श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश) : भारत ने शनिवार को अपना चौथा नौवहन उपग्रह सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित कर दिया। यह उपग्रह खुद के रॉकेट से छोड़ा गया, जिसके बाद देश खुद की नेवीगेशनल प्रणाली शुरू करने को तैयार है।
59.5 घंटे की उल्टी गिनती के समापन पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के विश्वसनीय ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी-सी27) का यहां स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से शाम पांच बजकर 19 मिनट पर प्रक्षेपण हुआ। PSLV-C27 ने प्रक्षेपण के 21 मिनट बाद उपग्रह को उसकी कक्षा में छोड़ दिया। रॉकेट लगभग 320 टन वजनी और लगभग 44 मीटर लंबा था।
इसरो के अध्यक्ष ए एस किरण कुमार ने कहा कि मिशन सफल रहा और उपग्रह को सही कक्षा में स्थापित कर दिया गया है। इसरो के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभालने के बाद कुमार की यह पहली परियोजना थी।
कुमार ने कहा, 'मैं पीएसएलवी के 28वें सफल मिशन के लिए इसरो की पूरी टीम को बधाई देता हूं, जिसने आईआरएनएसएस-1डी को उसकी कक्षा में स्थापित किया जो कि नेवीगेशनल उपग्रह समूह का चौथा उपग्रह है।'
वहीं प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, रॉकेट ने जैसे ही गति पकड़ी, वह आग की लपटों से घिरी एक लंबी वस्तु की तरह दिखा। रॉकेट के दागे जाने के बाद यहां मौजूद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों तथा मीडिया टीम ने खुशी का इजहार किया।
रॉकेट मिशन नियंत्रण कक्ष में मौजूद इसरो के वैज्ञानिक अपने कंप्यूटर स्क्रीन से चिपके रहे और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से रॉकेट के बाहर निकलने की स्थिति पर नजर गड़ाए रहे।
पीएसएलवी-सी27 ने लगभग 20 मिनट की उड़ान के दौरान आईआरएनएसएस-आईडी को अपने से अलग कर दिया। इसके साथ ही मिशन नियंत्रण कक्ष में बैठे वैज्ञानिकों ने राहत की सांस ली और उन्होंने तालियां बजाई।
उपग्रह के कक्षा में पहुंचने के तत्काल बाद उपग्रह के सौर पैनल तैनात हो गए। उपग्रह का नियंत्रण कर्नाटक के हासन स्थित मिशन नियंत्रण केंद्र (एमसीएफ) से किया गया।
उपग्रह जब तक गोलाकार भूस्थैतिक कक्षा में स्थापित नहीं हो जाता, तबतक उस पर लगे मोटर को चालू कर उपग्रह की कक्षा उन्नयन का प्रबंधन एमसीएफ से किया जाएगा।
यह प्रणाली अमेरिका (24 उपग्रह) के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस), रूस के ग्लोनास (24 उपग्रह) और यूरोप के गैलीलियो (27 उपग्रह), चीन के बीदोऊ (35 उपग्रह) के जैसी है।
जीपीएस और ग्लोनास पूरी तरह सक्रिय वैश्विक प्रणालियां हैं, लेकिन चीन और जापान की प्रणालियां क्षेत्रीय कवरेज प्रदान करती हैं और यूरोप का गैलीलियो अभी तक सक्रिय नहीं हुई है।
इसकी सफलता के साथ ही सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम का भारतीय वर्जन शुरू हो जाएगा, यानि देसी जीपीएस। ये अमेरिकी ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम की तरह ही काम करेगा, लेकिन कवरेज का जहां तक सवाल है तो वह रीजनल होगी।
इसी के साथ भारत दुनिया में छठा देश बन जाएगा, जिसके पास ये सिस्टम होगा। इसकी ज़रूरत जहां एक तरफ भारतीय सेना को है, वहीं इसका फ़ायदा आम लोगों को भी मिलेगा।
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