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This Article is From Feb 23, 2015

भूमि अधिग्रहण पर मुश्किल में सरकार, आरएसएस ने बढ़ाया दबाव

भूमि अधिग्रहण पर मुश्किल में सरकार, आरएसएस ने बढ़ाया दबाव
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नई दिल्‍ली:

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता अण्‍णा हज़ारे और विपक्ष के साथ-साथ केंद्र सरकार को एक और मोर्चे पर विरोध का सामना करना पड़ रहा है। ये विरोध है आरएसएस से जुड़े संगठनों का। संघ परिवार के संगठन वनवासी कल्याण आश्रम ने तो बाकायदा प्रस्ताव पास कर सरकार से भूमि अधिग्रहण अध्यादेश में बदलाव करने को कहा है।

अपने प्रस्ताव में वनवासी कल्याण आश्रम ने इस बात पर आपत्ति जताई है कि सरकार ने किसानों और भूस्वामियों की ज़मीन लेने के लिए उनकी सहमति को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की है। प्रस्ताव में कहा गया है, ‘राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी परियोजनाओं में ये सारी छूट दी जा सकती है लेकिन बाकी परियोजनाओं में ऐसी छूट देना सार्वभौमिक अधिकारों का दुरुपयोग ही होगा जिसकी अनुमित नहीं दी जा सकती।’

वनवासी कल्याण आश्रम के प्रस्ताव में इंडस्ट्रयिल कॉरिडोर के नाम पर ज़मीन लेने को सरासर ग़लत बताया गया है जो सरकार के बदलावों को अहम बिंदु है। प्रस्ताव कहता है कि, ‘ओद्योगिक गलियारा तो बदनाम हो चुके एसईज़ेड का ही बदला हुआ नाम है, इसे कोई स्थान नहीं दिया जा सकता।’

महत्वपूर्ण है कि आरएसएस के भीतर से उठती आवाज़ सरकार को परेशान कर रही है। बीजेपी ने अपने बड़े नेताओं को आरएसएस से जुड़े संगठनों को बात करने के लिये लगाया है। कहा जा रहा है कि एक वरिष्ठ मंत्री इस बारे में बीच बचाव कर रहे हैं।

लेकिन भूमि अधिग्रहण कानून पर सरकार को विपक्षी पार्टियों से संसद में तालमेल करना होगा। खासतौर से राज्यसभा में उसके पास संख्याबल की कमी है। सूत्रों के मुताबिक वरिष्ठ मंत्रियों वेंकैया नायडू औऱ अरुण जेटली के अलावा पीयूष गोयल और प्रकाश जावड़ेकर अलग-अलग विपक्षी दलों को कानून पर समझा रहे हैं।

संसदीय कार्यमंत्री वैंकेया नायडू ने सोमवार को पत्रकारों से कहा, ‘कानून में बदलाव करना ज़रूरी था और इस बारे में सरकार ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों और अलग-अलग अधिकारों से विचार मांगे थे। उसके बाद ही अध्यादेश लाया गया। अब सरकार इस अध्यादेश को संसद में ला रही है जिस पर चर्चा होगी और सभी लोग अपने विचार रखेंगे।’

सूत्रों के मुताबिक बीच का रास्ता निकालने की कोशिश में एक हल ये भी खोजा जा रहा है कि राज्यों को ये अधिकार दे दिया जाए कि वही ज़मीन लेते वक्त किसानों और भूस्वामियों की सहमति के बारे में फैसला करे।

उधर विपक्षी पार्टियां अभी सरकार पर दबाव बनाए हुए हैं। कांग्रेस नेता और पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने सरकार के अध्यादेश को अलोकतांत्रिक बताया है। रमेश ने कहा कि जिस तरह से बीजेपी सरकार अध्यादेश लाई और जो बातें उस अध्यादेश में हैं वह 1894 वाले भूमि अधिग्रहण के हालात पैदा कर देगी।

‘सरकार घर वापसी की बात कर रही है लेकिन कानून ऐसा बन रहा है जिससे (अगर अधिग्रहित ज़मीन पर कभी प्रोजेक्ट न भी बने तो) किसानों की ज़मीन वापसी कभी नहीं हो सकेगी।’

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