7 years ago
नई दिल्ली:
NDTV Youth For Change कॉनक्लेव में बॉलीवुड की कई बड़ी हस्तियां हिस्सा बन रही हैं. बॉलीवुड की 'क्वीन' कहलाने वाली कंगना रनोट, निर्देशक हंसल मेहता, एक्टर अर्जुन कपूर, अजय देवगन, इलियाना डिक्रूज, इमरान हाशमी, ईशा गुप्ता, विद्युत जमवाल, रणदीप हुड्डा और फरहान अख्तर इस कॉनक्लेव का हिस्सा बन रहे हैं. बॉलीवुड में अपनी एक्टिंग और अपने बेबाक अंदाज के लिए प्रसिद्ध कंगना और निर्देशक हंसल मेहता यहां रवीश कुमार के साथ सुपरस्टार होने के परिणामों के बारे में बात करेंगी. वहीं इस साल 'हाफ गर्लफ्रेंड' और 'मुबारकां' जैसी फिल्मों में नजर आ चुके अर्जुन कपूर यहां लैंगिक भेद पर होने वाली चर्चा का हिस्सा बनेंगे.
वहीं लगातार बदलते संगीत के स्वरूप पर आज की पीढ़ी के लिए संगीत पर होने वाली चर्चा का हिस्सा गायक नीति मोहन, अरमान मलिक, इरशाद कामिल और सचिन-जिगर बनेंगे. वहीं फिल्म 'बादशाहो' की टीम इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में लगातार होने वाले और अंतहीन बदलावों के बारे में बात करेगी. एक्टर फरहान अख्तर, 'बड़े पर्दे पर छोटे शहरों की कामयाबियों की दास्तां' जैसे विषय पर अपनी बात रखेंगे.
वहीं लगातार बदलते संगीत के स्वरूप पर आज की पीढ़ी के लिए संगीत पर होने वाली चर्चा का हिस्सा गायक नीति मोहन, अरमान मलिक, इरशाद कामिल और सचिन-जिगर बनेंगे. वहीं फिल्म 'बादशाहो' की टीम इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में लगातार होने वाले और अंतहीन बदलावों के बारे में बात करेगी. एक्टर फरहान अख्तर, 'बड़े पर्दे पर छोटे शहरों की कामयाबियों की दास्तां' जैसे विषय पर अपनी बात रखेंगे.
पानी के बचाने की मुहिम पर फरहान ने कहा कि घर पर ही आप पानी बचाने का काम किया जा सकता है. आप ग्लास में उतना ही पानी लें जितना पीना है. बरबाद न करें.
फरहान ने कहा कि हम इतनी तरक्की कर रहे हैं, चांद पर पहुंच गए हैं, लोग एक दूसरे को नहीं जान रहे हैं. सम्मान नहीं करते हैं. तमाम तरह के भेदभाव हैं.
जिंदगी न मिलेगी दोबारा मेरे चरित्र के काफी करीब है.
फरहान का मानना है कि हर इंसान में एक टैलेंट में होता है. आप उसे पहचाने और उस पर काम करें, कामयाबी मिलेगी.
@फरहान ने कहा कि वह फिल्म प्रमोशन के लिए अपने गांव नहीं गए थे, बल्कि अपने परिवार वालों से मिलने के लिए गए थे. इसके लिए मैंने प्रोडक्शन से कहा था कि एक दिन का समय निकालें.
फरहान अख्तर ने कहा कि एक समय गाने की म्यूजिक लिरिक से ज्यादा अहम हो गई थी. लोगों को लिरिक्स याद ही नहीं रहते थे. अब कुछ बदल रहा है. उन्होंने कहा कि ऐसा माना जाता है कि हर फिल्म चालू गाना होना चाहिए. माना जा रहा था कि एक गाना हिट हो गया तो फिल्म हिट हो जाएगी. लेकिन अब ऐसा नहीं है.
@फरहान ने कहा कि कहानी अच्छी न हो तो किसी भी लोकेशन में फिल्म शूट हो, कुछ नहीं होगा. कॉन्टेंट अच्छा होना ही चाहिए.
@ फरहान ने कहा कि ट्रेनर ने बताया कि आप क्या खाते हैं आपके शरीर पर उसका असर दिखता है. 20-30 परसेंट ही एक्सरसाइज का असर होता है.
@ फरहान ने कहा कि इस फिल्म को करने में थोड़ी आसानी हुई. मिल्खा में दिक्कत हुई थी. मेरे घर में उर्दू काफी हद तक बोली जाती है. लखनऊ की भाषा है. इस लिए आसान थी.
@फरहान ने कहा कि एक समय में दिल्ली में कहानियां बन रही थीं, फिल्में बन रहीं थी. अब दूसरे शहरों के लोग आ रहे हैं, वहां की कहानियां आ रही हैं. अच्छी बात है.
फिल्मों की लोकेशन या नाम छोटे शहरों के नाम पर बनने लगी हैं. इस पर फरहान अख्तर ने कहा कि यह सब कहानी बताने के लिए किया जाता है. इसमें किसी प्रकार की जरूरत या फंड की कमी नहीं होती है.
@फरहान अख्तर ने कहा कि लखनऊ सेंट्रल से एक सामाजिक संदेश जाता है. उन्होंने कहा कि बंदे बंद हो सकते हैं, सपने नहीं. इस फिल्म में किरदार का चरित्र शानदार है. हम सबके अपने सपने हैं. कभी कभी हम हालात के चलते सपने उस तरह से पूरा नहीं कर पाते, लेकिन हम सपना न भूलें. उसे पाने के लिए कुछ न कुछ करें.
NDTV यूथ फॉर चेन्ज - सेशन 8 @ 7:30pm, विषय : छोटे शहर की बड़ी कहानी... निधि कुलपति के साथ फरहान अख्तर
@विद्युत ने कहा कि इंडस्ट्री में एंट्री के लिए युवाओं में केवल टेलेंट हो. ऐसा टैलेंट जो किसी और में नहीं हो.
@अजय देवगन, ईशा, इमरान ने कहा कि कई लोग अपने आप को कानून से ऊपर समझने लगते हैं और दूसरे की निजी जिंदगी पर हमला करते हैं. अजय ने कहा कि हमें सावधान रहना पड़ता है, कहीं ऐसा कुछ न बोल दें कि फिल्म को नुकसान हो. हमारे कॉन्ट्रेक्ट में भी लिखा होता है कि हम ऐसा कुछ नहीं कहेंगे जिससे फिल्म को नुकसान हो.
@ अजय ने कहा कि अधिकतर फिल्में कुछ न कुछ संदेश देती हैं. यह जरूरी नहीं की देशभक्ति का संदेश हो.
@ अजय देवगन ने कहा कि हम अपने तरीके से समाज की सेवा करते हैं. हमारी फिल्म इंडस्ट्री में भी 90-95 प्रतिशत लोग देशभक्त हैं.
@अजय ने कहा कि हमारे कल्चर में म्यूजिक का अहम रोल है. कहानी में जरूरत के हिसाब से म्यूजिक हो. कहानी को आगे बढ़ाता हुआ म्यूजिक अच्छा होता है.
@अजय देवगन ने मैं भी काम पर होता हूं तो काम करता हूं और पैकअप के बाद बिल्कुल नहीं सोचता. घर पर मैंने कभी भी काम के बारे में बात तक नहीं करता हूं. मेरे लिए बीवी बच्चे काफी अहम हैं.
@ इलियाना ने कहा कि एक्टिंग को उठते सोते नहीं सोचती, मेरे लिए यह एक काम है. मेरा परिवार मेरे लिए अहम है. यह हमेशा के लिए नहीं है. मैं काम को एनजॉय कर रही हूं.
@विद्युत ने कहा कि रोल लेने में कोई असुरक्षा की भावना नहीं होती है. उन्होंने कहा कि परिवार में पैदा होने से ज्यादा कुछ नहीं होता, टैलेंट होना चाहिए.
@इमरान ने कहा कि फिल्मी दुनिया से संबंध होने की वजह से एंट्री आसान रहती है, लेकिन एक्टिंग नहीं आती तो कुछ नहीं होता. ऑडियंस ही सब तय करती है. स्टार के बच्चों पर ज्यादा दबाव होता है.
@अजय देवगन ने कहा कि अनिल कपूर की फिल्म और मेरी फिल्म साथ ही रिलीज हुई.
@अजय ने माना कि एक्टिंग मेरा शौक नहीं था. लेकिन मैंने तय किया कि जब करूंगा तो पूरे पैशन के साथ से करूंगा. उन्होंने कहा कि मैंने फिर वैसे ही काम किया.
@इलियाना ने कहा कि आप पर पैसा लगता है इसलिए एक्टिंग ही सबसे जरूरी है. उन्होंने कहा कि मेरी एक सीमा है और मैं सीमा से बाहर नहीं जाऊंगी.
@अजय ने कहा कि समाज में समस्याएं हैं लेकिन समाज में अच्छे और बुरे लोग हैं.
@इलियाना ने फिल्म में महिला पुरुष में भेदभाव की बात करते हुए कहा कि उन्हें ऐसा नहीं लगा. उन्होंने कहा कि प्राइव डिफरेंस है लेकिन कई बार मेल एक्टर फिल्म को कंधों पर ले जाता है.
@ इमरान ने कहा कि अपने ऊपर लगे टैग को हटाने के लिए यह फिल्म की. फिल्म डायरेक्टर से सिर्फ एक ही सवाल किया था. क्या फिल्म में कोई सीन है. उसने कहा, नहीं. मैंने कहा, स्क्रिप्ट मत सुनाई कांट्रेक्ट साइन करता हूं.
@ अजय देवगन ने कहा कि मैं पीछे मुड़कर ज्यादा नहीं देखता हूं. मैं आगे देखता हूं. बस गलतियों पर ध्यान रखता हूं.
@अजय देवगन का कहना है कि पुरानी कहानी के फंसाने पर फिल्म है. फिल्म उस कहानी के बैकड्रॉप में बनी है.
@विद्युत जामवाल ने फिल्म पर कहा कि विनोद खन्ना और रजनीकांत भी यंग थे जब विलेन बने. उन्होंने कहा कि हर आदमी के अंदर एक विलेन होता है.
@ईशा का मानना है कि इस फिल्म के निर्देशक और आर्ट निर्देशक ने बहुत मेहनत की है.
@इलियाना ने कहा कि बादशाहो की कहानी बहुत अच्छी है. इस फिल्म हिस्सा बनना गौरव की बात है.
@AjayDevgn ने कहा कि उम्र से कोई फर्क नहीं पड़ता, दिल से जवान होना चाहिए.
@इमरान का कहना है कि 15-30 के लोग फिल्म ज्यादा देखते हैं. बादशाहो भारत की ही एक कहाननी से जुड़ी हुई फिल्म है.
NDTV यूथ फॉर चेन्ज : सेशन 7 - विषय : द एंडलेस इवॉल्यूशन विदइन द एन्टरटेनमेंट इंडस्ट्री पर सिक्ता देव के साथ अजय देवगन (अभिनेता), इमरान हाशमी (अभिनेता), इलियाना डिक्रूज़ (अभिनेत्री), ईशा गुप्ता (अभिनेत्री), विद्युत जमवाल (अभिनेता).
@अभिनंदन का कहना है कि ब्लू व्हेल तक की बात नहीं होनी चाहिए, कई और भी खतरे हैं, मानवीय मूल्यों पर नजर रखनी चाहिए, उनके बारे में बच्चों को बताना चाहिए. घर में बच्चों पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है. वहां पर उन्हें बदला जा सकता है. स्कूल से भी ज्यादा असर घर से पड़ता है. उन्होंने कहा कि स्कूल पर सबकुछ नहीं छोड़ा जा सकता है. उनका कहना है कि अगली दो पीढ़ी में स्कूल की रेलेवेंस (उपयोगिता) कम हो जाएगी.
@जितेन ने कहा कि बॉलीवुड स्टार भी गेम को प्रमोट करते हैं. यह नहीं होना चाहिए. कानून कुछ असर करेगा लेकिन जवाब नहीं है. बच्चों पर तकनीक रोक से भी हल नहीं निकलेगा. बच्चे स्मार्ट हैं. बच्चों को एजुकेट किया जाए. स्कूल में बच्चों को समझाएं.
@ गौरी ईश्वरन ने कहा कि कई जगहों पर गैर जिम्मेदारी है. सभी को समस्या का समाधान मालूम है, लेकिन कोई उसे करता नहीं है. स्कूल में बच्चों से कितने लोग बात करते हैं. कितने स्कूल बच्चों को काउंसलिंग देते हैं. स्कूलों में काउंसलिंग की व्यवस्था नहीं होती, होनी चाहिए. कितने स्कूलों में अपने को समझने की ट्रेनिंग दी जाती है, कितना उन्हें बताया जाता है. अभिभावक भी बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं. अब दोनों मां-बाप काम कर रहे हैं, बच्चे कुछ अकेले रह जाते हैं.
@ गौरी ईश्वरन ने भी माना कि बच्चों को लिए वर्कशॉप होनी चाहिए. बच्चों को बचाने के लिए अभिभावक, टीचर और स्कूल भी भी जिम्मेदारी है.
@करुणा ने कहा कि तकनीक आगे ही रहेगी. हमें यह देखना होगा कि जब भी कुछ क्राइम होगा कानून हल तो निकलेगा. @जितेन ने कहा कि बच्चों को जिम्मेदारी दें और बच्चों को समय दें. बच्चों को सोशल मीडिया का प्रयोग करने के बारे में बताया जाए और ट्रेनिंग दी जाए.
@जितेन ने कहा कि सीबीएसई ने गैजेट पर रोक लगा दी. लेकिन बच्चों को टैपलेट लैपटॉप से बहुत कुछ सीखते हैं. उन्होंने कहा कि बैन करने से सब ठीक नहीं होता. समय के साथ बदलाव जरूरी है. बच्चे के साथ समय देने से बच्चे बचेंगे. कानून बनाने से कुछ नहीं होगा. यह समस्या का हल नहीं है.
@करुणा नंदी, एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जब बच्चों की बात होती है, तब चुनौतियां बढ़ जाती हैं. जितेन का कहना हैकि सूचना को रोकना लगभग नामुकिन है. सरकार इसे रोक पाए यह संभव नहीं है. लोगों को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए. इंटरनेट को राक्षसी न बनाया जाए. इंटरनेट से बहुत कुछ सीखा जा सकता है. जितेन का कहना सही है कि रोकना मुश्किल है. सरकार की ड्यूटी है कि वह बच्चों तक इसकी पहुंच रोके.
@अभिनंदन सेखरी, को-फाउंडर व CEO, न्यूज़लॉन्ड्री ने कहा, सोशल मीडिया का भी शांत चेहरा आएगा. समय के साथ तकनीक बदली है. उन्होंने कहा कि हिंसा कम हो रही है.
@जितेन जैन, CEO, इंडियन इन्फोसेक कन्सॉर्टियम का मानना है कि ब्लू व्हेल गेम कोई ऐप नहीं है. एक के बाद एक 50 चैलेंज है. ऐसे गेम का मकसद उन लोगों को अपने को साबित करने का मौका मिलता है जो अलग हो गए हैं, कट गए हैं. सीक्रेट ग्रुप बनाए जाते हैं. हर चैलेंज के बाद सेल्फी लोड करनी होती है. जो हटना चाहते हैं उन्हें ब्लैकमेल किया जाता है. इससे बाहर निकलने का रास्ता नहीं है. इसे रोकने के लिए क्या हो सकता है इस पर जितेन ने कहा कि इस तकनीकि रूप से रोका नहीं जा सकता है. सरकार में तकनीकी की समझ नहीं है. वे समझ नहीं पा रहे हैं कि यह है क्या. अगर इसे रोकना है तो इसका एक ही तरीका है, तो दोस्तों पर नजर रखना है, अपनों पर नजर रखना है.
@ गौरी ईश्वरन, फाउंडर प्रिंसिपल, संस्कृति स्कूल का मानना है कि कई युवाओं में डिप्रेशन की समस्या है. उनके परिवार के सदस्य भी यह जान नहीं पाते. और जब ब्लू व्हेल की तरह का गेम आ जाता है वह इसके प्रति आकर्षित हो जाते हैं. उन्हें लगता है वह लेजेंड बन जाएंगे उनका नाम हमेशा रहेगा. इससे वह उस तरह आकर्षित होते हैं. आज का स्कूल सिस्टम भी फेल हो रहा है. वहां पर बच्चों के चरित्र निर्माण पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है.
@इलियाना का कहना है कि यूथ में स्वीकार करवाने का प्रेशर होता है. यही वजह है लोग ब्लू व्हेल चैलेंज की तरह के गेम लेते हैं. लोगों को जागरूकर करने की जरूरत है.
@राजीव मखनी ने कहा, सोशल मीडिया डेडली होता जा रहा है. उन्होंने ब्लू व्हेल का उदाहरण दिया.
देखें LIVE: #NDTVYouthForChange - सेशन 6 - कितना सोशल है सोशल मीडिया...? - राजीव मखनी के साथ इलियाना डिक्रूज़, जितेन जैन, गौरी ईश्वरन, अभिनंदन सेखरी, करुणा नंदी
नीति मोहन और अरमान मलिक ने 'प्यार मांगा है तुम्हीं से, न इंकार करो' गाना गाया.
@सचिन-जिगर : गानों की उम्र कम नहीं हुई है, बल्कि अब गानों की संख्या बहुत ज्यादा है. लोगों के पास ऑप्शन इतने ज्यादा हैं कि आप हर दिन कुछ न कुछ नया सुनते हैं, लेकिन अच्छे गाने फिर भी याद रहते हैं.
@इरशाद कामिल : गीतकारी या ऐसा कोई भी हुनर मुझे एक तरह से 'ड्राइविंग' जैसा लगता है. अगर आपको ड्राइविंग आती है तो आप कोई भी गाड़ी सीख सकते हैं. वैसे ही मुझे लगता है कि मुझे लिखना आता है तो मैं हर तरह के गीत लिख सकता हूं. मैं एक रोमांटिक गाना या एक सूफी गाना जैसा कुछ नहीं लिख सकता. मैं किरदार के लिए गाना लिखता हूं, और गाना लिखने के लिए मुझे यह समझना जरूरी है कि आप रोमांस के कौनसे स्तर पर हैं.
@सचिन-जिगर : ऑटोमिक एनर्जी का इस्तेमाल ब्लास्ट करने के लिए नहीं हुआ था, लेकिन लोग उसका इस्तेमाल इसके लिए भी कर रहे हैं. वैसे ही संगीत में आई नए तकनीक उसे निखारने के लिए थी और यह समय बचाने का एक जरिया था. लेकिन अब ऑटो ट्यून कर के आवाज बदल लें या ऐसा कुछ करें तो उसका कुछ नहीं हो सकता. लेकिन सबसे अहम है कि आप तकनीक से गाने में दिल नहीं लगा सकते और एक अच्छा गाना सिर्फ दिल से ही गाया जाता है.
@इरशाद कामिल : मैंने फिल्म 'चमेली' से गाने लिखने की शुरुआत की थी. लेकिन मेरी फिल्म 'जब वी मेट' जब आयी तो काफी बदलाव हुए. आपने देखा होगा कि अगर कोई फिल्म हिट होती है, तो उसके चेहरे हिट हो जाते हैं, लेकिन अगर किसी लेखक की फिल्म हिट होती है तो वो हिट नहीं होता, क्योंकि लफ्जों के चेहरे नहीं होते.
@सचिन : हम गुजराती हैं और आज भी मेरी बुआ को लगता है कि मैं बेकार निकल गाया हूं. पर धीरे-धीरे सब बदल रहा है.
@सचिन : हम गुजराती हैं और आज भी मेरी बुआ को लगता है कि मैं बेकार निकल गाया हूं.
@अरमान मलिक: मैं जब 10 साल का था तब मुझे पता चला कि मेरे परिवार में हसरत जयपुरी साहब थे. मेरे परिवार में सब संगीतकार ही रहे हैं. मैं पहला गायक हूं. मेरी दादी मुझे हसरत जी के गाने सुनाती थीं. वह हमेशा पूछती हैं कि क्या आज भी ऐसे अच्छे गाने बन रहे हैं. तो मुझे लगता है कि हां, आज भी अच्छे गाने बनते हैं.
@इरशाद कामिल : आज फिल्में रिएलिटी के नजदीक बन रही हैं, जिसके चलते संगीत का स्कॉप थोड़ा कम हो जाता है.
NDTV यूथ फॉर चेन्ज : म्यूज़िक आजकल... में नगमा सहर के साथ मिलिए नीति मोहन, अरमान मलिक, इरशाद कामिल और संगीतकार सचिन और जिगर की जोड़ी से.
@ प्रतीक सिन्हा : वॉट्स एप के मैसेज इनक्रिप्ट होते हैं, इसलिए इन संदेशों को पकड़ना मुश्किल होता है. वॉट्स एप एक कंपनी के तौर पर कुछ नहीं कर सकता. इंटरनेट लिट्रेसी भी एक समस्या है.
@ रवीश कुमार: आपको कैसे पता चलता है कि कौनसी न्यूज नकली है और कौनसी असली.
@ प्रतीक सिन्हा : अगर आप गूगल पर जाकर सर्च में जाएंगे तो अपलोड फोटो कर के यह पता चल सकता है कि यह फोटो कहां-कहां अपलोड किया गया है. किसी भी फोटो की नकल चेक करना बेहद आसान है. इसके कई सारे वीडियो भी हैं आपको मिल जाएंगे.
@ प्रतीक सिन्हा : अगर आप गूगल पर जाकर सर्च में जाएंगे तो अपलोड फोटो कर के यह पता चल सकता है कि यह फोटो कहां-कहां अपलोड किया गया है. किसी भी फोटो की नकल चेक करना बेहद आसान है. इसके कई सारे वीडियो भी हैं आपको मिल जाएंगे.
@ प्रतीक सिन्हा : अब फेक न्यूज के नाम पर एक प्रोपोगेंडा भी चल रहा है. जैसे वॉट्स अप पर आने वाले संदेशों में लिखा रहता है कि 'बिकायू मीडिया आपको नहीं बताएगा'... यह एक तरह से मीडिया की विश्वस्नीयता खराब करने और एक विशेष तरह की आइडलॉजी को प्रसारित करता है.
NDTV यूथ फॉर चेन्ज : असली क्या, नकली क्या... सेशन में रवीश कुमार से बात करते हुए प्रतीक सिन्हा ( को-फाउंडर, Alt News).
@ प्रतीक सिन्हा : आप जब थके हारे आते हो तो आप सिर्फ हल्की-फुल्की चीजें पसंद आती हैं. भड़काऊ हेडलाइंस को भी लोग ज्यादा क्लिक करते हैं.
@ प्रतीक सिन्हा : आप जब थके हारे आते हो तो आप सिर्फ हल्की-फुल्की चीजें पसंद आती हैं. भड़काऊ हेडलाइंस को भी लोग ज्यादा क्लिक करते हैं.
@ अर्जुन कपूर : सिनेमा हमेशा निजी जिंदगी में होने वाली चीजों को दर्शाता है. लेकिन सिनेमा एजुकेशन नहीं है, मतलब सिनेमा आपको पढ़ा नहीं सकता. मुझे लगता है कि एक इंडस्ट्री के तौर पर हम काफी हद तक बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं.
@ अर्जुन कपूर : हम आगे बढ़ रहे हैं और आगे बढ़ना सब का हक है. वह सिर्फ मर्द और औरत का नहीं है. समानता का मतलब ही यही है कि वह दोनों बराबर हों, कम या ज्यादा नहीं.
@ अर्जुन कपूर : हमें लड़कों के सिलेबस में ही डाल देना चाहिए कि महिलाओं के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए. हमें हमेशा सुनने को मिलता है कि 'लड़कियों की तरह रोना बंद कर.' यही हम बताते हैं कि महिलाएं कमजोर हैं.
@ अर्जुन कपूर : मेरी भी बहन है और हमेशा दिमाग के किसी हिस्से में उनकी चिंता रहती है. चाहे शहर हो या गांव हो, सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं दुनिया के हर हिस्से में महिलाओं की सुरक्षा एक सवाल है.
@ अर्जुन कपूर : मेरी भी बहन है और हमेशा दिमाग के किसी हिस्से में उनकी चिंता रहती है. चाहे शहर हो या गांव हो, सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं दुनिया के हर हिस्से में महिलाओं की सुरक्षा एक सवाल है.
@ अर्जुन कपूर : हमें अगर बदलाव चाहिए तो जरूरी है कि हम आज से ही कोशिश शुरू करें. यह माइंडसेट का बदलाव है जो एक दिन में नहीं होगा.
@ ऐनी दिव्या: सेफ्टी के नजरिए से मुझे लगता है कि बड़े शहरों में सुरक्षा ज्यादा है. सेफ्टी की समस्या तो थी लेकिन अब मीडिया की तरफ से ज्यादा चीजें सामने आ रही हैं.
@ निधि दुबे : सबसे बड़ी अगर कोई समस्या है तो वह है मानसिकता. हमारे यहां कई सुविधाएं मिल रही हैं लेकिन बेटियों की शिक्षा को लेकर समस्या है. बदलाव तो आ रहा है लेकिन बहुत कम स्तर पर.
@ सुषमा वर्मा: मैं अपने आप को बहुत भाग्यशाली मानती हूं कि मेरे परिवार ने मुझे बहुत सपोर्ट किया है और मेरे भाई ने मेरा हर जगह साथ दिया है.
@ अर्जुन कपूर : मुझे लगता है कि समस्या सिर्फ लड़कियों के लिए नहीं है बल्कि मुझे लगता है कि लड़कों को एजुकेट करने की जरूरत है. यह किसने आपको यह हक दे दिया कि आप किसी भी लड़की के साथ बद्दतमीजी कर सकें. यह समस्या सिर्फ ग्रामीण इलाकों में या शहरी इलाकों में नहीं है, यह हर जगह है.
@ ऐनी दिव्या: मेरे माता-पिता को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी क्योंकि उनके पेरंट्स उन्हें नहीं पढ़ा पाए थे. जब मैंने अपने परिवार को कहा कि मुझे पायलेट बनना है तो समाज की तरह से काफी रेसिस्टेंस था. समाज इसे इतनी आसानी से स्वीकार नहीं करता. यही कारण था कि मुझे भी अपने आप को प्रूफ करना पड़ा.
@ निधी कुलपति: आपने 'की ऐंड का' में महिलाओं की समानता की बात की है. आप लड़कियों की शिक्षा के लिए काम कर रहे हैं.
@ अर्जुन कपूर : मैं बहुत कम पढ़ा लिखा हूं और 11वीं क्लास फेल हूं. मेरी परवरिश ऐसी हुई है जहां मुझे आगे बढ़ने का मौका मिला है. लेकिन मुझे लगता है कि महिलाओं को यह विकल्प नहीं मिलता है. मैं हमेशा औरतों के बीच रहा हूं. मेरी बहन है, मैं अपनी मां के साथ रहा हूं. मैंने देखा है कि इन सभी औरतों ने बड़ी मजबूती से अपनी जिंदगी में अपनी चॉइस की है.
@ अर्जुन कपूर : मैं बहुत कम पढ़ा लिखा हूं और 11वीं क्लास फेल हूं. मेरी परवरिश ऐसी हुई है जहां मुझे आगे बढ़ने का मौका मिला है. लेकिन मुझे लगता है कि महिलाओं को यह विकल्प नहीं मिलता है. मैं हमेशा औरतों के बीच रहा हूं. मेरी बहन है, मैं अपनी मां के साथ रहा हूं. मैंने देखा है कि इन सभी औरतों ने बड़ी मजबूती से अपनी जिंदगी में अपनी चॉइस की है.
निधि कुलपति के साथ अर्जुन कपूर, निधि दुबे (डायरेक्टर, गर्ल राइजिंग इंडिया), कैप्टन ऐनी दिव्या, (पायलट) और सुषमा वर्मा (भारत की सबसे छोटी उम्र की पीएचडी विद्यार्थी.
@झूलन: हरमन को बहुत गुस्सा आता है. मिताली को भी गुस्सा आता है और जब कोई खिलाड़ी उसके सामने होता है तो वह बहुत डांटती है, किसी टीचर की तरह. लेकिन वहीं दूसरी तरफ वह बहुत कंपोज है.
@मिताली राज : मैं एक अंतर्मुखी व्यक्ति हूं. जब आप मैच खेल रहे होते हैं तब बहुत ज्यादा कंपोज रहना और संयमित रहना बहुत जरूरी है. क्रिकेट मेरे लिए जीवन नहीं है, उसके बाद भी जीवन है.
@मिताली राज : मैं अपने स्कूल का शुक्रिया अदा करना चाहुंगी. मेरे स्कूल ने मेरा हमेशा से सपोर्ट किया है. फिर मैं अपने कोच स्वर्गीय संपत कुमार का शुक्रिया करुंगी जिन्होंने मुझे इस लायक बनाया जब मैं भारतीय महिला क्रिकेट टीम का हिस्सा बन सकूं. जब मुझे चोट लग जाती थी वह तब भी मुझे रेस्ट नहीं करने देते थे.
@मिताली राज : महिलाओं को लेकर बहुत असमानता है. मैंने जब फोटो पोस्ट किया है तो लोगों को मेरा ड्रेस दिखता है या मेरा पसीना दिखता है तो मुझे उसके लिए टोका दिया गया.
@झूलन: 2005 के फाइनल मैच में कायनात बॉल पिकर थी. इस बार जब हम ड्रेसिंग रूम में आ रही थी और एकदम से वह लड़की दौड़कर आयी और कहा कि आपसे बात करना चाहती हूं. मैं डर गई थी. लेकिन उसने बताया कि उसने मुझे बताया कि उसे मुझसे मिलने पर क्रिकेट के लिए मोटिवेशन मिला. तब मुझे महसूस हुआ कि मैंने कुछ अच्छा काम तो किया.
@मिताली राज : महिलाओं को लेकर बहुत असमानता है. मैंने जब फोटो पोस्ट किया है तो लोगों को मेरा ड्रेस दिखता है या मेरा पसीना दिखता है तो मुझे उसके लिए टोका दिया गया.
@मिताली राज : मेरे डेड चाहते थे कि मैं क्रिकेटर बनूं जबकि मां चाहती थी कि मैं डांसर बनूं. मैं भारतीय टीम की सदस्य थी तब भी मैं सिर्फ पापा के लिए खेलती थी. आज मैं क्रिकेटर हूं और यह सिर्फ उनकी वजह से हुआ है. मुझे दुख नहीं है कि मैं डांसर नहीं बन पायी.
@पूनम : मैं मिडिल क्लास फैमली से हूं और काफी स्ट्रगल रहा है. मुझे सिर्फ क्रिकेट खेलना पसंद था. मैं छोटी थी तब पापा ने उधार लेकर मेरे लिए किट खरीदी थी. यह बात मुझे वर्ल्डकप के बाद पता चली जब उन्होंने यह एक इंटरव्यू में बताया. मैं अपने पापा से बहुत इंस्पायर होती हूं. मैं चाहती हूं कि आगे का क्रिकेट मैं उनके लिए खेलूं.
@झूलन: मैं छोटी थी तब सिर्फ बॉल उठाने को मिलती थी. कजिन खेलने नहीं देते थे बस बॉल उठाने को बोलते थे.
@मिताली राज : मेरे ग्रांड पेरेंट्स नहीं चाहते थे कि मैं क्रिकेट खेलूं. मैं क्रिकेट खेलने लगी तब भी मुझे नहीं पता था कि इंडियन क्रिकेट टीम है. लोगों को हमारा किट बैग देखकर लगता था कि हम हॉकी प्लेयर होंगे. क्योंकि लोगों को लगता ही नहीं था कि लड़कियां क्रिकेट खेलती हैं. लोग पूछते थे कि क्या टैनिस बॉल से खेलती हैं, क्योंकि आपको चोट लग जाएगी.
@झूलन: मैंने वर्ल्डकप देखकर ही क्रिकेट खेलना शुरू किया और मैं वहीं करना चाहती थी. अब तो यही उम्मीद है कि हम टी20 वर्ल्डकप को जीतें और जीतने का अपना सपना पूरा करें. इस टीम में मेरा पूरा भरोसा है. जब तक हम जीतेंगे नहीं, तब तक वह 9 रन हमें चुभते रहेंगे.
@मिताली राज : मेरे लिए यह वर्ल्डकप बहुत जरूरी था. यह टीम बहुत अच्छा था और लड़कियां सारी अच्छे फॉर्म में थीं. पहले उम्मीद थी कि सेमी फाइनल में पहुंचे. हम यह जानते थे कि बीसीसीआई ने इस बार हमें बहुत बड़ा प्लेटफॉर्म दिया है. साथ ही हम जीतकर ही वुमेन क्रिकेट को आगे बढ़ा सकते हैं.
@पूनम : मैं सिर्फ मैच हारने में दुखी थी लेकिन जब वापस आई और लोगों का इतना प्यार मिला कि मैं इमोश्नल हो गई. फाइनल मैच ने हमें बहुत कुछ सिखाया. हम नए खिलाड़ियों ने पहली बार फाइनल खेला था.
@झूलन: इस वर्ल्डकप में हर किसी ने परफॉर्म किया. हर किसी ने सपोर्ट किया और यही फायदा रहा. इंडिया पाकिस्तान के मैच के दौरान तो हम ड्रेसिंग रूप से फील्ड तक फैन्स की तारीफ सुन रहे थे.
@मिताली राज : 2007 में हम बीसीसीआई के तहत आए हैं. 2005 के वर्ल्डकप के समय हम उसे प्रमोट नहीं कर पाए, लेकिन इस बार हमारा वर्ल्डकप सोशल मीडिया पर काफी चर्चाओं में रहा. मुझे जब पता चला कि पीएम मोदी ने हमारे लिए ट्वीट किया है तो वह हमारे लिए बहुत ज्यादा खुशी का पल था.
अफ़शां अंजुम के साथ के साथ भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज, जूलन गोस्वामी, पूनम राउत.
@ कंगना रनोट : 30 साल की उम्र में अब मैं ऐसा काम करना चाहती हूं कि वह कुछ अच्छा काम हो. मैं अपनी ऑडियंस से सीधा संपर्क चाहती हूं. चाहे वह कोई हिट फिल्म हो या न हो लेकिन अगर उसका जुड़ाव मेरे देश के लोगों से न हो तो उसका कोई मतलब नहीं.
@ कंगना रनोट : हमारे फिल्म अवॉर्ड काफी भ्रष्ट हैं. बहुत ज्यादा पॉलिटिक्स चलती है. हालांकि फैशन अवॉर्ड के बारे में मैं नहीं जानती, लेकिन अगर मैं हिस्सा बनी तो यह एक अच्छा अवसर है.
@ कंगना रनोट : मैं जब फ्रेंच क्लास के लिए जाती थी मिनी स्कर्ट पहन कर तो मेरे पीजी के भंडारी अंकल पापा को फोन करते थे कि आज बड़े छोटे कपड़े पहने हैं.
@रवीश कुमार: क्या आप अब भी रिबेल हैं या हीरोइन के फ्रेम में कंफर्टेबल हो गई हैं.
@ कंगना रनोट : अभी भी बहुत सारी रूढ़ियां हैं. कई लोगों ने हंसल मेहता का ही मजाक उड़ाया कि क्या हीरोइन की बात मान गए. मैं परेशान तो हो गई हूं लेकिन अब मैं निर्देशन की तरफ बढ़ रही हूं.
@ कंगना रनोट : अभी भी बहुत सारी रूढ़ियां हैं. कई लोगों ने हंसल मेहता का ही मजाक उड़ाया कि क्या हीरोइन की बात मान गए. मैं परेशान तो हो गई हूं लेकिन अब मैं निर्देशन की तरफ बढ़ रही हूं.
@रवीश कुमार: मैं अंग्रेजी की परवाह नहीं करता, लेकिन क्या आपको लगता है कि हीरोइन होने के लिए अंग्रेजी बहुत जरूरी है?
@ कंगना रनोट : हां, यह बहुत जरूरी है. बहुत लोग हैं जैसे इरफान खान, जो इंटरनेशनल स्टार हैं और खुलकर कहते हैं कि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी. सबसे पहले तो बतायूं, मुझे लगता ही नहीं था कि मुझे अंग्रेजी नहीं आती.
@ कंगना रनोट : हां, यह बहुत जरूरी है. बहुत लोग हैं जैसे इरफान खान, जो इंटरनेशनल स्टार हैं और खुलकर कहते हैं कि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी. सबसे पहले तो बतायूं, मुझे लगता ही नहीं था कि मुझे अंग्रेजी नहीं आती.
@ कंगना रनोट : हंसल मेहता की सबसे मजेदार चीज मुझे यही लगती है कि वह कलाकार के तौर पर पूरी आजादी देते हैं. वह स्क्रिप्ट पर निर्भन नहीं हैं बल्कि कलाकार को पूरी छूट देते हैं.
@ हंसल मेहता: मैंने बहुत अच्छे एक्टर्स के साथ काम किया है. लेकिन मुझे ऐसा कलाकार चाहिए था जो जिंदगी को असल में समझ की उसे पर्दे पर ला सके.
@ कंगना रनोट : जिंदगी में सबकुछ नहीं मिलता है, लेकिन मुझे लगता है कि एक औरत के लिए उसकी डिग्निटी (सम्मान) सबसे ज्यादा जरूरी होता है. मैं लड़कियों से जरूर कहना चाहुंगी कि आप अपने घरवालों को अपने मन की बात बताइए. मां या औरतों को लेकर जो महिमामंडन किया जाता है उसका हमें विरोध करना होगा. अगर आपका बॉस, आपका बेटा, आपके पिता आपके साथ बद्तमीजी करें तो उसका विरोध करें.
@ कंगना रनोट : मेरे पिता मेरे भाई अक्षत को कहते थे कि कमांडो बनो, लेकिन जब मैं पूछती थी कि मैं क्या बनूंगी तो वह कहते थे कि तुम्हारी तो शादी हो जाएगी. किसी के मेरे लिए सपने नहीं थे. मेरे माता पिता पढ़ाई के विरोध में नहीं थे लेकिन मुझे हमेशा पैकेज समझा जाता है. मेरे परिवार की आंखों में मेरे लिए कभी घमंड नहीं दिखता.
@ कंगना रनोट : मैं राजपूत घराने से हूं, जहां हमेशा घूंघट में ही हर काम करना होता है. मेरे दादाजी बहुत पुरानी मानसिकता के थे. मेरा दादा आईएस अधिकारी थे, दादा से पहले खाना खा लो वह डांटते थे. एक बार पिता का फोन आया और दादा जी बात कर रहे थे, तभी मैंने उनसे कहा कि मुझे बात करनी है तो उन्होंने मना कर दिया. मैंने थोड़े जोर से कहा कि बात करनी है तो उन्होंने मुझे जोर से थप्पड़ मारा.
@ कंगना रनोट : जब मैं फिल्म स्टार बन गई तब भी मुझे मेरे रिश्तेदार ऐसी नजर से देखते हैं कि यह क्या चीज है? यह एक्टर कैसे बन गईं?
@ कंगना रनोट : छोटे शहरों की अपनी कमियां हैं और बड़े शहरों की अपनी. छोटे शहरों के लोग बुआ जी मौसीजी के बारे में सोचते हैं.
@ कंगना रनोट : जब मैंने काम शुरू किया था तब अपने शरीर, अपने रंग को लेकर हर किसी में शर्मिंदगी थी. हर किसी को हरियाणवी एक्सेंट दिखा वह नया लगा, क्योंकि वह कभी दिखाया ही नहीं गया था.
@ कंगना रनोट : फिल्म 'सिमरन' के निर्देशक हंसल मेहता के साथ मंच पर पहुंचीं कंगना रनोट.
@ मंच पर पहुंचीं कंगना रनोट. रवीश कुमार से करेंगी बात.
@ प्रणब रॉय : हम वह पत्रकारिता कर रहे हैं जिसकी आज सच में जरूरत है. हम लोगों की आंख हैं और कान हैं. क्या हमें भी तीन बंदरों की तरह हो जाना चाहिए और लोगों को कहना चाहिए कि सब कुछ बहुत अच्छा है.
@यूथ कॉनक्लेव हिस्सा बनने पहुंची कंगना रनोट. प्रोग्राम से पहले रवीश कुमार से गुफ्तगू करती बॉलीवुड की क्वीन.