
सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह (फाइल फोटो)
यूपी के सबसे शक्तिशाली यादव परिवार में विवाद इस समय राष्ट्रीय राजनीति में भी चर्चा का विषय है. राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने चाचा शिवपाल सिंह के खिलाफ खुलकर सामने आ गए हैं. इस घमासान में मुलायम के चचेरे भाई रामगोपाल, सीएम अखिलेश के पक्ष में हैं तो सपा सुप्रीमो ने भाई शिवपाल यादव के पक्ष में आवाज बुलंद कर रखी है. ऊपरी तौर पर यह विवाद भले ही यादव परिवार की अंदरूनी लड़ाई माना जा रहा हो, लेकिन इसके केंद्र बिंदु 60 साल के अमर सिंह हैं. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुलकर अमर सिंह की पार्टी में वापसी का विरोध कर रहे हैं जबकि मुलायम और शिवपाल उनके साथ खड़े हुए हैं. (पढ़ें, मुलायम के कहने से गले मिले अखिलेश और शिवपाल, इसके बाद चाचा-भतीजा फिर भिड़े)
दरअसल अमर सिंह का व्यक्तित्व ही ऐसा है. राजनीति में भले ही विवादों से घिरे रहे हों लेकिन उनकी अपरिहार्यता हमेशा बनी रही. अमर सिंह के विरोधी उन्हें बेहद महत्वाकांक्षी और साजिश रचने वाला मानते हैं तो उनके समर्थक उन्हें फंड रेजर और क्राइसिस मैनेजमेंट का माहिर बताते हैं. शायद यही कारण रहा कि सीएम अखिलेश यादव और पार्टी के प्रमुख मुस्लिम चेहरे माने जाने वाले आजम खान के पुरजोर विरोध के बावजूद अमर सिंह की पार्टी में न सिर्फ ससम्मान वापसी हुई बल्कि उन्हें राष्ट्रीय महासचिव पद से नवाज दिया गया. कारोबारी अमर सिंह के बारे में कहा जाता है कि उनके संबंध सभी पार्टियों में हैं जिसके कारण वे 'संकटमोचक' के तौर पर उभरते हैं. (यूपी में घमासान : सपा बैठक में बोले शिवपाल यादव- बेटे की कसम, अखिलेश ने कहा था अलग पार्टी बनाएंगे)
उनकी इस उपयोगिता के कारण ही सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने सोमवार की मीटिंग में कह दिया कि मैं अमर सिंह को नहीं छोड़ सकता.' सपा प्रमुख ने कहा, 'अमर सिंह मेरे भाई हैं. राजपूत परिवार में जन्मे अमर सिंह को उनकी खास सहयोगी जयाप्रदा के साथ 2010 में पार्टी से निकाल दिया गया था. सपा से निकाले जाने के बाद अमर सिंह ने लोकसभा चुनाव के दौरान राष्ट्रीय लोकदल के साथ हाथ मिला लिया और फतेहपुर सीकरी से चुनाव भी लड़ा लेकिन हार गए. बहरहाल सपा से बाहर रहने के बाद भी न तो मुलायम, अमर सिंह को भूल पाए और न अमर सिंह, सपा सुप्रीमो को. यूपी में विधानसभा चुनाव के पहले वे पार्टी में वापसी करने में कामयाब रहे.
अमर सिंह को मुलायम का काफी विश्वास हासिल है. जब 2008 में यूपीए सरकार के अमेरिका के साथ प्रस्तावित परमाणु समझौते के कारण भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अपना समर्थन वापस ले लिया था और सरकार अल्पमत में आ गई थी. कहा जाता है कि उस समय अमर सिंह ने ही मुलायम सिंह यादव को समर्थन देने के लिए राजी किया था. समाजवादी पार्टी में कॉरपोरेट कल्चर लाने का श्रेय भी अमर सिंह को जाता है हालांकि इसके लिए वे विरोधियों के निशाने पर भी रहे. पैसे, बॉलीवुड और देश के ताकतवर हस्तियों तक अपनी पहुंच के लिए मशहूर अमर सिंह सपा की ओर से कई बार राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं. संसद की कई समितियों के वे सदस्य रह चुके हैं.(पढ़ें, अखिलेश यादव हुए भावुक, बोले - नेता जी कहते तो इस्तीफ़ा दे देता, पार्टी में मेरा कुछ नहीं)
इसके साथ ही विवादों में भी उनका नाम आ चुका है. इसमें यूपीए सरकार के पक्ष में वोट देने के लिए 3 बीजेपी सांसदों को कथित तौर पर रिश्वत की पेशकश करने का मामला प्रमुख है.उनके खिलाफ एक ऑडियो टेप भी आया था जिसमें दावा किया गया था कि इसमें अमर सिंह की आवाज है. अमर सिंह एक समय बॉलीवुड के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन के भी खास सहयोगी रह चुके हैं लेकिन वक्त के साथ उनके संबंधों में खटास आती गई. सपा बैठक में मुलायम के अमर सिंह के पक्ष में खुलकर आने से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सहित उनके तमाम विरोधियों को फिलहाल तो निराशा ही हाथ लगी है..
दरअसल अमर सिंह का व्यक्तित्व ही ऐसा है. राजनीति में भले ही विवादों से घिरे रहे हों लेकिन उनकी अपरिहार्यता हमेशा बनी रही. अमर सिंह के विरोधी उन्हें बेहद महत्वाकांक्षी और साजिश रचने वाला मानते हैं तो उनके समर्थक उन्हें फंड रेजर और क्राइसिस मैनेजमेंट का माहिर बताते हैं. शायद यही कारण रहा कि सीएम अखिलेश यादव और पार्टी के प्रमुख मुस्लिम चेहरे माने जाने वाले आजम खान के पुरजोर विरोध के बावजूद अमर सिंह की पार्टी में न सिर्फ ससम्मान वापसी हुई बल्कि उन्हें राष्ट्रीय महासचिव पद से नवाज दिया गया. कारोबारी अमर सिंह के बारे में कहा जाता है कि उनके संबंध सभी पार्टियों में हैं जिसके कारण वे 'संकटमोचक' के तौर पर उभरते हैं. (यूपी में घमासान : सपा बैठक में बोले शिवपाल यादव- बेटे की कसम, अखिलेश ने कहा था अलग पार्टी बनाएंगे)
उनकी इस उपयोगिता के कारण ही सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने सोमवार की मीटिंग में कह दिया कि मैं अमर सिंह को नहीं छोड़ सकता.' सपा प्रमुख ने कहा, 'अमर सिंह मेरे भाई हैं. राजपूत परिवार में जन्मे अमर सिंह को उनकी खास सहयोगी जयाप्रदा के साथ 2010 में पार्टी से निकाल दिया गया था. सपा से निकाले जाने के बाद अमर सिंह ने लोकसभा चुनाव के दौरान राष्ट्रीय लोकदल के साथ हाथ मिला लिया और फतेहपुर सीकरी से चुनाव भी लड़ा लेकिन हार गए. बहरहाल सपा से बाहर रहने के बाद भी न तो मुलायम, अमर सिंह को भूल पाए और न अमर सिंह, सपा सुप्रीमो को. यूपी में विधानसभा चुनाव के पहले वे पार्टी में वापसी करने में कामयाब रहे.
अमर सिंह को मुलायम का काफी विश्वास हासिल है. जब 2008 में यूपीए सरकार के अमेरिका के साथ प्रस्तावित परमाणु समझौते के कारण भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अपना समर्थन वापस ले लिया था और सरकार अल्पमत में आ गई थी. कहा जाता है कि उस समय अमर सिंह ने ही मुलायम सिंह यादव को समर्थन देने के लिए राजी किया था. समाजवादी पार्टी में कॉरपोरेट कल्चर लाने का श्रेय भी अमर सिंह को जाता है हालांकि इसके लिए वे विरोधियों के निशाने पर भी रहे. पैसे, बॉलीवुड और देश के ताकतवर हस्तियों तक अपनी पहुंच के लिए मशहूर अमर सिंह सपा की ओर से कई बार राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं. संसद की कई समितियों के वे सदस्य रह चुके हैं.(पढ़ें, अखिलेश यादव हुए भावुक, बोले - नेता जी कहते तो इस्तीफ़ा दे देता, पार्टी में मेरा कुछ नहीं)
इसके साथ ही विवादों में भी उनका नाम आ चुका है. इसमें यूपीए सरकार के पक्ष में वोट देने के लिए 3 बीजेपी सांसदों को कथित तौर पर रिश्वत की पेशकश करने का मामला प्रमुख है.उनके खिलाफ एक ऑडियो टेप भी आया था जिसमें दावा किया गया था कि इसमें अमर सिंह की आवाज है. अमर सिंह एक समय बॉलीवुड के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन के भी खास सहयोगी रह चुके हैं लेकिन वक्त के साथ उनके संबंधों में खटास आती गई. सपा बैठक में मुलायम के अमर सिंह के पक्ष में खुलकर आने से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सहित उनके तमाम विरोधियों को फिलहाल तो निराशा ही हाथ लगी है..
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
अमर सिंह, समाजवादी पार्टी, अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव, Amar Singh, SP, Akhilesh Yadav, Mulayam Singh Yadav