भारत और पाकिस्तान के बीच भले ही सरहद की लकीरें खींच चुकी हों, लेकिन कुछ ऐसे रिश्ते हैं जो सरहद की दीवारों से भी ज़्यादा मज़बूत होते हैं। ऐसा ही कुछ रिश्ता है पाकिस्तान की रियासत उमरकोट का। सिंध में बसा उमरकोट पाकिस्तान की एक मात्र हिन्दू रियासत है। 1947 में जब विभाजन हुआ था तो कई परिवार यहां से राजस्थान में आ बसे थे, लेकिन उमरकोट के राणा ने अपनी जन्मभूमि नहीं छोड़ी।
1965 तक उनका आना-जाना भारत से लगातार होता रहता था, लेकिन पाकिस्तान के साथ 1965 के युद्ध के बाद राजनीतिक परिस्थितियां बदल गईं, बॉर्डर पर फेंसिंग लग गई और लोगों का लोगों से संपर्क सरहद पर तनाव के कारण कम हो गया।
लेकिन 1965 के 50 साल बाद अब उमरकोट से 100 लोगों की बरात जयपुर आई है, एक नया रिश्ता जोड़ने के लिए उमरकोट के राणा हमीर सिंह के बेटे और वारिस करनी सिंह की शादी कानोता के ठाकुर मान सिंह की बेटी पद्मिनी से हो रही है।
"ये मज़हब और धर्मों की बातें तो अब चली है, लेकिन संस्कृति तो एक ही है, जब ठाकुर मान सिंह पाकिस्तान आए थे ,अपनी बेटी का रिश्ता हमारे साथ पक्का करने के लिए तो उन्होंने मुझसे पूछा अब अकेले पाकिस्तान में कैसे रहते हो, लेकिन जब उन्होंने वहां मेरे साथ उनके स्वागत में खड़ी हज़ारों की भीड़ देखी तो उन्होंने समझ लिया कि वहां हमारे साथ पूरा पाकिस्तान है।"
ऐसा कहना था, राणा हमीर सिंह का। राणा हमीर सिंह के पिता राणा चंद्रसेन पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के संस्थापकों में से एक थे, उन्होंने बेनज़ीर भुट्टो की सरकार में कई मंत्रिपद भी संभाले। 800 साल से उमरकोट की रियासत पाकिस्तान की राजनीति में अहम भूमिका निभाती आई है। उमरकोट में 1540 में शेर शाह सूरी से हार कर हुमायुं ने शरण ली थी, शहंशाह अकबर का जन्म उमरकोट के किले में हुआ था।
और ज़ाहिर है पाकिस्तान और हिंदुस्तान की अवाम इस ऐतिहासिक रिश्ते की क़दर करती है। "तभी जब हम 100 बाराती लेकर हिंदुस्तान आ रहे थे, तो हिंदुस्तान की ओर से हम सब को तुरंत वीजा दे दिया गया।" ये कहना था करणी सिंह का जिनकी शादी जयपुर में हो रही है।
दुल्हन पद्मिनी ने कहा, "जब हिंदुस्तान और पाकिस्तान के लोग इस तरह से रिश्ते में जुड़ते है और गले मिलते है तो उनका नजरिया एक दूसरे के प्रति बदलता है। उनकी दुल्हन पद्मिनी भी इस रिश्ते से खुश हैं" मेरी सास राजस्थान की हैं, मेरे मंगेतर की बहने सब हिंदुस्तान में ब्याही हैं, तो मुझे नहीं लगता वहां रहने में मुझे कुछ तकलीफ होगी, उनका रहन-सहन बिलकुल हमारे जैसे है।"
कानोता के ठाकुर साब मान सिंह ने कहा कि जब सरहद पार से ये रिश्ता उनकी बेटी के लिए आया तो उन्होंने भारत पाकिस्तान के बारे में नहीं सोचा। उन्होंने रियासत के रसूख, रस्मो रिवाज़ और सम्मान को देखते हुए रिश्ता मंज़ूर कर लिया।
सियासत और हालात सरहद की लकीरें भली ही खींचती हों, पर इंसानी रिश्ते कई बार इनकी परवाह नहीं करते और जैसे इस रिश्ते ने साबित कर दिया, इनकी ज़रूरत भी नहीं होती।
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