कैलाश चंद्र यादव ने भारतीय हॉकी के लिए कई अंतर्राष्ट्रीय मैच खेले थे
नई दिल्ली:
क्या कभी आपने किसी खिलाड़ी को चार उंगलियों से हॉकी खेलते हुए देखा है, शायद नहीं या फिर ऐसे बहुत गिने-चुने खिलाड़ी होंगे. आज आप के सामने एक ऐसा खिलाड़ी का ज़िक्र करने जा रहे हैं जो चार उंगलियों से हॉकी खेलते हुए विपक्ष के खेमें में हड़कंप मचा दिया था लेकिन गरीबी के सामने हार गए. इस खिलाड़ी की परिवार 62 सालों से एक कमरे के किराये के मकान में रह रहा है.
जी हां, जिस खिलाड़ी की बात हो रही हैं वो हैं कैलाश चंद्र यादव. कैलाश चंद्र यादव का जन्म पाकिस्तान में हुआ था. बंटवारे से पहले वह रावलपिंडी क्लब के लिए हॉकी खेलते थे. आज़ादी के बाद कैलाश चंद्र पाकिस्तान छोड़कर अपने परिवार के साथ भारत आ गए. दिल्ली के कश्मीरी गेट पर किराये के मकान पर रहे. शुरुआती दौर में कैलाश चंद्र यादव को बहुत संघर्ष करना पड़ा. पैसा न होने की वजह से ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाए थे. हिन्दू कॉलेज के सामने साइकिल की दुकान के जरिए कैलाश ने अपना गुजरा किया.
परिस्थिति कुछ भी हो हॉकी के प्रति कैलाश चंद्र यादव का प्रेम कभी कम नहीं हुआ. सबसे पहले दिल्ली के लिए वे हॉकी खेले. फिर भारत के लिए कुछ मैच खेलने का मौका मिला. कैलाश के साथ खेले ब्रज भूषण कहना है कि आज़ादी के बाद कश्मीरी गेट के आसपास छोटे-मोटे झगड़ा हुआ करते थे और एक दफ़ा अपनेआप को बचाते समय कैलाश चंद्र का अंगूठा कट गया था. ब्रज भूषण बताते हैं कि अंगूठा कट जाने के बाद चार उंगलियों से हॉकी स्टिक पकड़ना बहुत मुश्किल है लेकिन इसके बावजूद भी कैलाश चंद्र यादव बहुत अच्छी हॉकी खेलते थे.
कैलाश का परिवार ने आज भी उनके 62 साल पुराने पासपोर्ट को संभाल कर रखा है. 1955 में कैलाश पाकिस्तान के खिलाफ मैच खेलने के लिए पाकिस्तान गए और पाकिस्तान हराकर आए थे. रिकॉर्ड बुक में कैलाश चंद्र के बारे में ज्यादा कुछ तो नहीं है लेकिन उस वक्त के राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और कई राजनेताओं के साथ यह तस्वीर बताती है के कैलाश चंद्र यादव कोई छोटे खिलाड़ी नहीं थे.
कैलाश चंद्र आयकर विभाग में नोटिस सर्वर के रूप में काम करते थे लेकिन इस नौकरी जीतना वेतन मिलता था उसमें परिवार चलना मुश्किल था. 80 के दशक में कैलाश चंद्र यादव की गरीबी के बारे में मीडिया में खबरें छपीं और डॉक्यूमेंट्री भी बनी. मीडिया रिपोर्ट को संज्ञान लेते हुए उस वक्त के प्रधानमंत्री की तरफ से कैलाश चंद्र यादव को दो हज़ार रुपये का चेक मिला था लेकिन उसके बाद सब उन्हें भूल गए.
2002 में बीमारी के चलते कैलाश चंद्र यादव का देहांत हो गया. उनकी 85 साल की पत्नी आज बीमार हैं और कुछ दिन पहले अस्पताल से डिस्चार्ज हुई हैं. कैलाश चंद्र तो इस दुनिया से चले गए लेकिन गरीबी ने उनके परिवार पीछा नहीं छोड़ा. आज भी उनकी पत्नी अपने बेटे के साथ बुराड़ी के एक कमरे के किराये के मकान पर रहती हैं. पेंशन के रूप में जितना पैसा मिलता है उससे घर का खर्च मुश्किल से निकल पाता है.
जी हां, जिस खिलाड़ी की बात हो रही हैं वो हैं कैलाश चंद्र यादव. कैलाश चंद्र यादव का जन्म पाकिस्तान में हुआ था. बंटवारे से पहले वह रावलपिंडी क्लब के लिए हॉकी खेलते थे. आज़ादी के बाद कैलाश चंद्र पाकिस्तान छोड़कर अपने परिवार के साथ भारत आ गए. दिल्ली के कश्मीरी गेट पर किराये के मकान पर रहे. शुरुआती दौर में कैलाश चंद्र यादव को बहुत संघर्ष करना पड़ा. पैसा न होने की वजह से ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाए थे. हिन्दू कॉलेज के सामने साइकिल की दुकान के जरिए कैलाश ने अपना गुजरा किया.
तत्कालीन राष्ट्रपति से मुलाकात करते कैलाश चंद्र
परिस्थिति कुछ भी हो हॉकी के प्रति कैलाश चंद्र यादव का प्रेम कभी कम नहीं हुआ. सबसे पहले दिल्ली के लिए वे हॉकी खेले. फिर भारत के लिए कुछ मैच खेलने का मौका मिला. कैलाश के साथ खेले ब्रज भूषण कहना है कि आज़ादी के बाद कश्मीरी गेट के आसपास छोटे-मोटे झगड़ा हुआ करते थे और एक दफ़ा अपनेआप को बचाते समय कैलाश चंद्र का अंगूठा कट गया था. ब्रज भूषण बताते हैं कि अंगूठा कट जाने के बाद चार उंगलियों से हॉकी स्टिक पकड़ना बहुत मुश्किल है लेकिन इसके बावजूद भी कैलाश चंद्र यादव बहुत अच्छी हॉकी खेलते थे.
कैलाश का परिवार ने आज भी उनके 62 साल पुराने पासपोर्ट को संभाल कर रखा है. 1955 में कैलाश पाकिस्तान के खिलाफ मैच खेलने के लिए पाकिस्तान गए और पाकिस्तान हराकर आए थे. रिकॉर्ड बुक में कैलाश चंद्र के बारे में ज्यादा कुछ तो नहीं है लेकिन उस वक्त के राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और कई राजनेताओं के साथ यह तस्वीर बताती है के कैलाश चंद्र यादव कोई छोटे खिलाड़ी नहीं थे.
प्रधानमंत्री कार्यालय से मिले दो हजार रुपये के चैक का विवरण
कैलाश चंद्र आयकर विभाग में नोटिस सर्वर के रूप में काम करते थे लेकिन इस नौकरी जीतना वेतन मिलता था उसमें परिवार चलना मुश्किल था. 80 के दशक में कैलाश चंद्र यादव की गरीबी के बारे में मीडिया में खबरें छपीं और डॉक्यूमेंट्री भी बनी. मीडिया रिपोर्ट को संज्ञान लेते हुए उस वक्त के प्रधानमंत्री की तरफ से कैलाश चंद्र यादव को दो हज़ार रुपये का चेक मिला था लेकिन उसके बाद सब उन्हें भूल गए.
2002 में बीमारी के चलते कैलाश चंद्र यादव का देहांत हो गया. उनकी 85 साल की पत्नी आज बीमार हैं और कुछ दिन पहले अस्पताल से डिस्चार्ज हुई हैं. कैलाश चंद्र तो इस दुनिया से चले गए लेकिन गरीबी ने उनके परिवार पीछा नहीं छोड़ा. आज भी उनकी पत्नी अपने बेटे के साथ बुराड़ी के एक कमरे के किराये के मकान पर रहती हैं. पेंशन के रूप में जितना पैसा मिलता है उससे घर का खर्च मुश्किल से निकल पाता है.
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