एग्रीमेंट पूरी डील की बुनियाद है.

सवाल- क्या नियमों का पालन हुआ ?
14 मार्च, 2016 को कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ ने भी राफेल डील में नियमों के पालन को लेकर सवाल पूछा था. तब रक्षा राज्य मंत्री सुभाष भामरे ने जवाब दिया था-भारतीय वायुसेना में सभी तरह की खरीद मौजूदा रक्षा अधिप्राप्ति प्रक्रिया(डीपीपी) के अनुसार ही होती है. 24 अगस्त 2016 को सुरक्षा संबंधी मंत्रिमंडल समिति (सीसीएस) के अनुमोदन के बाद 23 सितंबर 2016 को फ्रांस सरकार के साथ 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए एक अंतर-सरकारी करार(IGA)पर हस्ताक्षर हुए थे. 

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सवाल- क्या टेक्नोलॉजी का हस्तांतरण होगा ?
7 फरवरी,  2018 को सांसद रवींद्र कुमार जेना ने सरकार से पूछा था- क्या 36 राफेल जेट विमानों की खरीद के लिए किए समझौतै में प्रौद्यौगिकी का हस्तांतरण भी निहित है ? इस पर सरकार ने बताया कि जिन 36 राफेल विमानों की आपूर्ति होने वाली है, वे उड़ान भरने की स्थिति में होंगे.  हालांकि, विनिर्माण लाइसेंस और प्रौद्यौगिकी अंतरण की मांग नहीं की गई है. 

सवाल-126 की  जगह 36 विमान क्यों खरीदे ?
सात फरवरी, 2018 को ही सांसद रवींद्र कुमार नेदूसरा सवाल पूछा था- 126 विमानों की जगह 36 राफेल ही क्यों खरीदे जा रहे ? दरअसल, यूपीए सरकार में फ्रांस के साथ 126 राफेल विमानों पर बातचीत चल रही थी. रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने जवाब दिया- 126 मध्यम बहु भूमिका वाले युद्धक विमान(MMRCA) के लिए प्रस्ताव वाले अनुरोध(आरएफपी)  को जून, 2015 में वापस ले लिया गया था. क्योंकि कांट्रैक्ट को लेकर जारी वार्ता में गतिरोध पैदा हो गया था. भारतीय वायुसेना की महत्वपूर्ण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अंतर सरकारी करार(आइजीए) के जरिए 36 राफेल विमानों का ही सौदा हुआ. क्योंकि इतने बड़े आर्डर के लिए यह लागत ही प्रभावी होती. ऑफसेट पार्टनर के सवाल पर कहा कि डीपीपी 2013 के आफसेट दिशा-निर्देशों के अनुसार ही निवेश किए जाते हैं.

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सवाल-राफेल डील(Rafale) में 12 साल की देरी क्यों ?
3 जनवरी 2018 को सांसद कमलेश पासवान ने पूछा- क्या पिछली सरकार द्वारा रफाल(राफेल) से 126 लड़ाकू विमान खरीदेने का समझौता अंतिम था. उक्त खरीद में 12 वर्ष से अधिक की देरी होने के पीछे क्या कारण हैं ? इस पर रक्षा राज्यमंत्री डॉ. सुभाष भामरे ने बताया- चूंकि 126 राफेल विमान खरीदने के लिए कोई समझौता नहीं हो सका था , इसलिए कोई अंतिम आर्डर नहीं दिया गया. रक्षामंत्री ने अपने जवाब में राफेल डील की शुरुआत से लेकर आखिर तक की जानकारी भी दी. 

सवाल- पिछली सरकार में 126 विमानों का समझौता क्या अंतिम था ?
रक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुभाष भामरे ने 3 जनवरी 2018 को बताया कि वर्ष 2000 में एयरफोर्स के मिग-21 विमानों को बदलने के लिए 126 मिराज-2000 विमानों की जरूरत महसूस हुई. खरीद की योजना पर काम शुरू हुआ. बाद में इसे 126 मध्यम बहु भूमिका वाले युद्धक विमान(MMRCA)की खरीद में बदल दिया गया. इसके लिए प्रस्ताव अनुरोध(आरएफपी) 2007 में जारी किया गया. कुल छह विक्रेता(वेंडर्स) ने टेंडर भरे. फील्ड मूल्यांकन परीक्षण के पूरा होने पर छह में से दो फर्म के विमानों को ही योग्य पाया गया.ये इन दो विक्रेताओं के नाम रहे दसॉल्ट एविएशन(फ्रांस) और  ईएडीएस(जर्मनी). इन्हीं दोनों कंपनियों के प्रस्ताव खोले गए. चूंकि दसॉल्ट की कीमत कम थी, इस नाते दसॉल्ट एविएशन के साथ एल 1 विक्रेता के रूप में नवंबर, 2011 में डील को लेकर बातचीत शुरू हुई. शुरुआती डील(यूपीए सरकार के वक्त) के मुताबिक 108 विमानों का उत्पादन हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड( HAL) द्वारा किया जाना था. उससे संबंधित संबंधित वार्ता में गतिरोध आ गया. आखिरकार उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए आरएफपी यानी प्रस्ताव अनुरोध को  24 जून 2015 को वापस ले लिया गया. 

छह कंपनियों के आए टेंडर
4 अगस्त, 2017 को सांसद हरिओम पांडेय और डॉ. रत्ना के सवाल पर तत्कालीन रक्षामंत्री अरुण जेटली ने बताया था-126 मध्यम बहु-भूमिका विमानों की खरीद के लिए 'खरीदो वैश्विक' श्रेणी के तहत एक आरएफपी यानी प्रस्ताव अनुरोध (Request for proposal) विभिन्न विदेशी विक्रेताओं को 28 अगस्त 2007 को जारी  की गई थी. जिसके जवाब में छह प्रस्ताव आए. इसमें से मैसर्स दसॉल्ट एविएशन और यूरोफाइटर टाइफून विमान के लिए मैसर्स ईएडीएस, जर्मनी के प्रस्तावों को तकनीकी रूप से अनुकूल पाया गया. लागत दसॉल्ट की न्यूनतम थी. इसलिए उसे चुना गया. जेटली ने बताया कि सितंबर 2019 से अप्रैल 2022 तक विमानों की सुपुर्दगी होगी. 

सवाल- क्या सरकार ने ऑफसेट मामले में साइन किए ?
20 सितंबर, 2017 को सांसद भर्तुहरि महतबा, तेजपाल सिंह यादव, कमलेश यादव सहित सात सांसदों ने सरकार से पूछा- क्या एचएएल की जगह रिलायंस डिफेंस और दसॉल्ट के बीच संयुक्त उद्यम के रूप में सरकार ने हस्ताक्षर किया है. इस सवाल को डिफेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण ने खारिज कर दिया. उन्होंने ऐसे किसी हस्ताक्षर से इन्कार किया. 

सवाल- क्या क्या नई शर्तों से बचत हुई ?
27 दिसंबर 2017 को सांसद इन्नोसेन्ट ने सरकार से पूछा-  क्या 36 जहाजों की खरीद में पहले की शर्तों की तुलना में 350 मिलियन की कमी आई है ? इसके जवाब में डिफेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण ने कहा- काफी अधिक बचत और बेहतर शर्तों के रूप में नई डील सामने आई है . हालांकि रक्षामंत्री ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि कितनी धनराशि की बचत हुई ?

12 अगस्त 2016 को रंजनबेन भट्ट, पिनाकी, राजेंद्र अग्रवाल ने सवाल किया तो तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने बताया-प्रधानमंत्री की फ्रांस की यात्रा के दौरान दोनों देशों द्वारा जारी किए गए भारत-फ्रांस संयुक्त वक्तव्य के अनुसार, भारत सरकार ने फ्रांस सरकार को सूचित किया था कि भारतीय वायुसेना की आवश्यकता के मद्देनजर अंतर सरकार समझौता(आईजीए). वार्ता दल ने रिपोर्ट दी. 

सवाल-फ्रांस से क्या रही बातचीत
12 अगस्त 2016 को सांसद रंजनबेन भट्ट, पिनाकी मिश्रा, राजेंद्र अग्रवाल ने 36 राफेल विमानों पर फ्रांस से हुई बातचीत का ब्यौरा मांगा. जिस पर तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने जवाब दिया- प्रधानमंत्री की फ्रांस यात्रा के दौरान दोनों देशों द्वारा जारी संयुक्त वक्तव्य के मुताबिक, भारत ने फ्रांस सरकार को सूचना दी थी कि भारतीय वायुसेना उड़ान भरने के लिए तैयार अवस्था में 36 राफेल जेट हासिल करना चाहेगी. जिसके बाद दोनों पक्ष अंतर सरकार समझौता(आइजीए) करने पर सहमत हुए. शर्तों पर बातचीत के लिए वार्ता दल भी गठित हुआ. जिसने अपनी रिपोर्ट दी. 

कांग्रेस के क्या हैं आरोप
 दसॉल्ट एविएशन की वार्षिक रिपोर्ट के आधार पर कांग्रेस का आरोप है कि मोदी सरकार ने फ्रांस के साथ 36 राफेल विमानों का सौदा 7.5 बिलियन यूरो में किया, जबकि कतर और मिस्त्र को 2015 में 48 राफेल विमान 7.9 बिलियन यूरो में दसॉल्ट ने बेचे. कांग्रेस का आरोप है कि भारत ने 526 करोड़ के एक विमान को 1670 करोड़ में खरीदा है. जबकि अन्य देशों ने 1319.80 करोड़ रुपये में ही खरीद की. हालांकि सरकार का कहना है कि भारत-फ्रांस के बीच हुए समझौते में गोपनीयता से जुड़ी शर्तों के कारण सौदे की विस्तृत जानकारी नहीं दी जा सकती. उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार के दौरान हुए 126 विमानों के सौदे के मूल प्रस्ताव में कीमतें तय नहीं की गई थी. यही नहीं यूपीए सरकार के दौरान हुए 126 राफेल सौदे के मूल प्रस्ताव में भी कीमत तय नहीं थी. यूपीए सरकार के दौरान एचएएल कंपनी को 108 राफेल का निर्माण करना था, जबकि अन्य 18 विमानों की फ्रांस से डिलीवरी होनी थी. 

वीडियो- प्राइम टाइम : रफाल मामले में क्या सरकार को वाकई क्लीनचिट मिल गई?

 

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