मुंबई लौट रहे प्रवासी लेकिन नौकरी ढूंढने में हो रही परेशानी

लॉकडाउन के चलते मुंबई से प्रवासियों ने पलायन किया था. लेकिन पिछले डेढ़ महीने से यहां हलचल लौटी है.

मुंबई:

कोरोनोवायरस संकट के बीच मुंबई से बड़े पैमाने पर प्रवासी श्रमिकों ने पलायन किया था. मुंबई के जुहू कोलीवाड़ा के भय्यावाड़ी में लगभग 90 प्रतिशत प्रवासी मजदूर रहते हैं. लॉकडाउन के चलते यहां से मई में लगभग 80 प्रतिशत निवासियों ने पलायन किया था. जिसके बाद ये जगह खाली गलियों और भयानक सन्नाटे से भर गई थी. लेकिन पिछले डेढ़ महीने से यहां हलचल लौटी है. हालांकि यहां के प्रवासियों के लिए जीवन अभी तक सामान्य नहीं हुआ है.

बिहार के रहने वाले पंकज लॉकडाउन में एक ट्रक पर सवार होकर जैसे-तैसे अपने गांव पहुंच गए थे. वे मुंबई में कुक का काम करते थे और महीने में लगभग 17,000 रुपये कमाते थे. हालांकि, बिहार में बाढ़ का आना उनके लिए दोहरी मार थी जिसके चलते उनके खेत के साथ-साथ उनका घर बह गया. वह मुंबई लौटे और अब मजदूरी करने के लिए मजबूर हैं. पंकज कहते हैं, "मेरे मालिक ने कोरोनावायरस के कारण मुझे काम देने से मना कर दिया. यहां तक ​​कि वेतन भी कम था. इसलिए अब मैं मजदूरी कर रहा हूं."

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पंकज जैसे कई लोगों के पास बताने के लिए एक जैसी कहानी है. बिहार के दरभंगा के रहने वाले कैलाश मंडल घर चलाने लिए संघर्ष कर रहे हैं. वह पांच लोगों के परिवार के लिए एकमात्र कमाने वाले हैं. एक ड्राइवर के रूप में काम करते हुए, वह एक महीने में 18,000 रुपये कमाते  थे, लेकिन अब वह कहते है कि काम लगभग आधे से कम हो गया है, जिसका अर्थ है कि उनकी कमाई भी आधी से कम हो गई है.

मंडल ने कहा,"मैं अपने गांव में कुछ करने की सोचता हूं. लेकिन मैं वहां क्या कर सकता हूं? व्यवस्था ठीक नहीं है. इसलिए वापस आना पड़ा. हां, मुझे कोरोनोवायरस से डर लगता है, लेकिन अब पैसे के लिए संघर्ष करना पड़ता है." 

मजदूर कृष्णा कहते हैं कि लंबे समय तक अपने गांव में रहना आर्थिक स्थिति के कारण एक विकल्प नहीं था. और वह वापस भी आ गए. उन्होंने बताया, "मैं गांव में नहीं रह सकता था. कोई काम नहीं है और अगर हमें काम मिलता है, तो भी वेतन बहुत कम है. यहां पर कम से कम मैं प्रतिदिन 600-700 रुपये कमाता हूं. लेकिन गांव में वेतन केवल ₹ 200 है. " लोगों के वापस आने के साथ, रोजगार के अवसर तलाशना उनके लिए एक बड़ा काम है.

प्रवासियों के साथ काम करने वाले और रोज़ खाना और राशन बांटने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता अमित सिंह कहते हैं, पिछले दो महीनों में लोगों का काम मिलने की उम्मीद में वापस आना शुरू हो गया है. सिंह कहते हैं, "लगभग 35-40% लोग वापस आ गए हैं, लेकिन वे काम के लिए संघर्ष कर रहे हैं."

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