नई दिल्ली:
विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने सरकार के एक साल पूरा होने पर विदेश नीति की दशा, दिशा और उपलब्धियों का ब्योरा देने के लिए एक संवाददाता सम्मेलन किया। उन्होंने कहा कि अब विदेश नीति तीन कसौटियों पर परखी जा रही है - संपर्क, संवाद और परिणाम। पिछले एक साल में 101 देशों से संपर्क-संवाद साधा गया है और नया मंत्र है - विकास के लिए कूटनीति का। इसके साथ ही विदेश नीति के मामले में पीएम मोदी की सक्रियता पर उन्होंने कहा कि 'अतिसक्रिय' प्रधानमंत्री होना कोई 'चुनौती' नहीं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन पर कोई 'पाबंदी' नहीं लगाई है, बल्कि वह खुद सुखिर्यों से दूर रहना पसंद करती हैं।
पड़ोसी मुल्क से रिश्ते
उन्होंने पड़ोसी देशों से रिश्तों में जान डालने के लिए की जा रही कोशिशें ब्यौरा दिया। कहा कि भूटान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव और अफगानिस्तान के साथ बेहतर रिश्ते बनाए गए हैं। यहां तक कि पाकिस्तान से रिश्तों में तल्खी के बावजूद नरेंद्र मोदी ने पेशावर में स्कूली बच्चों की हत्या के बाद नवाज़ शरीफ को फोन किया। भारत और पाकिस्तान ने यमन में फंसे एक दूसरे के नागरिकों को निकाला। यानि अनसुलझे मुद्दों के बावजूद मानवता के नाते पड़ोसी की मदद की।
पाकिस्तान को लेकर नीति
हालांकि जब मंत्री जी से पाकिस्तान के मामले में कोई साफ नीति है भी या नहीं यह पूछा गया तो उन्होंने कहा सीमा पर कुछ होने पर गृहमंत्री बयान देते हैं, रक्षामंत्री अपने हिसाब से और चूंकि विदेश मंत्रालय का काम सकारात्मक पक्ष देखना का है तो हम वह करते हैं।
वहीं पाकिस्तान से बातचीत के सवाल पर उन्होंने साफ कहा कि वह तभी होगा जब ऐसा माहौल बनेगा। मुंबई हमले के दोषी जकीउर रहमान लखवी का जेल से बाहर आना तो सही माहौल नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा कि चीन को भी भारत के तरफ से यही कहा गया है कि वहां और भारत में आतंक का ज़िम्मेदार एक ही है और वह उसी आधार पर कदम उठाए।
हुर्रियत पर सरकार का रुख
जब हुर्रियत को लेकर सरकार के रुख के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी नेताओं से उनकी मुलाकात कोई नई बात नहीं, लेकिन पिछली बार पाकिस्तानी उच्चायुक्त ने विदेश सचिवों की बातचीत के ठीक पहले हुर्रियत नेताओं को मिलने का आमंत्रण दिया, जिससे ये लगा कि कहीं ना कही वह भी बातचीत का हिस्सा है। बातचीत शांतिपूर्ण तरीके से, सिर्फ दो देशों के बीच और हिंसा- आतंक के माहौल के बिना ही बातचीत संभव है।
भारत-अमेरिकी रिश्ते
अमेरिका के बारे में विदेशमंत्री ने कहा कि पहले का कोई छाप उनके व्यवहार में नहीं दिखा और राष्ट्रपति ओबामा बांहें फैलाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले। उन्होंने बताया कि न्यूक्लियर लायबिलिटि एक्ट ऑपरेशनल करवाना एक बड़ी उपलब्धि है। धार्मिक सहिष्णुता पर अमेरिका की नसीहत पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा धार्मिक सहिष्णुता हमारे डीएनए में है।
विदेश नीति में पीएम मोदी की 'अतिसक्रियता'
इस दौरान सुषमा स्वराज से कई सवाल इस बात पर हुए कि वह लो प्रोफाइल रहती हैं, विदेश नीति में सिर्फ पीएम ही पीएम नज़र आते हैं, क्या ये चुनौती नहीं और पीएम पर आरोप है कि वह हमेशा विदेश में ही रहते हैं। इस पर उन्होंने जवाब दिया कि सक्रिय पीएम चुनौती नहीं, सहारा हैं। सरकार के पहले साल में पीएम को इतना करना ही पड़ता है। उनके हमेशा बाहर रहने की बात निराधार है। पिछली सरकार से अगर तुलना करें तो विदेश यात्राओं की संख्या 19-20 ही है। खुद विदेशमंत्री ने 21 देशों, पीएम ने 18 और विदेश राज्य मंत्री ने 17 देशों की यात्रा की है। अपने बारे में उन्होंने कहा कि विदेश मंत्री लो प्रोफाइल ही रह कर काम करता है और उनकी राय है कि विदेशमंत्री को घरेलू मामलों पर बयान नहीं देना चाहिए।
पड़ोसी मुल्क से रिश्ते
उन्होंने पड़ोसी देशों से रिश्तों में जान डालने के लिए की जा रही कोशिशें ब्यौरा दिया। कहा कि भूटान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव और अफगानिस्तान के साथ बेहतर रिश्ते बनाए गए हैं। यहां तक कि पाकिस्तान से रिश्तों में तल्खी के बावजूद नरेंद्र मोदी ने पेशावर में स्कूली बच्चों की हत्या के बाद नवाज़ शरीफ को फोन किया। भारत और पाकिस्तान ने यमन में फंसे एक दूसरे के नागरिकों को निकाला। यानि अनसुलझे मुद्दों के बावजूद मानवता के नाते पड़ोसी की मदद की।
पाकिस्तान को लेकर नीति
हालांकि जब मंत्री जी से पाकिस्तान के मामले में कोई साफ नीति है भी या नहीं यह पूछा गया तो उन्होंने कहा सीमा पर कुछ होने पर गृहमंत्री बयान देते हैं, रक्षामंत्री अपने हिसाब से और चूंकि विदेश मंत्रालय का काम सकारात्मक पक्ष देखना का है तो हम वह करते हैं।
वहीं पाकिस्तान से बातचीत के सवाल पर उन्होंने साफ कहा कि वह तभी होगा जब ऐसा माहौल बनेगा। मुंबई हमले के दोषी जकीउर रहमान लखवी का जेल से बाहर आना तो सही माहौल नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा कि चीन को भी भारत के तरफ से यही कहा गया है कि वहां और भारत में आतंक का ज़िम्मेदार एक ही है और वह उसी आधार पर कदम उठाए।
हुर्रियत पर सरकार का रुख
जब हुर्रियत को लेकर सरकार के रुख के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी नेताओं से उनकी मुलाकात कोई नई बात नहीं, लेकिन पिछली बार पाकिस्तानी उच्चायुक्त ने विदेश सचिवों की बातचीत के ठीक पहले हुर्रियत नेताओं को मिलने का आमंत्रण दिया, जिससे ये लगा कि कहीं ना कही वह भी बातचीत का हिस्सा है। बातचीत शांतिपूर्ण तरीके से, सिर्फ दो देशों के बीच और हिंसा- आतंक के माहौल के बिना ही बातचीत संभव है।
भारत-अमेरिकी रिश्ते
अमेरिका के बारे में विदेशमंत्री ने कहा कि पहले का कोई छाप उनके व्यवहार में नहीं दिखा और राष्ट्रपति ओबामा बांहें फैलाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले। उन्होंने बताया कि न्यूक्लियर लायबिलिटि एक्ट ऑपरेशनल करवाना एक बड़ी उपलब्धि है। धार्मिक सहिष्णुता पर अमेरिका की नसीहत पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा धार्मिक सहिष्णुता हमारे डीएनए में है।
विदेश नीति में पीएम मोदी की 'अतिसक्रियता'
इस दौरान सुषमा स्वराज से कई सवाल इस बात पर हुए कि वह लो प्रोफाइल रहती हैं, विदेश नीति में सिर्फ पीएम ही पीएम नज़र आते हैं, क्या ये चुनौती नहीं और पीएम पर आरोप है कि वह हमेशा विदेश में ही रहते हैं। इस पर उन्होंने जवाब दिया कि सक्रिय पीएम चुनौती नहीं, सहारा हैं। सरकार के पहले साल में पीएम को इतना करना ही पड़ता है। उनके हमेशा बाहर रहने की बात निराधार है। पिछली सरकार से अगर तुलना करें तो विदेश यात्राओं की संख्या 19-20 ही है। खुद विदेशमंत्री ने 21 देशों, पीएम ने 18 और विदेश राज्य मंत्री ने 17 देशों की यात्रा की है। अपने बारे में उन्होंने कहा कि विदेश मंत्री लो प्रोफाइल ही रह कर काम करता है और उनकी राय है कि विदेशमंत्री को घरेलू मामलों पर बयान नहीं देना चाहिए।
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