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This Article is From May 22, 2020

ईद पर न मस्जिद में नमाज पढ़ी जाएगी, न लोग गले मिलेंगे और न कोई किसी के घर जाएगा

किसने सोचा था कि कभी ऐसा भी होगा जब सारे रास्ते बंद होंगे, हॉटस्पॉट होंगे, पुलिस का पहरा होगा और ईद (Eid) कुछ इस तरह गुजरेगी

प्रतीकात्मक फोटो.

लखनऊ:

ईद (Eid) को बस चंद रोज ही बाकी हैं, लेकिन यह देश की पहली ऐसी ईद होगी जिसमें न तो लोग मस्जिदों में नमाज़ पढ़ेंगे, न किसी के घर जाएंगे, न हाथ मिलाएंगे, न गले मिलेंगे. मुस्लिम धर्मगुरुओं ने इस पर रोक लगा दी है. यह भी अपील की है कि ईद के बजट की आधी रकम लॉकडाउन से बेरोजगार हुए लोगों की मदद पर खर्च करें. ईद, दीवाली के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है जिसमें सैकड़ों करोड़ की खरीददारी होती है, जो इस बार बंद हो गई.

लखनऊ में अलविदा की नमाज आम तौर पर करीब एक लाख लोग पढ़ते होंगे लेकिन आज ईदगाह में मौलाना खालिद रशीद के पीछे सिर्फ चार लोगों ने नमाज पढ़ी. वह भी बहुत दूर-दूर नज़र आए. मौलाना ने अपील की कि ईद में नमाज़ तो घर में पढ़ें ही..किसी से ईद मिलने न जाएं बल्कि फ़ेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्वीटर और वीडियो मैसेज से मुबारकबाद दें.

मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना खालिद रशीद फिरंगीमहली ने कहा कि जितनी भी इबादतगाहें हैं सब बंद हैं, पूरी दुनिया में बंद हैं. आप सउदी अरब में देख लें, तमाम मस्जिदें बंद हैं. सिर्फ चंद लोग जो मस्जिदों में रहते हैं वही नमाज़ें अदा करते हैं.

लखनऊ में अलविदा और ईद की नमाज जिन और दो बड़ी जगहों पर होती है उनमें से एक टीले वाली मस्जिद में ताला लगा रहा. यहां करीब 50 हजार लोग नमाज़ अदा करते हैं. उसके पास ही बड़े इमामबाड़े में आसिफी मस्जिद में शिया मुसलमानों की नमाज़ होती है. इमामबाड़े और मस्जिद के गेट बंद हैं और बाहर पुलिस का पहरा है.

कहते हैं कि नवाब आसिफुद्दौला ने लखनऊ के बड़े इमामबाड़े और आसिफी मस्जिद को अकाल के वक्त बनवाया था ताकि भूखे लोगों को रोज़ी दी जा सके और उनकी जान बचाई जा सके.आज इस मस्जिद की तारीख में पहली बार लोगों की जान की हिफाजत करने के लिए ईद की नमाज़ नहीं होगी.

पुराने लखनऊ की इन तारीखी इमारतों को कभी किसी ने इतना तन्हा नहीं देखा होगा. लगता है कि इमारतें खड़ी हैं लेकिन उनका दीदार करने वाला कोई नहीं. पुराने लखनऊ के सारे बाज़ार अभी भी बंद हैं. जिन बाजारों में रमजान में सारी रात  रतजगा होता था वे सोए पड़े हैं. मौलाना ने कहा है कि लॉकडाउन से तमाम भाई बहनें बेरोज़गार हुए हैं इसलिए सिर्फ़ आधी रक़म से ईद मनाएं, आधी उन्हें दें.

खालिद रशीद फिरंगीमहली ने कहा कि जो अनएम्प्लायमेंट इतनी तेज़ी से बढ़ रहा है, और जो लोग इतनी तेज़ी से भुखमरी का शिकार हो रहे हैं उसको मद्देनज़र रखते हुए यह भी अपील की गई है कि जिसकी फैमिली का जो भी ईद का बजट है उसका अराउंड फिफ्टी पर्सेंट गरीब गुरबा में तकसीम करें.

पूरे रमजान लखनऊ के फुटपाथ पर हजारों दुकानें उन गरीब ईद मानने वालों के लिए लगती थीं जो किसी शोरूम में जाने की हैसियत नहीं रखते...इस बार किसी फुटपाथ पर गरीबों के लिए कुछ नहीं बिका.

स्थानीय निवासी शामिल शम्सी ने कहा कि ''एक दुकान पर मैं गया था. वहां पर उसके पास लेडीस सूट जो थे वह 125 रुपये से शुरू थे. तो मैं देखकर बहुत हैरत में था कि 125 रुपये में एक औरत का ..बिना सिला सूट इस तरह से मिल रहा है. यानी एक आदमी अपनी आधी दिहाड़ी में वहां से परचेसिंग कर सकता था.''

हम जिंदगी में बहुत सारी कल्पनाएं करते हैं, लेकिन बहुत सारी ऐसी चीज़ें होती हैं जो कल्पना से परे होती हैं. इस शहर में सबसे ज़्यादा रौनक़ वाला त्योहार ईद...किसने सोचा था कि कभी ऐसा होगा...जहां सारे रास्ते बंद होंगे…हॉटस्पॉट होंगे…पुलिस के लोग होंगे कि उसको कोई तोड़कर अंदर न जा सके..और ईद कुछ इस तरह गुजरेगी. 

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