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This Article is From Sep 25, 2020

जम्‍मू-कश्‍मीर एनकाउंटर: DNA जांच में पुष्टि, श्रमिक ही थे सेना के हाथों मारे गए तीनों युवक

सेना की ओर से कोर्ट ऑफ इनक्‍वायरी (court of inquiry) ने पहले ही इस 'विवादित' एनकाउंटर (controversial encounter) में शामिल जवानों को दोषी माना है. जांच में पाया गया है कि सैनिकों ने आर्म्‍ड फोर्सेस एक्‍ट के तहत मिले अधिकारों का उल्‍लंघन किया.

जम्‍मू-कश्‍मीर एनकाउंटर: DNA जांच में पुष्टि, श्रमिक ही थे सेना के हाथों मारे गए तीनों युवक
परिजनों ने आरोप लगाया था, एनकाउंटर में मारे गए तीन युवक, श्रमिक थे (प्रतीकात्‍मक फोटो)
श्रीनगर:

जम्‍मू-कश्‍मीर के शोपियां जिले में जुलाई में सेना (Army) के हाथों कथित एनकाउंटर (J&K Encounter) में मारे गए तीनों युवक, राजौरी के श्रमिक (Labourers)ही थे. यह खुलासा DNA से हुआ है. पुलिस ने शुक्रवार को कहा कि डीएनए रिपोर्ट से इन तीनों युवकों के 20 वर्षीय अबरार, 25 वर्षीय इम्तियाज, और 17 वर्षीय इबराम अहमद होने की बात सामने आई है. ये तीनों कजिन थे और लेबर के तौर पर काम करते थे. सेना के जवानों ने इन्‍हें आतंकी 'बताया' था और इनके किराए के घर में इन्‍हें उठाया और बाद में इन्‍हें मौत के घाट उतार दिया था. 

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सेना की ओर से कोर्ट ऑफ इनक्‍वायरी (court of inquiry) ने पहले ही इस 'विवादित' एनकाउंटर (controversial encounter) में शामिल जवानों को दोषी माना है. जांच में पाया गया है कि सैनिकों ने आर्म्‍ड फोर्सेस एक्‍ट के तहत मिले अधिकारों का उल्‍लंघन किया. जांच में प्रथम दृष्‍टया पाया गया था कि जवानों ने AFSPA 1990 की शक्तियों का दुरुपयोग किया और सु्प्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए निर्देशों की अवहेना हुई.' गौरतलब है कि एनकाउंटर के बाद के इन तीनों युवकों के सोशल मीडिया पर फोटो आने के बाद विवाद गहरा गया था. परिवार ने इनकी पहचान तीन कजिन के रूप में की थी जिनसे 17 जुलाई से संपर्क नहीं हो पा रहा था. विवाद के बाद सेना और पुलिस की ओर से कहा गया था कि वे मामले की जांच करेंगे.

उस समय क्षेत्र में रह रहे लोगों ने NDTV को बताया था कि पुलिस और सेना की ओर से उन्‍हें डेड बॉडी की पहचान के लिए बुलाया गया था, लेकिन समें से कोई भी स्‍थानीय नहीं पाया गया था. एनकाउंटर के स्‍थान से करीब 100 मीटर दूर रहने वाले ग्रामीण मोहम्‍मद अशरफ ने बताया, 'हमें शवों की पहचान के लिए बुलाया गया था लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाए थे क्‍यों‍कि वे स्‍थानीय लोग नहीं थे. उनके चेहरे, आंखों और सीने में गोली लगने के निशाना थे.' डीएनए प्रोफाइलिंग (DNA profiling) में देर को लेकर भी पुलिस की भूमिका और उसके जांच के तरीकों को लेकर आलोचना झेलनी पड़ी थी. परिवार के डीएनए सैंपल 13 अगस्‍त को लिए गए थे और इसके परिणाम को सार्वजनिक करने में 43 दिन का समय लग गया. मारे गए युवकों के परिजनों ने आरोप लगाया था कि मामले में लीपापोती की कोश्शि की जा रही है.

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