
उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि ऐसे सहजीवन (लिव-इन रिलेशनशिप) से, जहां पुरुष और स्त्री लंबे समय तक पति-पत्नी के रूप में साथ रहें हों, जन्म लेने वाली संतान को अवैध नहीं कहा जा सकता है।
न्यायमूर्ति बीएस चौहान और न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर की खंडपीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ एक वकील की याचिका पर यह स्पष्टीकरण दिया। उच्च न्यायालय के निर्णय में सहजीवन के बारे में कुछ टिप्पणियां की गई थीं।
वकील उदय गुप्ता ने इस याचिका में कहा था कि उच्च न्यायालय की यह टिप्पणी कानूनी रूप से उचित नहीं है कि एक वैध विवाह का यह मतलब जरूरी नही है कि विवाहित दंपती को सभी पारंपरिक संस्कारों का पालन करना होगा और फिर विधिपूर्वक संपादित करना होगा।
शीर्ष अदालत ने याचिका का निबटारा करते हुए कहा कि वह इस मामले में और विचार करना आवश्यक नहीं समझती है।
न्यायाधीशों ने कहा, 'हमारा मत है कि ये टिप्पणियां पेश मामले के तथ्यों पर की गई हैं। वास्तव में, न्यायाधीश कहना चाहते थे कि यदि पुरूष और स्त्री लंबे समय तक एक साथ पति पत्नी के रूप में रहते हैं, भले ही कभी शादी नहीं की हो, तो इसे विवाह ही माना जाएगा और उनके पैदा होने वाली संतान अवैध नहीं कही जा सकती है।'
न्यायालय ने 2010 के मदन मोहन सिंह बनाम रजनीकांत प्रकरण का जिक्र करते हुए कहा कि इसी दृष्टिकोण को कई फैसलों में दोहराया गया है।
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