रूस (Russia) और यूक्रेन (Ukraine) के बीच युद्ध का आज 11वां दिन है. इस युद्ध को रोकने के लिए दोनों देशो के बीच अभी तक दो दौर की बातचीत हो चुकी है. रूस द्वारा हमले के बाद बड़ी संख्या में लोगों ने देश छोड़ना शुरू कर दिया है. यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पूरी दुनिया तबाही का मंजर देख रही है और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आक्रामक रवैये को देखकर हर कोई इस बात को लेकर आशंकित है कि कहीं यह विश्वयुद्ध का स्वरूप न ले ले. रूस का सबसे घनिष्ठ मित्र देश होने के नाते दुनिया की नजर भारत की भूमिका पर भी टिकी है. पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने इस मुद्दे पर कहा सबकी चिंता यही है कि कहीं यह विश्वयुद्ध में तब्दील न हो जाए और विश्वयुद्ध होने का मतलब है परमाणु युद्ध.
उन्होने कहा ' यह होता है तो और कितने लोग मारे जाएंगे, उसकी कोई गिनती नहीं होगी. इसलिए, पश्चिमी देश खासकर जिनका प्रभाव यूरोप में है, वे नहीं चाहते हैं कि संघर्ष इतना बढ़ जाए कि उनकी सेना को इसमें भाग लेना पड़े. नाटो ने एक सही रास्ता पकड़ा है. वह संघर्ष नहीं बढ़ाना चाहता. लेकिन इसका दूसरा पक्ष भी है. वह यह कि एक बहुत ही शक्तिशाली देश और उसकी सेना ने एक छोटे से देश पर आक्रमण कर दिया है तथा उसकी स्वतंत्रता को चुनौती दे रहा है. यह सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों के विपरीत है. ऐसे में अगर ज्यादा शक्तिशाली देश, कम शक्तिशाली देश को झुका दे और अपनी बात मानने के लिए मजबूर कर दे तो फिर यह जंगलराज हो जाएगा. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जो भी एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था बनी है, वह समाप्त हो जाएगी.
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युद्ध के लिए कौन दोषी हैं ये पूछे जाने पर "यशवंत सिन्हा ने कहा हमें इस बात को स्वीकार करना होगा कि पश्चिमी देशों की तरफ से भी बहुत उकसाया गया (यूक्रेन को). रूस को घेरकर रखने की उसकी (पश्चिमी देशों) जो मंशा है...वह यूक्रेन को नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) में शामिल कर रूस को घेरने की तैयारी कर रहे थे. यूक्रेन में बहुत बड़े-बड़े परमाणु संयंत्र हैं और इसका यूक्रेन के साथ-साथ रूस के लिए भी काफी महत्व है. इसी सबसे चिंतित होकर रूस ने आक्रमण कर दिया. मेरा यह कहना है रूस की चिंता सही थी लेकिन उसका तरीका गलत है. उनको (रूस) कोशिश करनी चाहिए थी कि बातचीत से रास्ता निकले. बातचीत से रास्ता निकालने में अगर दूसरे देशों की मदद उन्हें चाहिए थी तो वह भी लेनी चाहिए थी. जैसे अभी फ्रांस के राष्ट्रपति कोशिश कर रहे हैं. रूस, भारत की सेवाओं का इस्तेमाल भी कर सकता था. वह भारत से हस्तक्षेप करने को कह सकता था. वह भारत को कह सकता था कि वह इस दिशा में कोशिश करे ताकि रूस की सुरक्षा पर खतरा न हो.
यशवंत सिन्हा से रूस से हमारी बहुत पुरानी दोस्ती है. वह हर मौके पर भारत के काम आया है. वह हमारा बहुत ही बहुमूल्य दोस्त है, इसमें कोई शक नहीं है. लेकिन बहुत नजदीकी दोस्त भी अगर गलती करता है तो दोस्त के नाते हमारा हक बनता है कि हम उसको कहें कि भाई यह गलती मत करो. अभी तक ऐसा कोई सबूत सामने नहीं आया है कि भारत सरकार ने ऐसा कुछ किया है. संघर्ष शुरू होने के तुरंत बाद हमारे विदेश मंत्री को वहां जाना चाहिए था और कोशिश करनी चाहिए थी कि समस्या का हल वार्ता से निकले. लेकिन ऐसी कोई पहल भारत की ओर से नहीं हुई. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अन्य मंचों पर भारत मतदान से दूर रहा है. इससे ऐसा लगता है कि जैसे गलत काम में हम रूस का साथ दे रहे हैं. इस स्थिति से बचा जा सकता था.
भारत की विदेश नीति के बारे में पूछे जाने पर यशवंत सिन्हा ने कहा " नई विश्व व्यवस्था अगर बनती है तो उसमें भारत बहुत कमजोर स्थिति में हो जाता है. अगर इसी तरह ज्यादा शक्तिशाली देश, दूसरे देश के ऊपर आक्रमण करें तो कल चीन को भी यह मौका मिलेगा कि वह ताइवान के ऊपर हमला करे या हमारे यहां लद्दाख और अरुणाचल पर. क्योंकि चीन दावा करता रहा है कि अरुणाचल उसका है. तो कल वह अगर बलपूर्वक अरुणाचल को हथियाने के लिए अपनी सेना भेजे तो फिर क्या होगा? दूसरी बात यह है कि जिस तरह दुनिया यूक्रेन के मामले में तटस्थ रह गई, उसी प्रकार वह भारत और चीन के मामले में भी रह जाएगी. नयी विश्व व्यवस्था बनती है तो उसमें सब देश खुद की चिंता करने के लिए छोड़ दिए जाएंगे. भारत को चीन को लेकर जरूर चिंता करनी चाहिए और पूरे इंतजाम करने चाहिए. हमें गफलत में नहीं रहना चाहिए.
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