गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को उच्च जोखिम वाली श्रेणी में वर्गीकृत करने और वैक्सीन लगाने में प्राथमिकता देने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, याचिकाकर्ता से DCPCR के सुझावों पर विचार करने को कहा है. अदालत ने कहा कि ये नीतिगत मामला है इसलिए केंद्र खुद इस पर विचार करे कि नीति में बदलाव करना है या नहीं. कोर्ट ने केंद्र को निर्देश देने से इनकार किया है.
दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से गर्भवती महिलाओं के लिए टीकाकरण के बाद प्रतिकूल प्रभावों पर नज़र रखने के लिए एक अधिक मजबूत तंत्र की मांग की गई है. याचिकाकर्ता ने पंजीकरण के दौरान यह बताने के लिए कि क्या कोई महिला गर्भवती है या स्तनपान करा रही है, एक कॉलम पेश करने के लिए CoWin में बदलाव की मांग की है.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि गर्भवती महिलाओं के वैक्सीनेशन के लिए सर्वोत्तम पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रयास कर रहे हैं. वैक्सीनेशन के बाद होने वाले प्रतिकूल प्रभावों पर नज़र रखी जा रही है.
उचित जांच के बाद डेटा सार्वजनिक डोमेन में प्रकाशित किया जाएगा.
इससे पहले 20 सितंबर को कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके जवाब मांगा था. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सॉलिसिटर जनरल को अदालत की सहायता करने को कहा था. दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग की इस याचिका पर नोटिस जारी किया गया था.
DCPCR के लिए पेश वृंदा ग्रोवर ने कहा मई 2021 में दूसरी Covid लहर के दौरान याचिका दायर की गई थी. बाद में गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए दिशानिर्देश जारी किए गए हैं. हम एक ऐसे वायरस से निपट रहे हैं जिसके बारे में हम नहीं जानते हैं. गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को कोविड के टीके के लिए अनुमति देने का कारण यह था कि प्रतिकूल प्रभाव पर कोई शोध नहीं किया गया था. गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं पर टीकाकरण के प्रभावों को देखने के लिए वैज्ञानिक शोध करने की आवश्यकता है. निरंतर निगरानी के लिए रजिस्ट्री बनाने की जरूरत है.
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