छत्तीसगढ़ के जशपुर में मतदाताओं के लिए जागरूकता रैलीं निकालतीं कलेक्टर प्रियंका शुक्ला.
नई दिल्ली:
छत्तीसगढ़ के उत्तरी-पूर्वी कोने में स्थित एक जिला है जशपुर. देश के सुदूर जिलों में शुमार..ओडिशा की सीमा से सटा हुआ. कभी इस जिले के दामन पर भी नक्सल बेल्ट वाले जिले का दाग लगा रहा. मगर यह दाग समय के साथ धुल गया तो गृहमंत्रालय ने इसे नक्सल बेल्ट की सूची से बाहर कर दिया है. इस जिले की कमान पिछले दो वर्षों से जिन महिला आईएएस के हाथ हैं. उनका नाम है डॉ. प्रियंका शुक्ला (IAS Priyanka Shukla). साहित्य से डॉक्टरेट करने के चलते प्रियंका ने नाम के आगे डॉक्टर नहीं लगाया है, बल्कि उन्होंने एमबीबीएस की पढ़ाई की है इस वजह से. आईएसस बनने का जुनून ऐसा रहा कि एमबीबीएस के बाद मेडिकल प्रैक्टिस भी छोड़ दी. ब्यूरोक्रेसी में एक बात कही जाती है- "अगर कोई आईएएस इनोवेशन नहीं करता...कुछ नया नहीं करता....लीक पर चल रहे सिस्टम को बदलने की कोशिश नहीं करता तो उसमें और किसी बाबू( क्लर्क) में कोई फर्क नहीं है." मगर प्रियंका शुक्ला देश की उन चुनिंदा आईएएस अफसरों में शुमार हैं, जो अपने इनोवेशन के लिए जानीं जातीं हैं. इस वजह से अब तक दो-दो बार राष्ट्रपति से लेकर कई पुरस्कार हासिल कर चुकीं हैं.
इस वक्त छत्तीसगढ़ में विधानसभा की चुनावी सरगर्मी है. 12 और 20 नवंबर को दो चरणों में सूबे में मतदान है. इस चुनावी सरगर्मी के बीच जशपुर की कलेक्टर प्रियंका अधिक से अधिक मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए नए-नए जतन करने में जुटीं हैं. पिछले बुधवार(31 अक्टूबर) को उन्होंने चुनाव अभियान से जुड़े अफसरों, कर्मियों और अन्य संगठनों को लोगों को एकजुट किया. फिर खुद पहले हेलमेट पहनीं और फिर बाइक(स्कूटी नहीं) स्टार्ट कर निकल पड़ीं मतदाताओं को जगाने. अभियान को नाम दिया है एक जशपुर-एक प्रण. खास बात है कि बाईक रैली को हरी झंडी दिखाने के लिए उन्होंने शहीद बनमाली की पत्नी जितेश्वरी यादव को आमंत्रित किया. मकसद रहा कि इसी बहाने एक शहीद की बेवा का सम्मान हो सके. इस बीच इस जागरूकता रैली में पुलिस अधीक्षक प्रशांत ठाकुर सहित अन्य अफसर भी शामिल हुए. रणजीत स्टेडियम में सबको शपथ दिलाई गई. ओडिशा बार्डर तक रैली निकाली गई.
कैसे बनीं आईएएस
प्रियंका शुक्ला के आईएएस बनने के दो दिलचस्प वाकये हैं. पहला वाकया बचपन का है. जब प्रियंका के पिता उत्तराखंड में सरकारी नौकरी करते थे. तब परिवार हरिद्वार में रहता था. इस दौरान जब पिता बेटी प्रियंका को लेकर हरिद्वार कलेक्टर के दफ्तर और आवास की तरफ से गुजरते थे तो कहते थे-बेटी मैं भी दीवार पर टंगी नेमप्लेट पर इसी तरह तुम्हारा नाम देखना चाहता हूं. उस वक्त से प्रियंका ने कलेक्टर बनने का सपना देखना शुरू किया. दूसरा वाकया लखनऊ से जुड़ा है. जब प्रियंका शुक्ला ने 2006 में किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज लखनऊ से एमबीबीएस की डिग्री लिया. इस दौरान बतौर चिकित्सक इंटर्नशिप कर रहीं थीं तो लखनऊ में झुग्गी-झोपड़ियों में वह चेकअप के लिए पहुंचीं थीं. इस दौरान एक महिला खुद और बच्चों को गंदा पानी पिला रही थी. यह देख प्रियंका ने सवाल पूछा-गंदा पानी क्यों पी रही हो. यह सुनकर उस महिला ने तपाक से कह दिया-क्या तुम कलेक्टर हो....यह घटना प्रियंका के दिल में चुभ गई...लगा कि अब आईएएस बनना है. इसके बाद वह संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षा की तैयारियों में जुट गईं. आखिर दूसरे प्रयास में वह सफल हो गईं. 2009 काडर की आईएएस बनीं. आठ अप्रैल 2016 से वह जशपुर जिले की कलेक्टर(डीएम) हैं.
मिल चुके कई अवार्ड्स
बतौर आईएएस लीक से हटकर काम के चलते प्रियंका शुक्ला को अब तक नौ साल की सर्विस में कई अवार्ड मिल चुके हैं. वर्ष 2011 में उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने 'सेंसस सिल्वर मेडल' से नवाजा था, जब उन्होंने सेंसस 2011 को बेहतर तरीके से क्रियान्वित किया था. दो साल बाद जब 2013 का विधानसभा चुनाव आया तो उन्होंने मतदान के लिए जागरूकता फैलाने के लिए नई-नई पहल कर लोगों को प्रेरित किया. जिस पर चुनाव आयोग से जहां स्पेशल अवार्ड मिला, वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान किए कार्य के लिए प्रशंसा पत्र मिला. राजनांदगांव जिले की सीईओ रहते हुए जिले की साक्षरता बढ़ाने की दिशा में काम के चलते एक बार और राष्ट्रपति से मेडल मिला. इसके अलावा खुले में गांवों को शौचमुक्त करने सहित कई योजनाओं को बेहतर ढंग से धरातल पर उतारने के लिए राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर के कई पुरस्कारों की वह हकदार बनीं. जशपुर में मनरेगा के लिए भी राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार मिल चुका है. जशपुर की कलेक्टर बनने से पहले शुक्ला CSSDA की एमडी रहीं. 2009 में आईएएस बनने के बाद ट्रेनिंग खत्म हुई तो पहली पोस्टिंग 2011 में सरायपाली के एसडीएम के रूप में मिली थी.
बच्चे को लगी टक्कर तो खुद पहुंची थाने
प्रियंका शुक्ला जशपुर में डीएम रहते एक बार और चर्चा में आईं थीं, जब सरकारी दौरे से लौटते समय उनकी इनोवा कार से रोशन नामक बच्चे को टक्कर लग गई थी. उस वक्त प्रियंका ने बच्चे को पहले अस्पताल में आईसीयू में भर्ती कराया और फिर गाड़ी लेकर थाने पहुंची और पुलिस के हवाले कर दिया. उस वक्त कलेक्टर की गाड़ी चला रहे ड्राइवर के खिलाफ केस हुआ. हालांकि बच्चे की बाद में इलाज के दौरान मौत हो गई थी.
इस वक्त छत्तीसगढ़ में विधानसभा की चुनावी सरगर्मी है. 12 और 20 नवंबर को दो चरणों में सूबे में मतदान है. इस चुनावी सरगर्मी के बीच जशपुर की कलेक्टर प्रियंका अधिक से अधिक मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए नए-नए जतन करने में जुटीं हैं. पिछले बुधवार(31 अक्टूबर) को उन्होंने चुनाव अभियान से जुड़े अफसरों, कर्मियों और अन्य संगठनों को लोगों को एकजुट किया. फिर खुद पहले हेलमेट पहनीं और फिर बाइक(स्कूटी नहीं) स्टार्ट कर निकल पड़ीं मतदाताओं को जगाने. अभियान को नाम दिया है एक जशपुर-एक प्रण. खास बात है कि बाईक रैली को हरी झंडी दिखाने के लिए उन्होंने शहीद बनमाली की पत्नी जितेश्वरी यादव को आमंत्रित किया. मकसद रहा कि इसी बहाने एक शहीद की बेवा का सम्मान हो सके. इस बीच इस जागरूकता रैली में पुलिस अधीक्षक प्रशांत ठाकुर सहित अन्य अफसर भी शामिल हुए. रणजीत स्टेडियम में सबको शपथ दिलाई गई. ओडिशा बार्डर तक रैली निकाली गई.
कैसे बनीं आईएएस
प्रियंका शुक्ला के आईएएस बनने के दो दिलचस्प वाकये हैं. पहला वाकया बचपन का है. जब प्रियंका के पिता उत्तराखंड में सरकारी नौकरी करते थे. तब परिवार हरिद्वार में रहता था. इस दौरान जब पिता बेटी प्रियंका को लेकर हरिद्वार कलेक्टर के दफ्तर और आवास की तरफ से गुजरते थे तो कहते थे-बेटी मैं भी दीवार पर टंगी नेमप्लेट पर इसी तरह तुम्हारा नाम देखना चाहता हूं. उस वक्त से प्रियंका ने कलेक्टर बनने का सपना देखना शुरू किया. दूसरा वाकया लखनऊ से जुड़ा है. जब प्रियंका शुक्ला ने 2006 में किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज लखनऊ से एमबीबीएस की डिग्री लिया. इस दौरान बतौर चिकित्सक इंटर्नशिप कर रहीं थीं तो लखनऊ में झुग्गी-झोपड़ियों में वह चेकअप के लिए पहुंचीं थीं. इस दौरान एक महिला खुद और बच्चों को गंदा पानी पिला रही थी. यह देख प्रियंका ने सवाल पूछा-गंदा पानी क्यों पी रही हो. यह सुनकर उस महिला ने तपाक से कह दिया-क्या तुम कलेक्टर हो....यह घटना प्रियंका के दिल में चुभ गई...लगा कि अब आईएएस बनना है. इसके बाद वह संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षा की तैयारियों में जुट गईं. आखिर दूसरे प्रयास में वह सफल हो गईं. 2009 काडर की आईएएस बनीं. आठ अप्रैल 2016 से वह जशपुर जिले की कलेक्टर(डीएम) हैं.
मिल चुके कई अवार्ड्स
बतौर आईएएस लीक से हटकर काम के चलते प्रियंका शुक्ला को अब तक नौ साल की सर्विस में कई अवार्ड मिल चुके हैं. वर्ष 2011 में उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने 'सेंसस सिल्वर मेडल' से नवाजा था, जब उन्होंने सेंसस 2011 को बेहतर तरीके से क्रियान्वित किया था. दो साल बाद जब 2013 का विधानसभा चुनाव आया तो उन्होंने मतदान के लिए जागरूकता फैलाने के लिए नई-नई पहल कर लोगों को प्रेरित किया. जिस पर चुनाव आयोग से जहां स्पेशल अवार्ड मिला, वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान किए कार्य के लिए प्रशंसा पत्र मिला. राजनांदगांव जिले की सीईओ रहते हुए जिले की साक्षरता बढ़ाने की दिशा में काम के चलते एक बार और राष्ट्रपति से मेडल मिला. इसके अलावा खुले में गांवों को शौचमुक्त करने सहित कई योजनाओं को बेहतर ढंग से धरातल पर उतारने के लिए राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर के कई पुरस्कारों की वह हकदार बनीं. जशपुर में मनरेगा के लिए भी राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार मिल चुका है. जशपुर की कलेक्टर बनने से पहले शुक्ला CSSDA की एमडी रहीं. 2009 में आईएएस बनने के बाद ट्रेनिंग खत्म हुई तो पहली पोस्टिंग 2011 में सरायपाली के एसडीएम के रूप में मिली थी.
बच्चे को लगी टक्कर तो खुद पहुंची थाने
प्रियंका शुक्ला जशपुर में डीएम रहते एक बार और चर्चा में आईं थीं, जब सरकारी दौरे से लौटते समय उनकी इनोवा कार से रोशन नामक बच्चे को टक्कर लग गई थी. उस वक्त प्रियंका ने बच्चे को पहले अस्पताल में आईसीयू में भर्ती कराया और फिर गाड़ी लेकर थाने पहुंची और पुलिस के हवाले कर दिया. उस वक्त कलेक्टर की गाड़ी चला रहे ड्राइवर के खिलाफ केस हुआ. हालांकि बच्चे की बाद में इलाज के दौरान मौत हो गई थी.
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