नेक चंद की फाइल तस्वीर (फोटो सौजन्य : nekchand.com)
चंडीगढ़:
चंडीगढ़ को रॉक गार्डन की पहचान देने वाले जाने माने शिल्पकार नेक चंद का लंबी बीमारी के बाद शुक्रवार तड़के निधन हो गया। वह कैंसर से पीड़ित थे। कचरे के ढेर से नायाब रॉक गार्डन बनाने के लिए भारत सरकार ने उन्हें 1984 में पद्म श्री से नवाज़ा था।
टूटे हुए चीनी मिट्टी के मग और प्लेट के टुकड़ों से मूर्ती, कांच की चूड़ियों को पंछियों का आकार, सिरेमिक के बेकार हो चुके फ्यूज़ प्लग से कलाकृति... वह तमाम चीज़ें जिन्हें हम बेकार समझ कूड़े के ढेर का हिस्सा बना देते हैं। एक रोड इंस्पेक्टर ने उन्हें तराशकर कुछ यूं सहेज दिया।
चंडीगढ़ की पहचान रॉक गार्डन के निर्माता नेक चंद इस दुनिया से रुखसत हो गए। 1957 से शुरू हुआ सफर, गुरुवार को अचानक थम गया। चंडीगढ़ पीजीआई में उन्होंने अंतिम सांस ली।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर श्रद्धांजलि दी। उन्होंने लिखा, 'नेक चंद जी हमेशा अपनी कला की प्रतिभा और शानदार शिल्प के लिए याद किए जाएंगे। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।'
रॉक गार्डन की देख रेख में उनका हाथ बंटाते रहे नेक चंद के बेटे अनुज सैनी बताते हैं कि उनके पिता के अदर एक कला थी, उसको उन्होंने बहार निकला, काम तो अपनी जगह है, काम भी उन्होंने उतने ही दम से किया और अपना शौक़ भी उसी दम से पूरा किया। एक बार तो एक अफसर ने रॉक गार्डन पर बुलडोज़र चलाने की कोशिश की, लेकिन चंडीगढ़ की जनता उनके साथ खड़ी हो गई।
नेक चंद को श्रद्धांजलि देने के लिए चंडीगढ़ प्रसाशन ने रॉक गार्डन में दो दिन के लिए प्रवेश नि:शुल्क कर दिया है। देश-विदेश से रोज़ाना करीब पांच हज़ार सैलानी रॉक गार्डन देखने आते हैं और नेक चंद के इस शाहकार की तारीफ़ करते नहीं थकते।
नेक चंद के प्रसंशकों में से एक जय प्रकाश कहते हैं कि न सिर्फ देश, बल्कि बाहर से भी जो लोग विजिट करने आए। उनको भी साथ जुड़ने और रद्दी सामानों की रीसाइक्लिंग कर उसके इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया।
मध्य प्रदेश से आए एक सैलानी ने कहा कि एक आदमी इतना अच्छा काम कर सकता है ये अविश्वश्नीय है। ऐसे काम विदेशों में तो सुनते हैं, लेकिन अपने हिंदुस्तान में इतना बड़ा काम करना बहुत बड़ी बात है।
नेक चंद का पार्थिव शरीर आम जनता के अंतिम दर्शनों के लिए शनविार को रॉक गार्डन में रखा जाएगा। परिवार ने उनकी कर्मस्थली रॉक गार्डन में ही उनका अंतिम संस्कार करने के लिए चंडीगढ़ प्रसाशन से गुज़ारिश की है।
टूटे हुए चीनी मिट्टी के मग और प्लेट के टुकड़ों से मूर्ती, कांच की चूड़ियों को पंछियों का आकार, सिरेमिक के बेकार हो चुके फ्यूज़ प्लग से कलाकृति... वह तमाम चीज़ें जिन्हें हम बेकार समझ कूड़े के ढेर का हिस्सा बना देते हैं। एक रोड इंस्पेक्टर ने उन्हें तराशकर कुछ यूं सहेज दिया।
चंडीगढ़ की पहचान रॉक गार्डन के निर्माता नेक चंद इस दुनिया से रुखसत हो गए। 1957 से शुरू हुआ सफर, गुरुवार को अचानक थम गया। चंडीगढ़ पीजीआई में उन्होंने अंतिम सांस ली।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर श्रद्धांजलि दी। उन्होंने लिखा, 'नेक चंद जी हमेशा अपनी कला की प्रतिभा और शानदार शिल्प के लिए याद किए जाएंगे। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।'
रॉक गार्डन की देख रेख में उनका हाथ बंटाते रहे नेक चंद के बेटे अनुज सैनी बताते हैं कि उनके पिता के अदर एक कला थी, उसको उन्होंने बहार निकला, काम तो अपनी जगह है, काम भी उन्होंने उतने ही दम से किया और अपना शौक़ भी उसी दम से पूरा किया। एक बार तो एक अफसर ने रॉक गार्डन पर बुलडोज़र चलाने की कोशिश की, लेकिन चंडीगढ़ की जनता उनके साथ खड़ी हो गई।
नेक चंद को श्रद्धांजलि देने के लिए चंडीगढ़ प्रसाशन ने रॉक गार्डन में दो दिन के लिए प्रवेश नि:शुल्क कर दिया है। देश-विदेश से रोज़ाना करीब पांच हज़ार सैलानी रॉक गार्डन देखने आते हैं और नेक चंद के इस शाहकार की तारीफ़ करते नहीं थकते।
नेक चंद के प्रसंशकों में से एक जय प्रकाश कहते हैं कि न सिर्फ देश, बल्कि बाहर से भी जो लोग विजिट करने आए। उनको भी साथ जुड़ने और रद्दी सामानों की रीसाइक्लिंग कर उसके इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया।
मध्य प्रदेश से आए एक सैलानी ने कहा कि एक आदमी इतना अच्छा काम कर सकता है ये अविश्वश्नीय है। ऐसे काम विदेशों में तो सुनते हैं, लेकिन अपने हिंदुस्तान में इतना बड़ा काम करना बहुत बड़ी बात है।
नेक चंद का पार्थिव शरीर आम जनता के अंतिम दर्शनों के लिए शनविार को रॉक गार्डन में रखा जाएगा। परिवार ने उनकी कर्मस्थली रॉक गार्डन में ही उनका अंतिम संस्कार करने के लिए चंडीगढ़ प्रसाशन से गुज़ारिश की है।
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