राज्य में कांग्रेस अध्यक्ष सुखदेव भगत ने उपचुनाव में जीत दर्ज की (तस्वीर : INCIndia@twitter)
लोहरदगा:
झारखंड में मुख्यमंत्री रघुवर दास सरकार को अगले हफ्ते एक साल पूरा होगा लेकिन इस विशेष दिन की पार्टी अब शायद उतनी खुशनुमा नहीं होगी जितनी इसके लिए तैयारी की जा रही हैं। कारण है लोहरदगा विधानसभा के उपचुनाव का परिणाम जहां कांग्रेस ने राष्ट्रीय लोकत्रांतिक गठबंधन को शिकस्त दी है। राज्य में कांग्रेस अध्यक्ष सुखदेव भगत ने ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के उम्मीदवार को पराजित किया है।
इस सीट पर कांग्रेस और आजसू के प्रत्याशी में सीधा मुकाबला था और इस नतीजे की सबसे बड़ी बात हैं जीत और हार का अंतर। कांग्रेस ने यह सीट २० हज़ार से ज्यादा मतों से जीती हैं जो हाल के सालों में झारखंड के चुनावी इतिहास में एक रिकॉर्ड है। इस सीट से 2009 और 2014 में भगत 700 से कम वोटों से हारे हैं लेकिन निश्चित रूप से इतने बड़े अंतर से जीत की उम्मीद उन्होंने भी नहीं की थी।
प्रतिष्ठा का सवाल
इस सीट पर उपचुनाव दरअसल पूर्व विधयक कमल किशोर भगत के एक मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद हुआ था। कमल किशोर भगत ने आनन फानन में शादी की और उनकी पत्नी नीरू शांति भगत को प्रत्याशी बनाया गया। मुख्यमंत्री रघुवर दास समेत झारखंड सरकार के कई मंत्रियों ने इस चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाते हुए लोहरदगा में अभियान किया लेकिन निश्चित रूप से सरकार को एक साल भी नहीं हुआ और उपचुनाव में हार के बाद अब बीजेपी नेता भी मान रहे हैं की पार्टी और सरकार का असर फीका होता जा रहा है।
हालांकि झारखंड मुक्ति मोर्चा ने यहां अपना प्रत्याशी नहीं दिया था लेकिन उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी में समर्थन की कोई अपील भी नहीं की थी। निश्चित रूप से आने वाले दिनों में बीजेपी के खिलाफ उनके विरोधी पार्टियों का ध्रुवीकरण तेज होगा और कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ मिलकर राज्य सरकार के खिलाफ आंदोलन की घोषणा भी कर सकती है।
झारखंड मुख्यमंत्री रघुवर दास (फाइल फोटो)
इस सीट पर कांग्रेस और आजसू के प्रत्याशी में सीधा मुकाबला था और इस नतीजे की सबसे बड़ी बात हैं जीत और हार का अंतर। कांग्रेस ने यह सीट २० हज़ार से ज्यादा मतों से जीती हैं जो हाल के सालों में झारखंड के चुनावी इतिहास में एक रिकॉर्ड है। इस सीट से 2009 और 2014 में भगत 700 से कम वोटों से हारे हैं लेकिन निश्चित रूप से इतने बड़े अंतर से जीत की उम्मीद उन्होंने भी नहीं की थी।
प्रतिष्ठा का सवाल
इस सीट पर उपचुनाव दरअसल पूर्व विधयक कमल किशोर भगत के एक मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद हुआ था। कमल किशोर भगत ने आनन फानन में शादी की और उनकी पत्नी नीरू शांति भगत को प्रत्याशी बनाया गया। मुख्यमंत्री रघुवर दास समेत झारखंड सरकार के कई मंत्रियों ने इस चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाते हुए लोहरदगा में अभियान किया लेकिन निश्चित रूप से सरकार को एक साल भी नहीं हुआ और उपचुनाव में हार के बाद अब बीजेपी नेता भी मान रहे हैं की पार्टी और सरकार का असर फीका होता जा रहा है।
हालांकि झारखंड मुक्ति मोर्चा ने यहां अपना प्रत्याशी नहीं दिया था लेकिन उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी में समर्थन की कोई अपील भी नहीं की थी। निश्चित रूप से आने वाले दिनों में बीजेपी के खिलाफ उनके विरोधी पार्टियों का ध्रुवीकरण तेज होगा और कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ मिलकर राज्य सरकार के खिलाफ आंदोलन की घोषणा भी कर सकती है।
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