पढ़ाई के लिए अमेरिका जाने वाले डॉक्टरों को अब लौटना होगा वतन

पढ़ाई के लिए अमेरिका जाने वाले डॉक्टरों को अब लौटना होगा वतन

प्रतीकात्मक चित्र

नई दिल्ली:

भारतीय डॉक्टरों के अमेरिका जाकर प्रैक्टिस करने और वहीं बसने के सपने को अब ठेस लगने वाली है। भारत सरकार ने यह तय किया है कि वह अमेरिका में आगे की पढ़ाई करने के लिए जाने वाले डॉक्टरों को 'नो ओब्लीगेशन टू रिटर्न टू इंडिया' (भारत लौटने की बाध्यता नहीं) जारी नहीं करेगी।

इसी सर्टिफिकेट के बाद यहां पर एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए अमेरिका जाने वाले डॉक्टरों को काम शुरू करने में आसानी होती थी। अब स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से लिए गए इस निर्णय के बाद सभी को भारत में लौटना बाध्यकारी होगा।

अमेरिकी आव्रजन कानून के अनुसार पढ़ाई के बाद भारत में दो साल के निवास की बाध्यता पूरी करने वालों को जे-1 वीजा मिलता है। इस बाध्यता से छुटकारा पाने के लिए एनओआरआई सर्टिफिकेट लिया जाता है। इसके बाद एच1बी वीजा या काम करने का वीजा मिलता है।

सरकार का यह आदेश 2012 में लिए गए नीतिगत फैसले पर ही जोर देना है ताकि देश से ब्रेन ड्रेन को रोका जा सके।

उल्लेखनीय है कि भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में विशेषज्ञों की बहुत कमी है। जानकारों के अनुसार 82 प्रतिशत सर्जन, फिजीशियन और पीडियाट्रिशियन की कमी है। और जहां पर प्रति हजार में एक डॉक्टर होना चाहिए वहीं भारत में 40 फीसदी की कमी है।

वहीं, आंकड़ों के अनुसार 2010-2014 के बीच केवल 3947 डॉक्टर ही अमेरिका में पढ़ने के लिए गए हैं।

मेदांता के डॉ नरेश त्रेहन का मानना है कि सरकार के इस आदेश में कोई खराबी नहीं है। सभी देशों में ऐसे नियम हैं और भारत इस मामले में काफी ढीला रहा है। विदेश में पढ़कर भारत लौटने वाले बहुत ही थोड़े लोग होते हैं। आपको अपने देश और देशवासियों की सेवा के प्रति भी जागरुक होना चाहिए।

सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि हर साल करीब 50000 हजार एमबीबीएस करने वाले डॉक्टरों में आधे से भी कम का एडमिशन पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए हो पाता है।

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उधर, जन स्वास्थ्य अभियान से जुड़े डॉक्टर अमित सेनगुप्ता का कहना है कि भारत में डॉक्टरों की प्रतिभा के हिसाब से मौके नहीं हैं, उनके पास नौकरियां नहीं हैं।