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This Article is From Dec 08, 2017

भारतीय स्‍टार्टअप द्वारा डिजाइन किया गया ड्रोन रखेगा चीनी सेना की हरकतों पर नजर...

धरती के पास की कक्षा से ये ड्रोन, जिसका कोई नाम फिलहाल नहीं रखा गया है, तिब्‍बत के शिगात्‍से शहर में चीनी सेना की गतिविधियों पर चौबीसों घंटे नजर रखने में सक्षम होगा.

भारतीय स्‍टार्टअप द्वारा डिजाइन किया गया ड्रोन रखेगा चीनी सेना की हरकतों पर नजर...
न्‍यूस्‍पेस को बोइंग से भी मदद मिलने का भरोसा है. बोइंग का ड्रोन सोलर ईगल (फाइल फोटो)
नई दिल्‍ली: आज से करीब तीन साल बाद, नोएडा के एक स्‍टार्टअप द्वारा बनाया गया एक अनोखा ड्रोन शायद अरुणाचल प्रदेश के तवांग के आसमान में करीब 65000 फुट की ऊंचाई पर उड़ रहा होगा और एक बार में लगातार तीन हफ्तों पर आसमान में ही रहेगा. धरती के पास की कक्षा से ये ड्रोन, जिसका कोई नाम फिलहाल नहीं रखा गया है, तिब्‍बत के शिगात्‍से शहर में चीनी सेना की गतिविधियों पर चौबीसों घंटे नजर रखने में सक्षम होगा. चीन का यह शहर तवांग से 200 किलोमीटर से भी ज्‍यादा दूरी पर स्थित है. यह ड्रोन निगरानी उपग्रहों की जगह ले सकता है, जिन्‍हें किसी खास जगह की हाई रिजोल्‍यूशन तस्‍वीरें लेने के लिए सही जगह पर लाने में अपने सीमित ईंधन को खर्च करना पड़ता है.

न्‍यूस्‍पेस रिसर्च एंड टेक्‍नोलॉजिस द्वारा विकसित यह ड्रोन भारत में निजी क्षेत्र द्वारा डिजाइन किया गया पहला एयरक्राफ्ट है. इससे जुड़ा सारा रिसर्च और डेवलपमेंट का काम कंपनी ने अपने यहां ही किया है, जिसे ऐयरोस्‍पेस की दिग्‍गज कंपनी बोइंग ने भी मान्‍यता दी है. इस ड्रोन की पहली उड़ान जिसे HAPS यानी हाई ऑल्‍टीट्यूड सूडो सैटेलाइट (High Altitude Pseudo Satellite) श्रेणी में रखा गया है, 2019 के लिए निर्धारित है.

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बोइंग के सूत्रों ने NDTV को बताया कि वो इस एयरक्राफ्ट के डिजाइन से खासे प्रभावित हैं. उन्‍होंने इसे एयरोस्‍पेस इंजीनियरिंग में मील का पत्‍थर भी बताया. न्‍यूस्‍पेस को उम्‍मीद है कि भारत समेत दुनिया के अन्‍य देशों में भेजे जाने से पहले उसे अपने डिजाइन को और ज्‍यादा बेहतर करने में उसे बोइंग के लंबे समय के शानदार अनुभव से मदद मिलेगी. साथ ही ड्रोन के लिए जरूरी सेंसर भी उसे मिलने की उम्‍मीद है. बोइंग और न्‍यूस्‍पेस दोनों के ही सूत्रों को यकीन है कि यह प्‍लेटफॉर्म दुनिया में अग्रणी बन सकता है.

ड्रोन विमानों के सुरक्षित उतरने में मदद करेगी नासा की नई तकनीक

वर्तमान में कुछ बड़ी कंपनियां ही ऐसे सिस्‍टम पर काम कर रही हैं, इनमें शामिल हैं एयरबस का Zephyr ड्रोन, चीन की एवीआईसी जो मॉर्निंग स्‍टार नाम के ड्रोन का विकास कर रहा है, औरा सोशल नेटवर्किंग दिग्‍गज कंपनी फेसबुक जिसके पहले यूएवी (UAV) अकीला ने पिछले साल जून में उड़ान भरी थी. लंदन ने Zephyr ड्रोन को बेहद उच्‍च क्षमता की निगरानी के लिए खरीदा जबकि फेसबुक को उम्‍मीद है कि यूएवी अकीला के समूहों का उपयोग कर वह 10 गीगाबाइट प्रति सेकेंड की स्‍पीड से इंटरनेट को लोगों तक पहुंचा सकता है.

न्‍यूस्‍पेस के प्रोजेक्‍ट डेवलपर्स ने NDTV को बताया कि उनके हाई ऑल्‍टीट्यूड ड्रोन इंटेलीजेंस, सर्वेलांस यानी निगरानी और टोही क्षमताओं के लिए एक आदर्श प्‍लेटफॉर्म होंगे. सामान्‍य भाषा में कहें तो यह ड्रोन अलग-अलग तरह के पॉड के जरिए दिन या रात किसी समय में स्टिल या मूविंग यानी चलित तस्‍वीरें आसानी से प्राप्‍त की जा सकेंगी.

हालांकि न्‍यूस्‍पेस के लिए आगे की राह अब भी आसान नहीं है. अब न्‍यूस्‍पेस हाई डेंसिटी लिथियम-सल्‍फर बैटरियों को प्राप्‍त करने की प्रक्रिया में है. यह तकनीक दुनिया भर में कुछ चुनिंदा कंपनियों के पास ही उपलब्‍ध है. इन बैटरियों को चार्ज करने के लिए उच्‍च क्षमता वाले सोलर सेल्‍स की जरूरत होगी ताकि यह एयरक्राफ्ट उड़ान भरता रहे.

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कुछ अन्‍य चुनौतियां भी हैं. भारत के बड़े हिस्‍से में हवा की स्थितियां काफी विषम होती हैं. 65000 फीट की ऊंचाई हासिल करने के लिए ड्रोन को रिमोट के जरिए उड़ाने वाले ऑपरेटर को बड़ी ही सावधानी से हवाओं का सामना करते हुए धीरे धीरे एयरक्राफ्टा को ऊंचाई पर ले जाना होगा. जेट विमानों के उलट, ड्रोन के प्रोपेलर अल्‍ट्रा लाइटवेट इलेक्ट्रिक मोटर द्वारा संचालित होते हैं और इसके पंख जिनकी चौड़ाई 50 मीटर से भी अधिक होती है, को इस तरह डिजाइन किया गया है ताकि एयरक्राफ्ट अधिक ऊंचाई पर उड़ता रह सके, जैसे कि कोई ग्‍लाइडर.

अगर न्‍यूस्‍पेस अपना ड्रोन विकसित करने में कामयाब होती है, तो भारत को एक स्‍टेट ऑफ द आर्ट टेक्‍नोलॉजी मिलेगी वो भी एक ऐसे क्षेत्र में जिसमें अगले दो दशक तक असीम संभावनाएं हैं.

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