कर्नाटक (Karnataka) में सियासी समीकरण फिर बदल गए हैं. सत्तारू़ढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) और विपक्षी दल जनता दल सेक्युलर (JDS) के हाथ मिलाने से कांग्रेस अलग-थलग पड़ गई है. हालांकि इसकी कीमत बीजेपी को चुकानी पड़ी है. विधान परिषद में सिर्फ 13 सदस्य होने के बावजूद अध्यक्ष का पद बीजेपी ने JDS को देने का फैसला किया है. कभी, एक-दूसरे को जरा भी पसंद नहीं करने वाले जेडीएस के कुमारस्वामी (HD Kumaraswamy)और बीजेपी के दिग्गज नेता और सीएम बीएस येदियुरप्पा (BS Yediyurappa) ने आपस में हाथ मिला लिया है. ये दोनों अब साथ आ गए है, इस बात को भुलाकर कि येदियुरप्पा ने कुमारस्वामी की सरकार गिराकर अपनी सरकार बनाई थी.
येदियुरप्पा सरकार के मंत्री एस. ईश्वरप्पा कहते हैं, 'बीजेपी ने फैसला किया है कि कांग्रेस और मुस्लिम लीग को दूर रखने के लिए दूसरी पार्टियों को साथ लिया जाएगा. इसी के तहत हमने यहां जेडीएस को साथ लिया है.हालांकि बीजेपी और जेडीएस का यह साथ कब तक रहेगा, यह आने वाला समय बताएगा. वर्ष 2006 में भी दोनों पार्टियां साथ आ चुकी हैं, तब येदियुरप्पा के समर्थन से कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने थे. इस बार दोनों पार्टियां विधान परिषद के सभापति और उपसभापति के चुनाव को लेकर साथ आई हैं, जिसको लेकर पिछले महीने हाथापाई हुई थी.
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गौरतलब है कि 75 सदस्यों वाली विधान परिषद में जेडीएस के 13 सदस्य है जिसको बीजेपी ने सभापति के लिए समर्थन देने का फैसला किया है और 31 सदस्यों वाली बीजेपी का उपसभापति होगा. इसके कारण 29 सीटों के बावजूद कांग्रेस किनारे पर हैं. JDS के वरिष्ठ नेता बसवराज होरट्टी कहते हैं, 'बीजेपी हमें विधान परिषद अध्यक्ष के लिए मदद करेगी और हम उपाध्यक्ष पद के लिए बीजेपी को समर्थन देंगे.' दूसरी ओर, JDS के 'पाला बदलने' पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया देने में देर नहीं लगाई. कांग्रेस विधायक कृष्णा बैरे गौड़ा ने कहा, 'पहले भी दोनों पाटिया साथी एक बार फिर साथ आई है JDS सिर्फ खुद को सेकुलर रहती है लेकिन वह सेकुलर है नहीं.' सियासी विशेषज्ञों की मानें तो JDS के साथ तालमेल करके सीएम येदियुरप्पा ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं. इससे उन्होंने कांग्रेस को अलग-थलग करने के साथ ही नाराज़ बीजेपी विधायकों को साफ संदेश देने की कोशिश की है अगर वो बगावत पर उतारू हो भी जाए तो उनकी सरकार पर संकट नही आएगा.
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