
जस्टिस रंजन गोगोई की फाइल फोटो.
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जस्टिस रंजन गोगोई हो सकते हैं सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश
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आरोप लगाया था कि चीफ जस्टिस मामलों के आवंटन में सुप्रीम कोर्ट के 'मास्टर ऑफ द रोस्टर' होने के अपने अधिकार का दुरुपयोग कर रहे हैं. मौजूदा समय में जस्टिस रंजन गोगोई असम के नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) मामले की सुनवाई कर रहे हैं.
वकालत करते हुए बने जजः 18 नवंबर 1954 को जन्मे रंजन गोगोई ने 1978 में बतौर वकील अपना पंजीकरण कराया. फिर गुवाहाटी हाई कोर्ट में वकालत करने लगे. फिर 28 फरवरी 2001 को वह स्थाई जज बने. नौ सितंबर 2010 को उनका ट्रांसफर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के लिए हुआ. 12 फरवरी 2011 को जस्टिस रंजन गोगोई पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस हुए. फिर 23 अप्रैल 2012 को वह सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त हुए.
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दिए कई फैसलेः सुप्रीम कोर्ट की कई पीठों का हिस्सा रहने के दौरान जस्टिस रंजन गोगोई अहम फैसले दे चुके हैं.चुनाव के दौरान उम्मीदवारों को संपत्ति, शिक्षा व चल रहे मुकदमों का ब्योरा देने के लिए आदेश देने वाली पीठ में रंजन गोगोई भी शामिल थे.मई 2016 में जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस पीसी पंत की पीठ ने मुंबई हाई कोर्ट के 2012 के उस ऑर्डर को निरस्त कर दिया था, जिसमें कौन बनेगा करोड़पति शो से अमिताभ की कमाई के असेसमेंट पर रोक लगाई गई थी.दरअसल इनकम टैक्स विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर आरोप लगाया था कि 2002-03 के दौरान हुई कमाई पर अमिताभ ने 1.66 करोड़ रुपये कम टैक्स चुकाया था।
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इस मामले में जुलाई, 2012 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने इनकम टैक्स कमिश्नर की याचिका को खारिज करते हुए अमिताभ को राहत दे दी थी. हाई कोर्ट ने अपने फैसले में इनकम टैक्स ट्रिब्यूनल के निर्णय को बरकरार रखते हुए कहा था कि असेसमेंट ऑफिसर द्वारा सेक्शन 147 के तहत शुरू की गई कार्यवाही अनुचित है. हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ आईटी डिपार्टमेंट सुप्रीम कोर्ट गया था.
अन्य फैसलों की बात करें तो कोलकाता हाईकोर्ट के जस्टिस कर्णन को छह महीने की कैद की सजा, असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) बनाने के आदेश देने वाली पीठ में रह चुके हैं. कन्हैया कुमार मामले में एसआइटी गठन के आदेश से जहां इन्कार किया था, वहीं जाटों को केंद्रीय सेवाओं में ओबीसी के दायरे से बाहर करने वाली पीठ में भी शामिल रहे.
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काटजू ने फैसले पर उठाया था सवालः एक फरवरी 2011 को केरल में ट्रेन में 23 वर्षीय युवती के साथ बलात्कार की घटना हुई थी. यह मामला सुर्खियों में रहा था. आरोपी ने बोगी में बलाल्कार के बाद युवती को ट्रेन से फेंक दिया था तो उसकी मौत हो गई थी. बलात्कार के इस बहुचर्चित केस में निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी, जिस पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी. जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ ने आरोपी को फांसी के फंदे से पहुंचने से रोक दिया और सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया. यह आदेश उन्होंने 15 अक्टूबर 2016 को दिया था. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की सामाजिक कार्यकर्ताओं के स्तर से तीखी आलोचना हुई। खुद पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने शीर्ष अदालत के फैसले को गलत बताते हुए ब्लॉग लिखकर सवाल खड़े किए थे. इस पर जस्टिस रंजन गोगोई ने केस में बहस के लिए और फैसले में‘बुनियादी खामियों’’ को बताने के लिए व्यक्तिगत रूप से जस्टिस काटजू को तलब किया था.
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