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This Article is From Oct 23, 2013

भारत ने चीन के साथ सीमा सुरक्षा सहयोग पर किए दस्तखत

भारत-चीन के प्रधानमंत्री

बीजिंग:

भारत और चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सेना के बीच टकराव और सीमा पर तनाव को टालने के लिए आज एक व्यापक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके साथ ही दोनों पक्षों ने फैसला किया कि कोई भी पक्ष दूसरे पक्ष पर हमला करने के लिए सैन्य क्षमताओं का इस्तेमाल नहीं करेगा और न ही सीमा पर गश्ती दलों का पीछा करेगा।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और प्रधानमंत्री ली क्विंग के बीच ग्रेट हॉल आफ दी पीपुल में हुई गहन वार्ता के बाद सीमा रक्षा सहयोग समझौते (बीडीसीए) पर आज हस्ताक्षर किए गए।

इस वर्ष अप्रैल में लद्दाख की देपसांग वैली में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के दखल के साथ ही कई मौकों पर चीनी घुसपैठ की घटनाओं से संबंधों में उपजे तनाव की पृष्ठभूमि में यह समझौता हुआ है ।

दोनों पक्षों के बीच प्रतिनिधिमंडल स्तर की दो घंटे से अधिक समय तक चली वार्ता और सिंह तथा ली के बीच इस वर्ष हुई दूसरी बातचीत के साथ ही कुल मिलाकर दोनों देशों के बीच नौ समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, जिनमें बीडीसीए तथा सीमा पारीय नदियों पर आपसी सहयोग को मजबूत करने संबंधी समझौता भी शामिल है ।

लेकिन जैसा की संभावना थी, वीजा व्यवस्था का उदारीकरण किए जाने पर कोई समझौता नहीं हुआ हालांकि चीनी पक्ष इस विषय में समझौता करने का प्रबल इच्छुक था, लेकिन भारत ने चीनी दूतावास द्वारा अरुणाचल प्रदेश के दो भारतीय तीरंदाजों को नत्थी वीजा दिए जाने के मुद्दे पर उभरे विवाद की पृष्ठभूमि में अपने कदम पीछे खींच लिए।

दोनों नेताओं ने मीडिया को बताया कि एक कैलेंडर वर्ष में उनकी दूसरी मुलाकात इस तथ्य के मद्देनजर काफी मायने रखती है कि 1954 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और चाउ एन लाइ के बीच हुई मुलाकात के बाद यह इस प्रकार की पहली मुलाकात है। उन्होंने कहा कि यह मुलाकात दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी के महत्व को दर्शाती है और आज हुए समझौते इन संबंधों को नया आयाम देंगे। रक्षा सचिव आर के माथुर और पीएलए के डिप्टी चीफ ऑफ जनरल स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल सुन जियांग्यू द्वारा हस्ताक्षरित चार पन्नों के बीडीसीए में दस उपबंध हैं, जो चार हजार किलोमीटर लंबी एलएसी पर शांति, समरसता तथा स्थिरता बनाए रखने का प्रावधान करते हैं। इसमें यह भी दोहराया गया है कि कोई भी पक्ष, दूसरे पक्ष के खिलाफ अपनी सैन्य क्षमताओं का इस्तेमाल नहीं करेगा और किसी भी सैन्य क्षमता का इस्तेमाल किसी दूसरे पक्ष पर हमले के लिए नहीं किया जाना चाहिए।

संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में सिंह ने कहा कि दोनों देशों ने इस बात पर सहमति जतायी कि सीमाओं पर शांति और समरसता भारत और चीन के संबंधों में विकास का आधार होना चाहिए। उन्होंने कहा, हम भारत के साथ भारत-चीन सीमा सवाल पर एक निष्पक्ष , तार्किक और दोनों पक्षों को स्वीकार्य समाधान तलाशने की दिशा में आगे बढ़ते हुए भी इसे केंद्र में रखेंगे। यह हमारा रणनीतिक पैमाना होगा।

एलएसी के आसपास सैन्य क्षेत्र में आपसी विश्वास बहाली उपायों का क्रियान्वयन जारी रखने की प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए बीडीसीए में दोनों देशों के सैन्य मुख्यालयों के बीच हाटलाइन की स्थापना पर विचार करने की सहमति भी जताई गई है। इसके साथ ही आपसी सलाह मशविरे से विशेष प्रबंध किए जाने का भी फैसला किया जाएगा। दोनों पक्षों ने इस बात पर भी सहमति जताई कि वे उन क्षेत्रों में एक-दूसरे के गश्ती दलों का पीछा नहीं करेंगे, जिनके बारे में एलएसी पर कोई आम समझ नहीं है और यदि कोई शंकाग्रस्त स्थिति होती है तो स्पष्टीकरण मांगा जा सकता है और यह स्थापित तंत्र के जरिये होगा।

गौरतलब है कि एलएसी के बारे में अवधारणाओं में भिन्नता तथा स्पष्टता के अभाव को दोनों पक्षों द्वारा घुसपैठ के लिए मुख्य कारण माना जाता रहा है। लद्दाख के देप्सांग वैली में पीएलए की घुसपैठ तीन सप्ताह तक जारी रही थी और उसके बाद चीनी सैनिक अपनी मूल स्थितियों में लौट गए थे।

भारत और चीन ने यह सहमति भी जतायी कि यदि उनके सैनिक उन इलाकों में ‘आमने-सामने’ आ जाते हैं जहां एलएसी के बारे में कोई आम समझ नहीं है तो दोनों पक्ष अधिकतम संयम बरतेंगे, किसी भड़काऊ कार्रवाई से बचेंगे, दूसरे पक्ष के खिलाफ धमकी या बल प्रयोग नहीं करेंगे, एक-दूसरे के साथ शिष्टाचार से पेश आएंगे और आपसी गोलीबारी या सशस्त्र संघर्ष से बचेंगे।

समझौता कहता है कि दोनों पक्षों को इस समझौते को एलएसी के संरेखण तथा सीमा के सवाल पर भी बिना किसी पूर्वाग्रह के अपने अपने स्तर पर लागू करना होगा।

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