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This Article is From Jun 27, 2016

पंपोर हमला : जख्मी होकर भी आतंकियों पर गोलियां दागते हुए शहीद हुए ये जवान

पंपोर हमला : जख्मी होकर भी आतंकियों पर गोलियां दागते हुए शहीद हुए ये जवान
बाएं से दाएं- सतीश चंद, केके यादव और बीर सिंह (फाइल फोटो)
नई दिल्‍ली: कांस्टेबल सतीश चन्द्र, हवलदार बीर सिंह और कांस्टेबल के.के. यादव, ये तीन जवान उन आठ सीआरपीएफ जवानों में शामिल हैं जो पंपोर में शनिवार को हुए आतंकी हमले में शहीद हो गए। तीनों जवान उत्तर प्रदेश से थे। सबसे खास और अहम बात जो इन तीनों को बाकियों से अलग करती है वो यह कि गोली लगने और बुरी तरह घायल होने के बावजूद इन तीनों ने घुटने नहीं टेके और आतंकियों का डटकर मुकाबला करते रहे।

सतीश चन्द्र ने अपने इन्सास से 32, वीर सिंह ने 39 और के.के. यादव ने 20 राउंड गोलियां आतंकियों पर फायर कीं और तीनों लड़ते लड़ते शहीद हो गए।

सतीश 2002 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे और मेरठ के बाली गांव के रहने वाले थे। वहीं वीर सिंह 1991 में भर्ती हुए थे और फिरोजाबाद के नागला केवल के रहने वाले थे जबकि के.के. यादव 2001 में भर्ती हुए और उन्नाव के सुल्तानपुर गांव के रहने वाले थे। सीआरपीएफ के 161 बटालियन के तीनों जवान अब दुनिया में नहीं हैं लेकिन इनकी बहादुरी के किस्से हमेशा याद किये जायेंगे।

सीआरपीएफ के जवान चार गाड़ियों में थे। ये जवान लेथपुरा में फायरिंग की ट्रेनिंग कर लौट रहे थे। आतंकी एक कार से उतरे और फायर करना शुरू कर दिया। आतंकियों ने एक-47 से करीब 200 राउंड गोलियां दागीं। सीआरपीएफ जवानों की कार्रवाई के चलते आतंकियों को ग्रेनेड फेंकने का मौका नहीं मिला वरना नुकसान और ज्यादा होता। आतंकियों द्वारा फायरिंग होते ही सीआरपीएफ ने जवाबी कार्रवाई की और दोनों आतंकियों को मार गिराया।

सीआरपीएफ के मुताबिक उनके पास ऐसा इनपुट नहीं था कि आतंकी पंपोर या बिजबेहड़ा में सुरक्षा बलों पर हमला करने वाले हैं, हां उनके पास ऐसा इनपुट था कि आतंकी सुरक्षाबलों को निशाना बना सकते हैं, लेकिन कहां, इसकी पक्की सूचना नहीं थी। इस घटना से सबक लेते हुए सीआरपीएफ अब ऐसी बस लेने जा रही है जिसमें बुलेट प्रूफ प्लेट लगी होगी। यानी बख्तरबंद टाइप की गाड़ियां जिसमें जवान सफर करेंगे। ऐसी ही बुलेट प्रूफ प्लेट सेना ने अपनी बसों में लगाई है। ये बात सीआरपीएफ मान रही है कि अगर हर गाड़ी की चेकिंग की जाती तो शायद हमले को रोका जा सकता था, लेकिन व्यवहारिक तौर पर ये संभव नहीं है।

सीआरपीएफ ये भी कह रही है कि उसके जवानों ने एसओपी का पालन किया था यानी स्‍टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर। सुरक्षा के हालात को देखते हुए एसओपी में बदलाव भी लाया जायेगा।

इन तीनों शहीद हुए जवानों के बारे में सीआरपीएफ के डीजी के. दुर्गा प्रसाद ने एनडीटीवी इंडिया से कहा कि अचानक आतंकी हमला होने और बुरी तरह घायल होने के बावजूद इन्होंने अपनी जान की परवाह नहीं की और आतंकियों पर लगातार फायरिंग करते रहे। ध्यान रहे, जिस बस पर ये जवान सवार थे वहां कोई सुरक्षा घेरा नहीं था जिसकी आड़ लेकर वो फायर कर सकें। इतना ही नहीं, ये जवान सीट के नीचे छिपे नहीं बल्कि निडर होकर सीने पर गोली खाई और आतंकियों को मार कर ही दम लिया। सच कहें तो इन लोगों ने बहादुरी की ऐसी मिसाल कायम की है जो हर जाबांज के लिये एक उदारहण है। हमें इन जवानों की शहादत पर गर्व है। हम इन जवानों को वापस तो नहीं ला सकते लेकिन हमसे जो बन पायेगा इनके परिवार के लिये जरूर करेंगे।

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