नई दिल्ली:
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले की प्राचीर से राष्ट्र को अपने पहले संबोधन में सारे समाज से एकजुट होकर देश के लिए काम करने की अपील की, और साथ ही बहुत-सी बातें ऐसी कहीं, जो प्रत्येक सुनने वाले को भली लगीं... यहां तक कि खुद को उनके धुर-विरोधी कहने वालों को भी कहना पड़ा, "मोदी जी का भाषण बढ़िया था, क्योंकि वह राजनीतिक नहीं, सामाजिक था..."
आइए पढ़ते हैं, उनके भाषण की सबसे रोचक बातें...
- स्वतंत्रता दिवस मना रहे सभी देशवासियों को 'प्रधानसेवक' का नमस्कार... मैं आपके सामने प्रधानमंत्री नहीं, 'प्रधानसेवक' के रूप में आया हूं...
- यह भारतीय लोकतंत्र के लिए बेहद सम्मान की बात है कि एक गरीब, साधारण परिवार का बेटा लालकिले से देश को संबोधित कर रहा है...
- 'जातिवाद' और 'सांप्रदायिकता' के ज़हर को छोड़कर एकता को गले लगाइए... हमने बहुत लड़ाई लड़ ली, बहुत लोगों की जानें गईं, पीछे मुड़कर देखिए, क्या किसी को कुछ मिला...? सालों से चल रहे इस रक्तपात ने भारतमाता को केवल गहरे घाव दिए हैं...
- मैं दुनिया से कहता हूं - आइए, मेक इन इंडिया (भारत में बनाइए)... दुनिया में कहीं भी जाकर बेचिए, लेकिन बनाइए भारत में... हमारे पास स्किल (कौशल) और टैलेन्ट (क्षमता) है...
- देश के विकास में सभी पिछली सरकारों और प्रधानमंत्रियों का योगदान है... राज्य सरकारों की भी इसमें भूमिका रही है... मैं सभी पिछली सरकारों और प्रधानमंत्रियों को नमन करता हूं...
- यदि सरकारी अफसर समय पर दफ्तर आते हैं, तो क्या यह ख़बर है...? और अगर यह ख़बर है, तो हम कितना नीचे गिर गए हैं, यह इस बात का सबूत बन जाता है...
- बलात्कार की घटनाओं के बारे में सुनकर सिर शर्म से झुक जाता है... माता-पिता बेटियों पर बंधन डालते हैं, लेकिन उन्हें बेटों से भी पूछना चाहिए, वे कहां जा रहे हैं, क्या करने जा रहे हैं...
- ऐसे परिवार देखे हैं, जहां बड़े मकानों में रहने वाले पांच-पांच बेटों के बावजूद बूढ़े मां-बाप वृद्धाश्रम में रहते हैं... और ऐसे भी परिवार हैं, जहां इकलौती बेटी ने माता-पिता की देखभाल करने के लिए शादी तक नहीं की... सो, एक बेटी पांच-पांच बेटों से भी ज़्यादा सेवा कर सकती है...
- क्या हमने हमारा लिंगानुपात देखा है...? समाज में यह असंतुलन कौन बना रहा है...? भगवान नहीं बना रहे...! मैं डॉक्टरों से अपील करता हूं कि वे अपनी तिजोरियां भरने के लिए किसी मां की कोख में पल रही बेटी को न मारें... बेटियों को मत मारो, यह 21वीं सदी के भारत के माथे पर कलंक है...
- सब चीज़ें हमारे लिए नहीं होतीं... कुछ चीज़ें ऐसी भी हैं, जो राष्ट्र के लिए होनी चाहिए... हमें चाहिए कि हम 'मेरा क्या' की भावना से हटकर राष्ट्र के बारे में सोचें...
- दुनिया हमारे देश को 'सपेरों के देश' के रूप में जाना करती थी, लेकिन हमारे युवाओं ने कम्प्यूटर पर अंगुलियां चला-चलाकर दुनिया को अपनी काबिलियत से हैरान कर दिया...
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