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This Article is From Sep 14, 2015

प्रधानमंत्री के गोद लिए गांव में हिन्दी की दुर्दशा, गऊशाला बन गई 'काऊशाला'

प्रधानमंत्री के गोद लिए गांव में हिन्दी की दुर्दशा, गऊशाला बन गई 'काऊशाला'
वाराणसी: अब तक आपने गऊशाला या गौशाला शब्द सुने होंगे, लेकिन अब देखिए और पढ़िए 'काऊशाला' ! हिन्दी की 'चिंदी' करने वाला यह नजारा आपको प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र के उस गांव में देखने को मिलेगा जिसे प्रधानमंत्री ने गोद भी ले रखा है। यह गांव है जयापुर। इस गांव मे बनी गौशाला के शिलापट्ट पर गौर फरमाएं,  आपको पहली लाइन में पढ़ने को मिलेगा 'आदर्श भारतीय काऊशाला जयापुर'।  

जयापुर गांव में इस गौशाला के शिलान्यास के दौरान शिलापट्ट का अनावरण दो केन्द्रीय मंत्रियों के करकमलों से हुआ। इस पट्ट पर लिखा काऊशाला शब्द गांव के हर व्यक्ति को चौंका रहा है।  अब तक वह गऊशाला सुनते आए थे, काऊशाला  पहली बार सुन और देख रहे हैं। गांव के सुमिरत पटेल कहते हैं कि 'भइया इसे कोई समझ ही नहीं पाएगा गांव में पढ़े-लिखे लोग कम हैं, लिहाजा वे जान ही नहीं पाएंगे कि काऊ माने क्या है। गौशाला होता तो लोग फट से समझ जाते।'

इस शिलापट्ट से यह साफ हो रहा है कि 'हिंगलिश' के इस दौर में हिंदी के कई खूबसूरत शब्द कैसे मायने खोते जा रहे हैं। ऐसे में आपने भले ही अपने बचपन में गाय के निबंध में जो भी लिखा हो पर आज के दौर में बच्चे यह कहते मिल सकते हैं कि काऊ हमारी मदर है। उसके चार लेग होते हैं। दो हार्न होते हैं। एक टेल होती है और इसका मिल्क हमारे लिए बहुत हेल्दी होता है।  इतना ही नहीं बजरंग दल और विहिप के गौरक्षा, गौहत्या बंदी जैसे कार्यक्रम भी इस नए शब्द के ईजाद के बाद अगर 'काऊ हत्या बंदी' और 'काऊ रक्षा' के रूप में सुनाई पड़ें तो आप चौंकिएगा नहीं।  

हिन्दी के शब्दों से खिलवाड़ अपनी जगह है, पर काऊशाला जैसा शब्द प्रधानमंत्री के गोद लिए गए आदर्श गांव में प्रयुक्त हो और उनके ही केन्द्रीय मंत्री इसे अनदेखा कर दें, तो आश्चर्य होना स्वाभाविक ही है।

सरकारी भवनों पर 'हिंगलिश' का जोर
हिन्दी की दुर्दशा के और भी कई नजारे जयापुर में देखने को मिल जाएंगे। इस गांव में पेयजल के लिए जो पम्पिंग स्टेशन बना है, उस पर  बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है 'ड्रिंकिंग वाटर सप्लाई पम्प'। क्या 'पेयजल आपूर्ति पंप' लिखने से लोगों को समझ में नहीं आता?
जयापुर गांव का पेयजल आपूर्ति करने वाला पंप।

हिन्दी दिवस के मौके पर नेता हिन्दी को बचाने के लिए बड़ी-बड़ी बातें करते हैं पर उसके साथ सलूक ऐसा होता है। साफ है कि हिन्दी के घर में अनावश्यक अंग्रेजी  शब्दों की घुसपैठ उसे ज्यादा चोट पहुंचाती है और वह अंग्रेजी के शब्दों के इस भीड़ में कहीं एक कोने में पड़ी अपने जख्म को सहलाती नजर आती है।

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