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This Article is From Aug 24, 2015

राजस्थान : 'संथारा' को लेकर जैन समुदाय का प्रदर्शन, जगह-जगह मौन जुलूस निकाले गए

राजस्थान : 'संथारा' को लेकर जैन समुदाय का प्रदर्शन, जगह-जगह मौन जुलूस निकाले गए
जयपुर: जैन समुदाय इस बात से आक्रोशित है कि राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में 'संथारा' पर रोक लगा दी है। संथारा जैन धर्म में वह रिवाज़ है, जिसमें कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से अन्न और जल त्याग देता है और मृत्यु को अपनाता है।

इसके पीछे धारणा है कि अगर कोई अपनी इच्छा से संथारा लेता है तो वह मोक्ष को प्राप्त करता है, लेकिन राजस्थान हाई कोर्ट ने इसे आत्महत्या बताया और कहा कि यहग धारा 309  के तहत दंडनीय अपराध है।

राजस्थान हाईकोर्ट ने संथारा पर रोक लगा दी है, जिसे लेकर जैन समुदाय ने अलग-अलग जगह विरोध प्रदर्शन किए हैं। आज जयपुर में विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए जयपुर के जाने-माने व्यवसायी अजय काला ने कहा, ये हम राइट टू डाई कि बात नहीं कर रहे हैं। यह हर जैनी का जन्मसिद्ध अधिकार है कि वह धर्म निभाते हुए कैसे अपने जीवन का निर्णय करता है। इस पर रोक लगाना धर्म से खिलवाड़ है।

प्रदर्शन में शामिल हुईं नविता जैन ने कहा, हम इस बात से सहमत नहीं हैं कि कोर्ट ने इससे आत्महत्या करार दिया। आत्महत्या तो आप हताश होकर करते हैं और परिवारवालों को नहीं बताते। संथारा में पहले आप परमिशन लेते हैं, तभी गुरु या मुनि के मार्ग दर्शन में संथारा लेते हैं।

संथारा पर याचिका 2006 में दायर की गई थी। नौ साल के बाद राजस्थान हाईकोर्ट ने इसमें अपना निर्णय सुनाया है। ज़ाहिर है कि जैन समुदाय सामाजिक और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली तो है ही और कोर्ट के आदेश को क्रियान्वित करना हर सरकार के लिए मुश्किल होगा। खासकर इसलिए क्योंकि इसमें अब कोर्ट के आदेशों के मुताबिक, भारतीय दंड संख्या कि धारा 309 लागू हो जाएगी।

संथारा के खिलाफ वकील रहे माधव मित्र ने बताया, इनका कहना है कि ये सुसाइड नहीं है, लेकिन जब निर्णय करते हो संथारा लेने का , तो आपको पता होता है कि आपका रिजल्ट डेथ है, तो यह सुसाइड है और एक अपराध है, जिसके खिलाफ धारा 309 लागू होती है।

संथारा पर जो रोक लगी है उसको लेकर विरोध प्रदर्शन तो हो ही रहे हैं। क्या इंसान अपना जीवन किसी भी कारण से त्याग सकता है?

क्या संथारा आत्महत्या है या जीवन का समर्पण, जिससे आत्मा मज़बूत होकर मोक्ष को प्राप्त करती है? विवाद का अभी अंत नहीं हुआ है, क्योंकि अब राजस्थान हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक REVISION PETITION दायर हो चुकी है।

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