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This Article is From Oct 13, 2020

अंतरराष्ट्रीय स्तर की कराटे चैम्पियन आर्थिक स्थिति खराब होने के चलते बेच रही हड़िया

झारखंड में खेल के क्षेत्र में प्रतिभा की कमी नहीं है, कई प्रतिभावानों की प्रतिभा पैसे के आभाव और सरकारी उपेक्षाओं के कारण दम तोड़ देती है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर की कराटे चैम्पियन आर्थिक स्थिति खराब होने के चलते बेच रही हड़िया
कराटे चैंपियन विमला मुंडा (फाइल फोटो).
रांची:

झारखंड में खेल के क्षेत्र में प्रतिभा की कमी नहीं है, कई प्रतिभावानों की प्रतिभा पैसे के आभाव और सरकारी उपेक्षाओं के कारण दम तोड़ देती है. राजधानी रांची के कांके में एक ऐसी प्रतिभा रहती है, जो कराटे में सिर्फ ब्लैक बेल्ट ही नहीं बल्कि नेशनल गोल्ड मेडलिस्ट भी है. लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि अपनी राजधानी में रहने वाली यह प्रतिभा की धनी खिलाड़ी मजबूरी और बेबसी में जिंदगी गुजार रही है. आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण विमला जैसी नेशनल प्लेयर आज हड़िया (राइस बियर) बेच कर अपना और अपने परिवार का  ख्याल रख रही हैं.

अपने मेडल और सर्टिफिकेट को  निहारती ये हैं विमला मुंडा..... 

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विमला मुंडा वैसे तो साल 2008 से ही टूर्नामेंट खेल रही हैं. इसी साल डिस्ट्रिक्ट लेवल पर इन्होंने मेडल अपने नाम किया था. इसके बाद 2009 में ओडिशा में भी पदक विजेता रहीं. 34वें नेशनल गेम्स में विमला ने सिल्वर मेडल जीत कर राज्य का मान बढ़ाया तो वहीं अक्षय कुमार इंटरनेशनल कराटे चैम्पियनशिप में इन्होंने दो गोल्ड मेडल जीत कर अपना और अपने राज्य का नाम रौशन किया. इस तरह के सैकड़ों मेडल विमला ने अपने नाम किए हैं. विमला अपने मेडल और सर्टिफिकेट देखकर भावुक हो जाती हैं. कहती हैं पहले पूरे दिन सिर्फ अपने मेडल और सर्टिफिकेट को ही निहारती रहती थी.. लेकिन जैसे सच्चाई से सामना होता गया मैंने अपने सभी मेडल और सर्टिफिकेट बक्से में रख दिए हैं. 

टूर्नामेंट में कई बार विमला को चोटिल भी होना पड़ा है.  फिर भी विमला टूर्नामेंट में शामिल होने से पीछे नहीं हटती. विमला की माली हालत बहुत ही खराब है. वह बचपन से ही नाना-नानी के घर पर रहकर प्रैक्टिस करती रही हैं. मां खेत में काम करती हैं और पिताजी की भी फिजिकल कंडिशन ठीक नहीं होने के कारण वे कुछ काम नहीं कर पाते हैं. नाना-नानी की भी तबीयत ठीक नहीं रहती है. आर्थिक बदहाली के कारण विमला को हड़िया बेचना पड़ रहा है.

खेल विभाग ने अक्टूबर-नवंबर 2019 में नेशनल मेडल विजेताओं के लिए खेल कोटे से सीधी नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया था. जिसमें कई प्लेयर्स ने आवेदन किये थे. विभाग की ओर से इसी साल फरवरी में 34 खिलाड़ियों को शॉर्टलिस्ट किया गया था. इसके बाद संबंधित फाइल ठंडे बस्ते में चली गई है.

सरकार किसी भी पार्टी की हो, जनता को सिर्फ आश्वासन ही मिलता है. राज्य में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है. लेकिन उस प्रतिभा को सम्मान नहीं दिया जाता है. यहां खेल को तो महत्व दिया जाता है.. लेकिन खिलाडि़यों को नजरअंदाज कर दिया जाता है. खिलाडि़यों को आर्थिक मदद, नौकरी व अन्य सम्मान देने का वादा तो होता है. लेकिन सरकार कुछ ही दिनों में अपने वादे भी भूल जाती है. उसके बाद खिलाड़ी सिस्टम और सरकार को जगाते रहते हैं, लेकिन सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ता.

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