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This Article is From Dec 10, 2016

किस्‍सा-ए-कोहिनूर : केवल भारत ही नहीं, पाकिस्‍तान, ईरान और अफगानिस्‍तान भी कर रहे इस पर दावा...

किस्‍सा-ए-कोहिनूर  : केवल भारत ही नहीं, पाकिस्‍तान, ईरान और अफगानिस्‍तान भी कर रहे इस पर दावा...
नई दिल्ली: दुनिया में सबसे सराहे गए और अभिशप्‍त माने जाने वाला कोहिनूर हीरा एक बार फिर सुर्खियों में है. इतिहासकार विलियम डेलरिंपल और पत्रकार अनीता आनंद ने इस पर आधारित अपनी नई किताब में इसे मिथकों से निकालकर ऐतिहासिक दस्‍तावेजों के आधार पर इतिहास की रोशनी में इसे देखने की कोशिश की है. आकार के लिहाज से दुनिया के 90वें सबसे बड़े हीरे कोहिनूर के इतिहास से जुड़ी इस किताब का नाम 'कोहिनूर-द स्‍टोरी ऑफ दि वर्ल्‍ड्स मोस्‍ट इनफेमस डायमंड' है.
 
kohinoor book cover 650

वास्‍तव में भारत, पाकिस्‍तान, ईरान, अफगानिस्‍तान की यात्रा करते हुए ब्रिटिश राजघराने तक कोहिनूर के पहुंचने की अनोखी कहानी है. इन्‍हीं वजहों से ये देश इस पर अपने हक का दावा करते रहे हैं और इसे पाने की कोशिश भी करते रहे हैं. वास्‍तविकता में कोहिनूर के किस्‍से की भारत से शुरुआत होती है लेकिन अब भारत के लिए अपनी खोई हुई इस धरोहर को पाना आसान नहीं है. इसके बारे में यह भी किंवदती कही जाती है कि जो भी व्‍यक्ति इस हीरे का स्‍वामी होगा, वह दुनिया पर राज करेगा लेकिन उसको इससे जुड़े दुर्भाग्‍य का भी सामना करना पड़ेगा. ईश्‍वर या या कोई महिला ही इसे बिना किसी दंड के धारण कर सकते हैं. आइए जानें ऐसे ही तमाम मिथकों से जुड़ी कोहिनूर की कहानी :   

कोहिनूर की उत्‍पत्ति के ऐतिहासिक साक्ष्‍य वक्‍त की धारा में बह गए हैं लेकिन मोटे तौर पर माना जाता है कि 13वीं सदी में आंध्र प्रदेश में काकतीय वंश के दौर में इसको गुंटुर जिले से खोजा गया. 14वीं सदी की शुरुआत में दिल्‍ली सल्‍तनत के शहंशाह अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण भारत पर धावा बोला. उसके जनरल मलिक काफूर को वहां की लूट में यह मिला. तब इसे कोहिनूर नहीं कहा जाता था. दिल्‍ली सल्‍तनत के बाद मुगलों के हाथों में गया. बाबर और हुमायूं ने अपने संस्‍मरणों में इसका जिक्र किया. कहा जाता है कि शाहजहां के मयूर सिंहासन में इसे जड़ा गया.

नादिरशाह
फारस के शाह नादिरशाह ने 1739 में दिल्‍ली पर हमला किया. उसने दिल्‍ली में भयानक कत्‍लेआम कराया और उसकी सेना ने मुगल सल्‍तनत के खजाने को लूटा. उसी क्रम में यह नादिरशाह के पास चला गया. कहा जाता है कि उसने जब पहली बार देखा तो इसकी खूबसूरती से अभिभूत होकर कहा-कोहिनूर. उसके बाद से ही इसे इस नाम से पहचाना गया.

महाराजा रणजीत सिंह
1747 में नादिर शाह की हत्‍या के बाद उसके एक जनरल अहमद शाह दुर्रानी के हाथों में यह पहुंचा. उसके वंशज शाह शुजा दुर्रानी ने इसे ब्रेसलेट में पहना. बाद में जब उसको अपने दुश्‍मनों के चलते भागना पड़ा तो लाहौर में सिख सल्‍तनत के संस्‍थापक महाराजा रणजीत सिंह से मिला. उनकी आवभगत और संरक्षण के बदले में 1813 में उसने कोहिनूर महाराजा को दे दिया.

महारानी विक्‍टोरिया
महाराजा रणजी‍त सिंह ने इसको पुरी के जगन्‍नाथ मंदिर में देने की इच्‍छा जाहिर की. लेकिन 1839 में उनकी मौत के बाद ईस्‍ट इंडिया कंपनी ने उनकी इच्‍छाओं का पालन नहीं किया. 1849 में दूसरे आंग्‍ल-सिख युद्ध के बाद पंजाब राज्‍य को ब्रिटिश भारत के अंतर्गत हस्‍तगत कर लिया गया और लाहौर की संधि के तहत महाराजा की अन्‍य संपत्तियों के साथ कोहिनूर का भी अधिग्रहण करके अंग्रेजों ने ब्रिटेन में महारानी विक्‍टोरिया के पास भेज दिया. उसके बाद से ही यह ब्रिटिश राजघराने का हिस्‍सा है.
    

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