
आतंकवाद से जुड़ी घटनाओं के मीडिया कवरेज के लिए जल्द ही नियम बनाए जाने के संकेत देते हुए केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अरुण जेटली ने आज कहा कि इस मुद्दे पर सरकार गंभीरता से विचार कर रही है।
प्रथम न्यायमूर्ति जेएस वर्मा स्मृति व्याख्यान देते हुए जेटली ने यह भी कहा कि मीडिया संस्थानों पर पाबंदी का समय नहीं रहा है और प्रौद्योगिकी के चलते सेंसरशिप असंभव हो गई है।
हालांकि उन्होंने साथ ही कहा कि जिस तरीके से सुरक्षा एजेंसियों के आतंकवाद निरोधक अभियानों को कवर किया जाता है, वह वर्तमान में मीडिया की जिम्मेदारी के लिहाज से एक अहम विषय है।
जेटली ने कहा कि सवाल यह उठता है कि मीडिया को सीधे मौके पर जाने की अनुमति होनी चाहिए या कुछ प्रतिबंध होने चाहिए।
सूचना एवं प्रसारण मंत्री के मुताबिक, खुफिया एजेंसियों ने दावा किया था कि मुंबई में 26/11 के आतंकवादी हमलों के दौरान ही उनके मीडिया कवरेज से हमलावरों के आकाओं को मदद मिली और उन्हें इस बात की सूचना मिलती रही कि सुरक्षा एजेंसियां क्या कर रहीं हैं।
जेटली ने कहा, 'हमारी सुरक्षा एजेंसियों और रक्षा मंत्रालय का स्पष्ट मत है कि इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। और इसलिए जिस समय सुरक्षा अभियान चल रहा हो, उस सीमित अवधि में घटनास्थल से रिपोर्टिंग के तरीके पर बहुत सख्त अनुशासन बनाकर रखना होगा।' उन्होंने कहा, 'इस मुद्दे पर सरकार गंभीरता से और बहुत आगे की सोच के साथ विचार कर रही है।'
उन्होंने यह भी कहा कि परंपरागत तरीके से जहां सोचा जाता है कि किसी अखबार या चैनल पर पाबंदी लगाई जा सकती है लेकिन सचाई यह है कि प्रतिबंध के दिन लद गए हैं। अब विज्ञापन देने से मना करके मीडिया संस्थानों पर दबाव बनाना बहुत मुश्किल है।
सेंसरशिप की संभावना के संबंध में जेटली ने कहा कि प्रौद्योगिकी ने इसे असंभव कर दिया है। उन्होंने कहा, 'मान लीजिए कि आज संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल लगा दिया जाए तो भी सेंसरशिप का प्रभाव शून्य रहेगा। उपग्रह अपने आप में भौगोलिक सीमाओं को नहीं मानते। ईमेल इस दायरे में नहीं आता। फैक्स मशीन इसकी इजाजत नहीं देती।'
गृह मंत्रालय ने पहले सूचना और प्रसारण मंत्रालय से नियमों में संशोधन करने को कहा था, ताकि टीवी चैनलों द्वारा आतंकवाद निरोधक अभियानों के सीधे प्रसारण पर रोक लगाई जाए।
जेटली ने एक नियम का भी जिक्र किया, जिसमें टीवी चैनलों को 12 मिनट से अधिक विज्ञापन दिखाने की अनुमति नहीं है। उन्होंने कहा कि क्या सरकार को अखबारों और चैनलों को बताना चाहिए कि कितने विज्ञापन और कितनी खबरें दिखाई जाएं।
सूचना प्रसारण मंत्री ने कहा, 'कितनी खबरें दिखाई जाएं और कितने विज्ञापन, इस बात में सरकार का दखल मेरे निजी विचार से खराब उदाहरण है।'
एक और अहम मुद्दे पर मंत्री ने कहा कि मीडिया में क्रॉस-होल्डिंग्स यानी मीडिया में निवेश करने वालों के कई क्षेत्रों में कारोबार के मुद्दे पर बहस की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अनेक देशों में इस विषय पर कानून हैं लेकिन भारत में नहीं।
उन्होंने कहा कि मीडिया में, न्यायिक हलकों में बहस का समय आ गया है ताकि भारतीय समाज इस विषय पर एक परिपक्व राय बना सके।
इसके अलावा जेटली ने कहा कि मीडिया को बड़े मामलों और अदालत में विचाराधीन मामलों में रिपोर्टिंग करते समय निजता का ध्यान रखने जैसे मुद्दों पर भी विचार करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मीडिया के सामने ज्यादा बाहरी खतरे नहीं हैं लेकिन उसके अंदर ही चुनौतियां हैं जो गुणवत्ता, विश्वसनीयता और प्रतिस्पर्धी तथा निष्पक्ष होने से जुड़ी हैं।
वहीं पेरिस में पिछले दिनों फ्रांसीसी पत्रिका 'शार्ली एब्दो' पर आतंकवादी हमले का जिक्र करते हुए जेटली ने कहा कि एक व्यंग्य पत्रिका पर हमले की निंदा की जानी चाहिए। अगर इस तरह के हमले होते हैं तो अभिव्यक्ति की आजादी पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ेगा।
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