
प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
आईटी एक्ट की धारा 66 ए के बाद अब सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि भारतीय कानून में आपराधिक मानहानि की धारा आईपीसी 499 और 500 बनी रहेगी या नहीं। सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को यह आदेश देगा कि क्या यह कानून संवैधानिक है या लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन करता है।
कई नेताओं ने कानूनी धारा को बताया असंवैधानिक
दरअसल बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी,कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत कई लोगों ने इस धारा को अंसवैधानिक बताते हुए खत्म करने की मांग की है। सुनवाई के दौरान में सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी लोगों के खिलाफ आपराधिक मानहानि के अलग अलग मामलों में निचली अदालतों में चल रही सुनवाई पर रोक लगा दी थी और केंद्र सरकार से जवाब मांगा था।
आलोचना गलत नहीं लेकिन सीमा इसकी भी
आपराधिक मानहानि की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर कोई पॉलिसी किसी को पसंद नहीं है तो उसकी आलोचना मानहानि के दायरे में नहीं है। भारतीय संविधान में सभी को बोलने व अभिव्यक्ति का अधिकार मिला है। ऐसे में आलोचना में कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन ऐसी कोई भी आलोचना जिससे किसी व्यक्ति विशेष के सम्मान को ठेस पहुंचे, तो वह मानहानि के दायरे में होगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि आलोचना की एक सीमा होती है। वह कानून के दायरे में होनी चाहिए लेकिन अगर किसी की छवि खराब करने के लिए ऐसा किया जाता है तो मानहानि माना जाएगा।
केजरीवाल ने कहा - औपनिवेशिक कानून
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता व दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की ओर से दलील दी गई थी कि उक्त प्रावधान को खत्म किया जाना चाहिए क्योंकि यह औपनिवेशिक कानून है और इसका दुरुपयोग हो रहा है। इस पर विचार करने और इसे खत्म करने की जरूरत है। केंद्र सरकार की दलील थी कि मानहानि से संबंधित कानूनी प्रावधान सही है। हर व्यक्ति को 'राइट टू लाइफ एंड लिबर्टी' मिली हुई है और यह मूल अधिकार है। राइट टू लाइफ का मतलब मान सम्मान और प्रतिष्ठा के साथ जीवन जीने का अधिकार है। ऐसे में मानहानि से संबंधित कानूनी प्रावधान को बरकरार रखना जरूरी है।
कई नेताओं ने कानूनी धारा को बताया असंवैधानिक
दरअसल बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी,कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत कई लोगों ने इस धारा को अंसवैधानिक बताते हुए खत्म करने की मांग की है। सुनवाई के दौरान में सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी लोगों के खिलाफ आपराधिक मानहानि के अलग अलग मामलों में निचली अदालतों में चल रही सुनवाई पर रोक लगा दी थी और केंद्र सरकार से जवाब मांगा था।
आलोचना गलत नहीं लेकिन सीमा इसकी भी
आपराधिक मानहानि की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर कोई पॉलिसी किसी को पसंद नहीं है तो उसकी आलोचना मानहानि के दायरे में नहीं है। भारतीय संविधान में सभी को बोलने व अभिव्यक्ति का अधिकार मिला है। ऐसे में आलोचना में कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन ऐसी कोई भी आलोचना जिससे किसी व्यक्ति विशेष के सम्मान को ठेस पहुंचे, तो वह मानहानि के दायरे में होगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि आलोचना की एक सीमा होती है। वह कानून के दायरे में होनी चाहिए लेकिन अगर किसी की छवि खराब करने के लिए ऐसा किया जाता है तो मानहानि माना जाएगा।
केजरीवाल ने कहा - औपनिवेशिक कानून
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता व दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की ओर से दलील दी गई थी कि उक्त प्रावधान को खत्म किया जाना चाहिए क्योंकि यह औपनिवेशिक कानून है और इसका दुरुपयोग हो रहा है। इस पर विचार करने और इसे खत्म करने की जरूरत है। केंद्र सरकार की दलील थी कि मानहानि से संबंधित कानूनी प्रावधान सही है। हर व्यक्ति को 'राइट टू लाइफ एंड लिबर्टी' मिली हुई है और यह मूल अधिकार है। राइट टू लाइफ का मतलब मान सम्मान और प्रतिष्ठा के साथ जीवन जीने का अधिकार है। ऐसे में मानहानि से संबंधित कानूनी प्रावधान को बरकरार रखना जरूरी है।
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