महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर अपने बयान के लिए सर्वसम्मति से राज्यसभा में निंदा प्रस्ताव पारित होने के बाद उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने कहा कि महज 'निंदा' पर्याप्त नहीं है और उन्हें बिना मुकदमे के फांसी की सजा दी जानी चाहिए।
काटजू ने अपने ब्लॉग में कहा है, 'ओह आश्चर्यजनक खबर। राज्यसभा (भारतीय संसद का उच्च सदन) ने मेरी निंदा में एक प्रस्ताव पारित किया है। लेकिन निश्चित तौर पर यह पर्याप्त नहीं है। मुझे उस फर्जी, जिसे राष्ट्रपिता कहा जाता है, और जापानी फासिस्टों के एजेंट के बारे में जो मैंने कहा उसके लिए भी अवश्य दंडित किया जाना चाहिए। महज निंदा दंड नहीं है।'
काटजू ने कहा, 'इसलिए उनमें से कुछ मेरा अनुलाभ और सुविधाएं छीन लेना चाहते थे, जो मुझे उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश के तौर पर मिलता है। लेकिन फिर उसके लिए नियमों में संशोधन की आवश्यकता होगी, क्योंकि मैं उच्चतम न्यायालय का सेवानिवृत्त न्यायाधीश हूं।' उन्होंने कहा, 'क्या मैं सदन के माननीय सदस्यों को विनम्र सुझाव दे सकता हूं क्योंकि उनमें साफ तौर पर विचारों का अभाव है। उन्हें एक प्रस्ताव पारित करना चाहिए कि मेरी भारत वापसी पर मुझे तत्काल गिरफ्तार किया जाए और बिना किसी मुकदमे के फांसी दी जाए। न रहेगा बांस न बाजेगी बांसुरी।'
इससे पहले दिन में, पार्टी लाइन से हटकर राज्यसभा के सदस्यों ने काटजू की उस टिप्पणी की निंदा की जिसमें महात्मा गांधी को ब्रिटिश एजेंट और नेताजी सुभाष चंद्र बोस को जापानी एजेंट कहा गया था। सभापति हामिद अंसारी द्वारा राज्यसभा में पेश किए गए इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया गया। अपने नए ब्लॉग में आज न्यायमूर्ति काटजू ने इस बात का दावा करने के लिए पंडित नेहरू की आत्मकथा के उद्धरणों का उल्लेख किया कि यह गांधीजी की 'सामंती सोच' का खुलासा करती है और कहा कि क्या वह राष्ट्रपिता कहलाने के हकदार हैं।
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