लेखक राजेश जोशी (फोटो वेबसाइट junglekey.in से साभार)
श्रीनगर:
कश्मीरी लेखक और कवि गुलाम नबी खयाल भी साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों में शामिल हो गए हैं। उन्होंने कहा कि देश में अल्पसंख्यक आज असुरक्षित और खतरा महसूस करते हैं। उनके साथ ही मध्यप्रदेश के जाने-माने कवि और लेखक राजेश जोशी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हो रहे हमलों के विरोध में साहित्य सम्मान लौटाने का फैसला लिया है। उन्हें वर्ष 2002 में साहित्य अकादमी सम्मान से नवाजा गया था।
खयाल ने सोमवार को पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘मैंने पुरस्कार लौटाने का फैसला किया है। देश में अल्पसंख्यक असुरक्षित और खतरा महसूस कर रहे हैं। उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा है।’’
अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में सरकार नाकाम
उन्होंने कहा, ‘‘सरकार देश के संविधान के मुताबिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करने के अपने दायित्व को निभाने में नाकाम रही है। मैं इन घटनाओं का मूकदर्शक नहीं हो सकता। इसलिए मैंने भारत में अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती नफरत के विरोध में अकादमी पुरस्कार लौटाने का फैसला किया है।’’
‘गाशिक मीनार’ के लिए मिला था पुरस्कार
अपनी किताब ‘गाशिक मीनार’ के लिए 1975 में यह प्रतिष्ठित खिताब जीतने वाले खयाल ने कहा कि वह जल्द ही नकद पुरस्कार और ताम्र पट्टिका अकादमी को वापस कर देंगे।
यह पहली बार है जब किसी कश्मीरी लेखक ने देश के कुछ भागों में ‘सांप्रदायिक माहौल’ के खिलाफ अपना साहित्यिक सम्मान लौटाने का फैसला किया है जो महाराष्ट्र से लेकर उत्तरप्रदेश और अन्य जगहों पर फैलता जा रहा है।
लेखकों पर हुए हमलों पर सरकार मौन : जोशी
लेखक राजेश जोशी ने सेामवार को आईएएनएस से कहा कि देश में लेखकों पर हमले कर उनकी हत्याएं की गईं और सरकार मौन है। एक तरफ देश में जहां असहिष्णुता बढ़ रही है, वहीं अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले किए जा रहे हैं। इसके अलावा दादरी की घटना के बाद केंद्र सरकार का जो रवैया है, वह बताता है कि यह देश फासीवाद की ओर बढ़ रहा है।
उन्होंने आगे कहा कि विरोध का अपना तरीका होता है, लिहाजा उन्होंने साहित्य सम्मान लौटाने का फैसला लिया है।
साहित्य अकादमी के ‘युवा पुरस्कार’ विजेता ने अवॉर्ड लौटाया
साहित्य अकादमी के ‘युवा पुरस्कार’ से सम्मानित लेखक अमन सेठी ने रविवार को कहा कि वह अपना अवॉर्ड लौटा रहे हैं, क्योंकि कन्नड़ लेखक एम एम कलबुर्गी की हत्या पर साहित्यिक संस्था के ‘‘सख्त रुख’’ नहीं दिखा पाने पर वह ‘‘स्तब्ध’’ हैं।
सेठी ने एक ट्वीट में कहा, 'जब साहित्यकारों को निशाना बनाया जा रहा हो, उस वक्त उनके प्रति एकजुटता प्रदर्शित करने से हिचकिचा कर अकादमी अपनी वैधता बरकरार नहीं रख सकती।'
गौरतलब है कि साहित्यकारों व लेखकों पर हुए हमले और देश में बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में हाल में कई साहित्यकार और लेखक अपना विरोध दर्ज कराते हुए साहित्य सम्मान लौटा चुके हैं।
खयाल ने सोमवार को पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘मैंने पुरस्कार लौटाने का फैसला किया है। देश में अल्पसंख्यक असुरक्षित और खतरा महसूस कर रहे हैं। उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा है।’’
अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में सरकार नाकाम
उन्होंने कहा, ‘‘सरकार देश के संविधान के मुताबिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करने के अपने दायित्व को निभाने में नाकाम रही है। मैं इन घटनाओं का मूकदर्शक नहीं हो सकता। इसलिए मैंने भारत में अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती नफरत के विरोध में अकादमी पुरस्कार लौटाने का फैसला किया है।’’
‘गाशिक मीनार’ के लिए मिला था पुरस्कार
अपनी किताब ‘गाशिक मीनार’ के लिए 1975 में यह प्रतिष्ठित खिताब जीतने वाले खयाल ने कहा कि वह जल्द ही नकद पुरस्कार और ताम्र पट्टिका अकादमी को वापस कर देंगे।
यह पहली बार है जब किसी कश्मीरी लेखक ने देश के कुछ भागों में ‘सांप्रदायिक माहौल’ के खिलाफ अपना साहित्यिक सम्मान लौटाने का फैसला किया है जो महाराष्ट्र से लेकर उत्तरप्रदेश और अन्य जगहों पर फैलता जा रहा है।
लेखकों पर हुए हमलों पर सरकार मौन : जोशी
लेखक राजेश जोशी ने सेामवार को आईएएनएस से कहा कि देश में लेखकों पर हमले कर उनकी हत्याएं की गईं और सरकार मौन है। एक तरफ देश में जहां असहिष्णुता बढ़ रही है, वहीं अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले किए जा रहे हैं। इसके अलावा दादरी की घटना के बाद केंद्र सरकार का जो रवैया है, वह बताता है कि यह देश फासीवाद की ओर बढ़ रहा है।
उन्होंने आगे कहा कि विरोध का अपना तरीका होता है, लिहाजा उन्होंने साहित्य सम्मान लौटाने का फैसला लिया है।
साहित्य अकादमी के ‘युवा पुरस्कार’ विजेता ने अवॉर्ड लौटाया
साहित्य अकादमी के ‘युवा पुरस्कार’ से सम्मानित लेखक अमन सेठी ने रविवार को कहा कि वह अपना अवॉर्ड लौटा रहे हैं, क्योंकि कन्नड़ लेखक एम एम कलबुर्गी की हत्या पर साहित्यिक संस्था के ‘‘सख्त रुख’’ नहीं दिखा पाने पर वह ‘‘स्तब्ध’’ हैं।
सेठी ने एक ट्वीट में कहा, 'जब साहित्यकारों को निशाना बनाया जा रहा हो, उस वक्त उनके प्रति एकजुटता प्रदर्शित करने से हिचकिचा कर अकादमी अपनी वैधता बरकरार नहीं रख सकती।'
Why I am returning my Sahitya Akademi Puraskar http://t.co/RoLDwaeoMT
— Aman Sethi (@Amannama) October 11, 2015
उन्होंने अपने ट्वीट में अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को ई-मेल किए गए अपने बयान का लिंक भी डाला।गौरतलब है कि साहित्यकारों व लेखकों पर हुए हमले और देश में बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में हाल में कई साहित्यकार और लेखक अपना विरोध दर्ज कराते हुए साहित्य सम्मान लौटा चुके हैं।
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