मसर्रत की रिहाई पर बीजेपी-पीडीपी में तकरार

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

नमस्कार... मैं रवीश कुमार, महबूबा मुफ्ती कहती हैं कि ये मसला दो मानसिकताओं का है। एक मानसिकता जो जम्मू-कश्मीर की है और दूसरी जो पूरे मुल्क की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में कहा कि सदन में और देश में जो आक्रोश है, उसमें मैं भी मेरा स्वर मिलाता हूं। क्या प्रधानमंत्री भी प्रवाह में घाटी को छोड़ देश के साथ हो गए या क्या देश के पास इस मसले पर एक ही राय है। क्या कोई दूसरी राय भी हो सकती है। क्या ऐसी किसी राय की संभावना पीएम के बयान से कमज़ोर नहीं पड़ जाती है, जब उन्होंने खुद मसर्रत की रिहाई को देश की एकता के खतरे से जोड़ दिया। कहा कि सारे दलों को एकजुट रहना चाहिए। यही तो मसर्रत कह रहा है कि पीडीपी, बीजेपी, कांग्रेस सब एक ही हैं।

2010 के साल की तस्वीरों को देखेंगे तो मसर्रत के बारे में जान सकेंगे। आज़ादी का नारा लेकर नौजवान कूद पड़े और पत्थरों से हमला करने की नई रणनीति का इस्तमाल किया। 100 से भी ज्यादा नौजवानों की मौत हो गई थी। आज़ादी की बात करने वाले मसर्रत इस बार जब 53 महीने के बाद जेल से रिहा हुए तो बीजेपी-पीडीपी पर हमले करने लगी और बाकी दल बीजेपी पर। नौ साल तक जेल काटने वाले मसर्रत आलम का बयान छपा है कि मुझ पर छह बार पब्लिक सेफ्टी एक्ट लगे हैं। हर बार आरोप खारिज हुए हैं। राजनाथ सिंह ने राज्य सभा में बताया कि मसरर्त को सभी 27 मामलों में हाईकोर्ट से ज़मानत मिली है।

मसर्रत जम्मू-कश्मीर मुस्लिम लीग के नेता हैं और 26 दलों के समूह हुर्रियत के सदस्य और भावी उत्तराधिकारी माने जा रहे हैं। 2010 में मसर्रत की जब गिरफ्तारी हुई तब 6 पुलिसवालों को प्रमोशन मिला था और इनाम दस लाख।

मसर्रत कहते हैं कि मैं कानूनी प्रक्रिया से छूट कर आया हूं मुझ पर किसी ने मेहरबानी नहीं की है। आप सोच रहे होंगे कि मसर्रत का मतलब क्या होता है। जगजीत सिंह की ग़ज़ल सुनी ही होगी। तुम मसर्रत का कहो या इसे ग़म का रिश्ता। कहते हैं प्यार का रिश्ता है जनम का रिश्ता। है जनम का जो ये रिश्ता तो ये बदलता क्यों है। मसर्रत का मतलब होता है खुशी।

अलगाववादी नारे सिर्फ कश्मीर में नहीं लगे। पूर्वोत्तर के राज्यों में भी लगे। मसर्रत को पाकिस्तानी से लेकर न जाने क्या-क्या कहा जा रहा है। आप जानते हैं कि हर किसी को बांग्लादेशी बता देने की मानसिकता ने नगालैंड में हज़ारों की भीड़ को इतना वहशी बना दिया कि सेना के परिवार से जुड़े एक शख्स को लोग जेल से बाहर ले आए और मार दिया। उसका नाम शरीफुद्दीन खान था। प्राइम टाइम के बाद ऑफिस के टिफिन टाइम में इस पहलू पर सोचियेगा।

इस बीच सैय्यद अहमद शाह गिलानी और भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त की मुलाकात हुई। गिलानी ने कहा कि पाक दौरे पर गए भारतीय विदेश सचिव के दौरे पर बात हुई है। कश्मीर में हुर्रियत की आवाज़ तो है मगर खास जनसमर्थन नहीं है। मसर्रत कहता है कि वह आज़ादी के आंदोलन को फिर से मज़बूत करेगा। भारत सरकार इस चुनाव में 65 प्रतिशत से अधिक मतदान को प्रोपेगैंडा की तरह इस्तमाल कर रही है।

मसर्रत के इन बयानो को लेकर बीजेपी क्या करे? हाल तक वह ऐसे बयानों को लेकर देश भर में घड़ा फोड़ने से लेकर लाल चौक पर झंडा फहराने के अभियान पर निकल पड़ती थी। कश्मीर को लेकर बीजेपी और आरएसएस की यह राजनीतिक पहचान रही है। गनीमत है कि वहां पीडीपी और कांग्रेस की सरकार नहीं है।

सरकार बनने के समय से ही बीजेपी की कॉपी चेक हो रही है। संघ प्रमुख मोहन भागवत का बयान नहीं आया, क्योंकि पीडीपी और बीजेपी की सरकार पर आरएसएस की भी मुहर है। संघ के मुखपत्र पांचजन्य में पूर्व सीबीआई चीफ जोगिंदर सिंह का लेख छपा है कि बीजेपी मुफ्ती मोहम्मद सईद से पूछे कि वे भारतीय हैं या नहीं। अब यह तो सरकार बनाने से पहले पूछ लेना चाहिए था। अगर भारतीय नहीं हैं तो जोगिंदर सिंह लोकसभा स्पीकर को भी लिख दें कि महबूबा मुफ्ती से पूछें कि वह भारतीय हैं या नहीं।

मुफ्ती साहब के अलगाववादी, आतंकवादी और पाकिस्तान का शुक्रिया अदा करने के बयान को बीजेपी कितनी आसानी से झेल गई, मसर्रत को क्यों नहीं पचा पा रही है। बीजेपी ने तो पीडीपी के 8 विधायकों की मांग को भी पचा लिया कि अफज़ल गुरु के अवशेषों को लौटाया जाए। क्या मसर्रत की रिहाई से किनारा कर बीजेपी राजनीतिक आरोपों से बच जाएगी।

शपथ ग्रहण समारोह में जब प्रधानमंत्री और मुफ्ती मोहम्मद सईद एक फ्रेम में आए तो झंडे नज़र आ गए। सोशल मीडिया पर लोगों ने लिखा कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान ही एक विधान और दो निशान के खिलाफ था। सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हम इन विषयों में वो लोग हैं, जिन्होंने इन्हीं आर्दशों के लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी को बली दिया है और इसलिए कृपा करके हमें देशभक्ति न सिखाएं।

महबूबा कहती हैं कि हम एक तरफ बातचीत करना चाहते हैं और दूसरी तरफ विकास का एजेंडा चलाना चाहते हैं। सियासी वर्कर जो कैदी हैं उन्हें छोड़ने पर घबराने की ज़रूरत नहीं है। यह बात तो कम से कम मुफ्ती साहब पर छोड़नी चाहिए कि किसे जेल में रखना है और किसे नहीं। क्या कोई भी सरकार चाहेगी कि हमारा माहौल खराब हो। वैसे 2002 में जब कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने थे, तब भी कई अलगाववादियों को रिहा किया था। क्या पीडीपी की मंशा वाकई इतनी मायूस है कि बीजेपी चुप हो जाए। कांग्रेस क्या करे यह पूछने से पहले सोचिये कि ऐसी स्थिति में विपक्ष में रहते हुए बीजेपी क्या करती? उसके कैसे बयान आते?

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राजनाथ सिंह कहते हैं कि केंद्र सरकार कठोर एडवाइज़री जारी करेगी। प्रधानमंत्री कहते हैं कि वहां सरकार बनने के बाद जो कुछ हो रहा है न भारत सरकार के मशवरे से हो रही हैं न भारत सरकार को जानकारी देकर हो रही हैं। अब इसे सुनने के बाद मनमोहन सिंह को चाय की तलब तो हुई ही होगी। इस मसले पर सब गुस्से में बात कर रहे हैं। मैं नहीं करना चाहता। प्राइम टाइम के शब्दकोष में आक्रोश न हो वही अच्छा।