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This Article is From Jun 25, 2015

इमरजेंसी के दौरान अशांत रहती थीं इंदिरा गांधी : एनडीटीवी से सोनिया (2004)

इमरजेंसी के दौरान अशांत रहती थीं इंदिरा गांधी : एनडीटीवी से सोनिया (2004)
शेखर गुप्ता के साथ 'वॉक द टॉक कार्यक्रम' में सोनिया गांधी (फाइल तस्वीर)
नई दिल्ली : आज पूरा देश इमरजेंसी की 40वीं वर्षगांठ पर आपातकाल के दौरान हुए सामाजिक और राजनैतिक बदलावों को याद कर रहा है। लेकिन इन सबके बीच मुश्किल है उस सोच का पता लगाना जिससे ये पता चल सके कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब देश में आपातकाल की घोषणा की, तब वे ख़ुद किस मानसिकता से गुज़र रहीं थीं।

करीब 11 वर्ष पहले साल 2004 में एनडीटीवी के कार्यक्रम ‘वॉक-द-टॉक’ में वरिष्ठ पत्रकार शेख़र गुप्ता से बातचीत करते हुए सोनिया गांधी ने बताया था कि इंदिरा गांधी अपने उस फ़ैसले से बहुत संतुष्ट नहीं थीं और अक्सर घर में संजय और राजीव से इसकी चर्चा किया करती थीं।    

इंदिरा का व्यक्तित्व लोकतांत्रिक

सोनिया गांधी ने साल 2004 में शेख़र गुप्ता को दिए गए इंटरव्यू में कहा था, 'मेरी सास इंदिरा गांधी ने ख़ुद कहा था कि वे चुनाव हार चुकी हैं, उन्होंने ख़ुद कहा था कि उन्हें इस मुद्दे पर फिर से सोचना होगा...और उनका दोबारा देश में चुनाव की घोषणा करना इस बात का सबूत है कि वो इमरजेंसी लागू करने के अपने फैसले से बहुत संतुष्ट नहीं थीं।'

इसी बातचीत में सोनिया गांधी ने आगे कहा, 'जिस इंदिरा गांधी को वो जानती थीं, वे दिल से एक लोकतांत्रिक व्यक्ति थीं और शायद इसी कारण वो अपने द्वारा देश में इमरजेंसी लागू करने के फैसले को एक बहुत बड़ी राजनैतिक भूल मानती थीं। मेरे ख़्याल से उस वक्त़ के राजनैतिक हालात ने उन्हें ये फैसला लेने को मजबूर किया था।'    

शेख़र गुप्ता के ये पूछने पर कि क्या कभी वे घर में इस बात की चर्चा करती थीं कि वो देश को इस स्थिति से बाहर करना चाहती हैं, इस पर सोनिया गांधी ने कहा, 'हां कभी-कभार, हालांकि उन्होंने कभी खुलकर ऐसा कुछ नहीं कहा लेकिन वो जो कहती थीं उससे ये समझना मुश्किल नहीं था कि वो क्या चाहती हैं। मैं ऐसी कोई ख़ास घटना तो याद नहीं कर पा रही हूं, लेकिन इतना ज़रूर कह सकती हूं कि उस वक्त़ वे बेहद बैचैन और अशांत रहती थीं।'

इमरजेंसी एक सबक

ये याद दिलाए जाने पर कि उस दौरान देशभर में किस तरह से इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ एक हवा तैयार हो रही थी, सोनिया गांधी ने कहा, 'हालांकि ये तय है कि आपातकाल को किसी भी तरह से जायज़ नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन ये भी सच है कि देश में नसबंदी के खिलाफ़ जानबूझ कर एक प्रोपेगैंडा चलाया जा रहा था। ये बात इमरजेंसी के बाद के भी कई रिपोर्टों में आई थी कि नसबंदी की समस्या को विपक्षी दलों ने काफ़ी बढ़ा-चढ़ा कर लिखा था।'

ये पूछे जाने पर कि क्या इमरजेंसी एक तरह से सबक है इस बात की, कि हमारे देश में तानाशाही नहीं चल सकती या भारतीय मानस कभी भी इस तरह का निरंकुश शासन बर्दाश्त नहीं करेगा, सोनिया गांधी का जवाब था- शायद हां।

शेख़र गुप्ता - और क्या इस बारे में संजय, राजीव और इंदिरा के बीच बातें भी होतीं थीं?
सोनिया गांधी - हां, होती थीं। मुझे याद भी है, लेकिन मैं उनके बारे में अभी बात नहीं करना चाहूंगी?
शेख़र गुप्ता -  पर इस घटना को 25 साल गुज़र गए हैं...
सोनिया गांधी - शायद अगले 25 सालों के बाद।

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