पिछले एक पखवाड़े में पंजाब और हरियाणा में यूरिया को लेकर मारा-मारी की हालत बनी हुई है। रबी की बुवाई पूरी होने के बाद फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए किसानों को यूरिया की दरकार होती है, लेकिन दोनों राज्यों में यूरिया डिपो के बाहर किसानों की लंबी कतारें दिख रही हैं। कुछ जगहों पर तो किसानों का धैर्य जवाब दे गया। हिसार में किसानों को लाठियां खानी पड़ीं, झज्जर में किसानों ने यूरिया से लदा ट्रक लूट लिया तो जींद में वे डिपो पर धावा बोलकर यूरिया के बैग छीन ले गए। जालंधर और लुधियाना में कालाबाज़ारी करने के आरोप में चार डिपो के लाइसेंस रद्द कर दिए गए हैं, लेकिन कुल मिलाकर हालात से किसान नाराज़ हैं।
पंजाब के मुक्तसर जिले में लाइन में खड़े एक किसान ने बताया, 'यूरिया की बहुत प्रॉब्लम आ रही है... किसी को यूरिया नहीं मिल रहा... इसी मौसम में डालना होता है, ज़रूरत के मुताबिक, लेकिन किसी को नहीं मिल रहा है...'
वहीं हरियाणा के सिरसा में घंटों लाइन में खड़े रहने के बाद भी यूरिया नहीं मिला, तो किसानों का गुस्सा फूट पड़ा। एक किसान ने अपनी हालत कुछ यूं बताई, 'खाद लेने के लिए सुबह सात बजे से लाइन में खड़ा हूं... अब तीन बज गए हैं... भूख-प्यास से गला सूख गया है... इनसे पूछो तो कहते हैं कि कृषि विभाग वाले बांट रहे हैं... उनके पास जाओ, तो कहते हैं कि स्टाफ कम है...'
विशेषज्ञों के मुताबिक मौजूदा हालात के लिए केंद्र सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं - नवंबर से जनवरी के बीच यूरिया की खपत सबसे ज़्यादा होती है, लेकिन केंद्र सरकार पंजाब-हरियाणा को उनका कोटा सप्लाई नहीं कर सकी। साल 2014 में सरकार ने नाप्था आधारित यूरिया उत्पादन पर से सब्सिडी हटा ली थी, जिसके चलते कई प्लांट बंद हुए। सरकार ने गलती सुधारने में देर कर दी और ट्रांसपोर्ट सब्सिडी को लेकर संशय की स्थिति से यूरिया अपने गंतव्य पर सही समय पर नहीं पहुंचा।
पंजाब के मुख्यमंत्री ने दिसंबर में प्रधानमंत्री को खत लिखकर राज्य का कोटा जल्द जारी करने की दरख्वास्त की थी, लेकिन अब कह रहे हैं कि कोई कमी नहीं है। मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने कहा, 'यूरिया पिछले साल के मुकाबले ज़्यादा आया है... कुछ किसान हड़बड़ी में ज़्यादा खरीद रहे हैं, कुछ कालाबाज़ारी हो रही है... हमने रेड भी डाली हैं...'
उधर, हरियाणा सरकार तो शिकायत करने की हिम्मत भी नहीं जुटा सकी। कृषि मंत्री ओपी धनखड़ ने कहा, 'मैं डंके की चोट पर कहता हूं कि 70,000 मीट्रिक टन हुड्डा सरकार से ज़्यादा आया है इस साल... आस-पड़ोस के राज्यों में रेट कम है, इसलिए हमें कुछ दिक्कत आई है...'
गेहूं के केंद्रीय खाद्य पूल में पंजाब और हरियाणा की हिस्सेदारी 75 फीसदी है। यह इलाका देश की अन्न की ज़रूरत को पूरा करता है। पैदावार बढ़ाने के लिए यूरिया बेहद ज़रूरी है, लेकिन दोनों राज्यों पंजाब और हरियाणा में यूरिया डिपो के बाहर दंगे जैसे हालात गेहूं की फसल के लिए शुभ संकेत नहीं हैं, और इसका सीधा असर खाद्य सुरक्षा पर पड़ सकता है।
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