नई दिल्ली:
कहानी एक ऐसे परिवार की, जिसने अपने को खोकर भी चार लोगों को नई जिंदगी दी। दरअसल, एम्स और ILBS अस्पताल के डॉक्टरों ने ऑर्गन डोनेशन के बाद ये मुमकिन कर दिखाया। दोनों गुर्दे, लिवर और हार्ट सफलतापूर्वक अलग-अलग जरूरतमंदों को लगाए गए।
ऑर्गन डोनर गुरविंदर की भाभी बलजीत कौर रोते हुए कहती हैं कि मुझे मेरी दोस्त ने कहा कि ये क्या किया। क्या तुम्हारे देवर को अब मोक्ष मिलेगा? मुझे पता नहीं मोक्ष मिलेगा या नहीं, लेकिन लोगों को जिंदगी मिली वो हमने देखा। अपनों का जाने का दुख तो है, लेकिन इस बात का संतोष भी है कि गुरविंदर जाते-जाते भी चार लोगों को नई जिंदगी दे गए। मेहरौली के 41 साल के गुरविंदर सिंह उर्फ पोपिल को जब डॉक्टरों ने ब्रेन डेड घोषित कर दिया। तो उस मुश्किल वक़्त में भी परिवार को औरों की जिंदगी बेहतर बनाने का ख्याल रहा।
गुरविंदर की पत्नी हरप्रीत कौर बताती हैं कि जिस तरह के वे व्यक्ति थे। हर मुश्किल घड़ी में दूसरों के काम आने वाले। मरने के बाद भी अब वो जिंदा रहेंगे। दिल, दोनों किडनी और लीवर अलग-अलग मरीजों को लगाए गए। जबकि आंख को सुरक्षित रखा गया है। करीब 24 घंटों में 100 डॉक्टरों, नर्सों और टेक्नीशियंस की टीम ने इस मुहिम को अंजाम दिया।
पोपिल इस साल एम्स के नौवें डोनर रहे, जबकि बीते साल सिर्फ दो लोगों ने ही अंगदान किए। इससे पहले 2013 में 12 लोगों ने अंगदान किया था। एम्स के निदेशक डॉ एमसी मिश्रा कहते हैं कि इससे परोपकारी काम तो कोई हो ही नहीं सकता। परिवार के लिए मुश्किल घड़ी होती है, लेकिन फैसला भी उसी वक्त लेना होता है। एक बार दिल धड़कना बंद पड़ जाए फिर हम कुछ टिसूज और कॉर्निया ही ले सकते हैं, लेकिन ब्रेन डेड होने की सूरत बहुत सारे अंग काम आ सकते हैं।
दरअसल 23 जून को बुखार की शिकायत के बाद गुरविंदर सिंह को रॉकलैंड अस्पताल ले जाया गया, लेकिन सीटी स्कैन और एमआरआई से पता चला कि ब्रेन की नस भी फट गई हैं और डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। फिर 24 जून को एम्स ट्रॉमा सेंटर की टीम गई और पूरी प्रक्रिया को अंजाम दिया। दोनों गुर्दे और हार्ट तो एम्स ने ही सर्जरी के बाद जरूरतमंद मरीजों को लगाए गए, लेकिन लीवर के लिए ILBS अस्पताल से संपर्क साधा गया और वहां भी लीवर किसी जरूरतमंद के काम आ गया।
ऑर्गन डोनर गुरविंदर की भाभी बलजीत कौर रोते हुए कहती हैं कि मुझे मेरी दोस्त ने कहा कि ये क्या किया। क्या तुम्हारे देवर को अब मोक्ष मिलेगा? मुझे पता नहीं मोक्ष मिलेगा या नहीं, लेकिन लोगों को जिंदगी मिली वो हमने देखा। अपनों का जाने का दुख तो है, लेकिन इस बात का संतोष भी है कि गुरविंदर जाते-जाते भी चार लोगों को नई जिंदगी दे गए। मेहरौली के 41 साल के गुरविंदर सिंह उर्फ पोपिल को जब डॉक्टरों ने ब्रेन डेड घोषित कर दिया। तो उस मुश्किल वक़्त में भी परिवार को औरों की जिंदगी बेहतर बनाने का ख्याल रहा।
गुरविंदर की पत्नी हरप्रीत कौर बताती हैं कि जिस तरह के वे व्यक्ति थे। हर मुश्किल घड़ी में दूसरों के काम आने वाले। मरने के बाद भी अब वो जिंदा रहेंगे। दिल, दोनों किडनी और लीवर अलग-अलग मरीजों को लगाए गए। जबकि आंख को सुरक्षित रखा गया है। करीब 24 घंटों में 100 डॉक्टरों, नर्सों और टेक्नीशियंस की टीम ने इस मुहिम को अंजाम दिया।
पोपिल इस साल एम्स के नौवें डोनर रहे, जबकि बीते साल सिर्फ दो लोगों ने ही अंगदान किए। इससे पहले 2013 में 12 लोगों ने अंगदान किया था। एम्स के निदेशक डॉ एमसी मिश्रा कहते हैं कि इससे परोपकारी काम तो कोई हो ही नहीं सकता। परिवार के लिए मुश्किल घड़ी होती है, लेकिन फैसला भी उसी वक्त लेना होता है। एक बार दिल धड़कना बंद पड़ जाए फिर हम कुछ टिसूज और कॉर्निया ही ले सकते हैं, लेकिन ब्रेन डेड होने की सूरत बहुत सारे अंग काम आ सकते हैं।
दरअसल 23 जून को बुखार की शिकायत के बाद गुरविंदर सिंह को रॉकलैंड अस्पताल ले जाया गया, लेकिन सीटी स्कैन और एमआरआई से पता चला कि ब्रेन की नस भी फट गई हैं और डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। फिर 24 जून को एम्स ट्रॉमा सेंटर की टीम गई और पूरी प्रक्रिया को अंजाम दिया। दोनों गुर्दे और हार्ट तो एम्स ने ही सर्जरी के बाद जरूरतमंद मरीजों को लगाए गए, लेकिन लीवर के लिए ILBS अस्पताल से संपर्क साधा गया और वहां भी लीवर किसी जरूरतमंद के काम आ गया।
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