नई दिल्ली:
खुफिया रिपोर्टों के अनुसार नक्सली संगठन अपने हमलों के लिए अब आने वाले कुछ महीनों में दिल्ली जैसे बड़े शहरों को भी निशाना बना सकते हैं, क्योंकि वे बड़े पैमाने पर हिंसा फैलाने के मौके तलाश रहे हैं।
खुफिया एजेंसियों द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान खींचने और अपने कैडरों का हौसला बढ़ाने के लिहाज से अधिक से अधिक फायदा हासिल करने की कोशिश में नक्सली अब बड़े पैमाने पर हिंसा फैलाने की कोशिश करेंगे और शहरी इलाकों में आसानी से शिकार बनाए जा सकने वाले लोगों को निशाने पर लेंगे।
रिपोर्ट में कहा गया कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेताओं सहित 27 लोगों की हत्या के बाद नक्सलियों का हौसला काफी बढ़ गया है, और अब वे अपने प्रभावक्षेत्र के बाहर भी गतिविधियों का विस्तार करना चाहते हैं और निशाने तय कर हत्याएं करने को महत्वपूर्ण विकल्प मान रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दरअसल, माओवादियों को हाल के समय में काफी नुकसान झेलना पडा है और जगदलपुर में 25 मई (शनिवार) को किया गया हमला माओवादियों की राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आने की कोशिशों का परिणाम था। इसके साथ ही वे अपनी उपस्थिति वाली जगहों पर रह रहे लोगों पर भी अपने प्रभाव को फिर स्थापित करना चाहते थे।
सरकारी सूत्रों ने कहा कि माओवादियों की निराशा का अंदाजा उनके शीर्ष नेताओं के बीच हुई बातचीत को सुनकर लगाया जा सकता है। दरअसल, सुरक्षा एजेंसियों ने माओवादियों के कुछ शीर्ष नेताओं के बीच होने वाली बातचीत सुनी है, जो छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा के घने जंगलों में छिपे हुए हैं।
सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि माओवादियों के खिलाफ कार्रवाई एक दीर्घकालिक लक्ष्य है, और इसके लिए अर्द्धसैनिक बलों के 27 हजार जवानों की और ज़रूरत पड़ेगी। बस्तर (छत्तीसगढ़), मल्कानगिरि, कोरापुट (ओडिशा) और लातेहर (झारखंड) में नक्सलियों के प्रभाव वाले इलाकों से उनके सफाये में कम से कम दो से तीन साल लगेंगे। इस समय नक्सल-विरोधी अभियानों में अर्द्धसैनिक बलों के 82 हजार जवान तैनात हैं। इसके अलावा राज्य पुलिस बलों के जवान भी इन अभियानों में शामिल होते हैं।
सूत्रों ने कहा कि मध्य और पूर्वी भारत में कई इलाके हैं, जहां प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं है और पुलिस भी अत्यंत कम संख्या में तैनात है। नक्सली इसी स्थिति का फायदा उठा रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि बस्तर क्षेत्र में, जो केरल राज्य के बराबर क्षेत्रफल वाला है, केवल 18 हजार सुरक्षा जवान तैनात हैं, जो कतई नाकाफी हैं।
सुरक्षा बल कोबरा और आंध्र प्रदेश के ग्रेहाउण्ड्स जैसे विशिष्ट बलों को शामिल कर नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक अभियान की तैयारी कर रहे हैं, ऐसे में खुफिया जानकारी पर आधारित अभियान निकट भविष्य में हो सकते हैं।
नई रणनीति के तहत छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा में मानवरहित हवाई यान (यूएवी) की मदद से पहले तलाशी अभियान चलाया जाएगा और फिर विशेष बलों सहित सुरक्षा बलों का उपयोग कर कई स्थानों से हमला बोला जाएगा। सूत्रों ने कहा कि नई रणनीति के तहत पहले नक्सलियों के नियंत्रण वाले इलाकों पर कब्जा किया जाएगा और फिर वहीं से सुरक्षाबलों का अभियान संचालित किया जाएगा।
खुफिया एजेंसियों द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान खींचने और अपने कैडरों का हौसला बढ़ाने के लिहाज से अधिक से अधिक फायदा हासिल करने की कोशिश में नक्सली अब बड़े पैमाने पर हिंसा फैलाने की कोशिश करेंगे और शहरी इलाकों में आसानी से शिकार बनाए जा सकने वाले लोगों को निशाने पर लेंगे।
रिपोर्ट में कहा गया कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेताओं सहित 27 लोगों की हत्या के बाद नक्सलियों का हौसला काफी बढ़ गया है, और अब वे अपने प्रभावक्षेत्र के बाहर भी गतिविधियों का विस्तार करना चाहते हैं और निशाने तय कर हत्याएं करने को महत्वपूर्ण विकल्प मान रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दरअसल, माओवादियों को हाल के समय में काफी नुकसान झेलना पडा है और जगदलपुर में 25 मई (शनिवार) को किया गया हमला माओवादियों की राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आने की कोशिशों का परिणाम था। इसके साथ ही वे अपनी उपस्थिति वाली जगहों पर रह रहे लोगों पर भी अपने प्रभाव को फिर स्थापित करना चाहते थे।
सरकारी सूत्रों ने कहा कि माओवादियों की निराशा का अंदाजा उनके शीर्ष नेताओं के बीच हुई बातचीत को सुनकर लगाया जा सकता है। दरअसल, सुरक्षा एजेंसियों ने माओवादियों के कुछ शीर्ष नेताओं के बीच होने वाली बातचीत सुनी है, जो छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा के घने जंगलों में छिपे हुए हैं।
सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि माओवादियों के खिलाफ कार्रवाई एक दीर्घकालिक लक्ष्य है, और इसके लिए अर्द्धसैनिक बलों के 27 हजार जवानों की और ज़रूरत पड़ेगी। बस्तर (छत्तीसगढ़), मल्कानगिरि, कोरापुट (ओडिशा) और लातेहर (झारखंड) में नक्सलियों के प्रभाव वाले इलाकों से उनके सफाये में कम से कम दो से तीन साल लगेंगे। इस समय नक्सल-विरोधी अभियानों में अर्द्धसैनिक बलों के 82 हजार जवान तैनात हैं। इसके अलावा राज्य पुलिस बलों के जवान भी इन अभियानों में शामिल होते हैं।
सूत्रों ने कहा कि मध्य और पूर्वी भारत में कई इलाके हैं, जहां प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं है और पुलिस भी अत्यंत कम संख्या में तैनात है। नक्सली इसी स्थिति का फायदा उठा रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि बस्तर क्षेत्र में, जो केरल राज्य के बराबर क्षेत्रफल वाला है, केवल 18 हजार सुरक्षा जवान तैनात हैं, जो कतई नाकाफी हैं।
सुरक्षा बल कोबरा और आंध्र प्रदेश के ग्रेहाउण्ड्स जैसे विशिष्ट बलों को शामिल कर नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक अभियान की तैयारी कर रहे हैं, ऐसे में खुफिया जानकारी पर आधारित अभियान निकट भविष्य में हो सकते हैं।
नई रणनीति के तहत छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा में मानवरहित हवाई यान (यूएवी) की मदद से पहले तलाशी अभियान चलाया जाएगा और फिर विशेष बलों सहित सुरक्षा बलों का उपयोग कर कई स्थानों से हमला बोला जाएगा। सूत्रों ने कहा कि नई रणनीति के तहत पहले नक्सलियों के नियंत्रण वाले इलाकों पर कब्जा किया जाएगा और फिर वहीं से सुरक्षाबलों का अभियान संचालित किया जाएगा।
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