नई दिल्ली:
जमाअत इस्लामी हिन्द ने अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम को कमजोर किए जाने से रोकने के प्रयासों का समर्थन किया है. जमाअत इस्लामी हिन्द के मुख्यालय में आयोजित मासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस को सम्बोधित करते हुए जमाअत के अमीर (अध्यक्ष) मौलाना सैयद जलालुद्दीन उमरी ने कहा कि जमाअत उन तमाम चीजों की सैद्धांतिक स्तर पर विरोध करती है जो समाज के कमजोर वर्गों के संवैधानिक एवं कानूनी सुरक्षा को प्रभावित करती है.
उन्होंने कहा कि कमजोर वर्गों की सुरक्षा के सिलसिले में किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि जमाअत महसूस करती है कि सुप्रीम कोर्ट का हालिया आदेश अधिनियम में दी गई व्यवस्था में कमी का कारण बनेगा, कानून के भय को कम करेगा और नतीजतन दलितों और आदिवासियों के खिलाफ हिंसा में बढ़ोत्तरी होगी. जमाअत उम्मीद करती है कि लोगों की चिंता को दूर करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय अपने हालिया आदेश पर समीक्षा करेगी.
जमाअत के अध्यक्ष ने कहा कि एस सी/एस टी अधिनियम के सिलसिले में अदालत के इस आदेश से चिंता होती है कि अधिनियम में इस तब्दीली से दलित वर्गों को अपेक्षित न्याय नहीं मिल सकेगा. जमाअत महसूस करती है कि अगर भारत सरकार सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करती और इस पर पहले ही समीक्षा की अपील दाखिल कर देती तो देश का जो जानी-माली नुकसान हुआ है उसको बचाया जा सकता था. जमाअत भारत बंद और विरोध प्रदर्शन के दौरान मृत्यु पर अत्यंत दुख प्रकट करती है और किसी भी तरह की हिंसा और संपत्ति की बर्बादी की निंदा करती है.
जमाअत के अध्यक्ष ने कहा कि जामाअत एस सी/एस टी के जाएज हक के लिए संघर्ष का समर्थन करते हैं और इसके लिए षांतिपूर्ण विरोध को उनका संवैधानिक अधिकार समझते हुए उसका समर्थन करते हैं.
कॉन्फ्रेंस के आरंभ में जमाअत के महासचिव मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने कहा कि यह बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि विगत कुछ सालों में दलितों, आदिवासियों, कमजोर वर्गों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ जुल्म बढ़े हैं. पश्चिमी बंगाल और बिहार में हालिया संप्रदायिक हिंसा की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि धार्मिक स्थलों पर हमले और उनकों नुकसान पहुंचाना सांप्रदायिक और असमाजिक तत्वों का पारंपरिक तरीका रहा है. वास्तविकता यह है कि सांप्रदायिक राजनीतिक नेता और फासीवादी शक्तियां संप्रदाय और जाति के आधार पर समाज को ध्रुवीकृत कर चुनावी लाभ लेना चाहते हैं.
उन्होंने कहा कि कमजोर वर्गों की सुरक्षा के सिलसिले में किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि जमाअत महसूस करती है कि सुप्रीम कोर्ट का हालिया आदेश अधिनियम में दी गई व्यवस्था में कमी का कारण बनेगा, कानून के भय को कम करेगा और नतीजतन दलितों और आदिवासियों के खिलाफ हिंसा में बढ़ोत्तरी होगी. जमाअत उम्मीद करती है कि लोगों की चिंता को दूर करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय अपने हालिया आदेश पर समीक्षा करेगी.
जमाअत के अध्यक्ष ने कहा कि एस सी/एस टी अधिनियम के सिलसिले में अदालत के इस आदेश से चिंता होती है कि अधिनियम में इस तब्दीली से दलित वर्गों को अपेक्षित न्याय नहीं मिल सकेगा. जमाअत महसूस करती है कि अगर भारत सरकार सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करती और इस पर पहले ही समीक्षा की अपील दाखिल कर देती तो देश का जो जानी-माली नुकसान हुआ है उसको बचाया जा सकता था. जमाअत भारत बंद और विरोध प्रदर्शन के दौरान मृत्यु पर अत्यंत दुख प्रकट करती है और किसी भी तरह की हिंसा और संपत्ति की बर्बादी की निंदा करती है.
जमाअत के अध्यक्ष ने कहा कि जामाअत एस सी/एस टी के जाएज हक के लिए संघर्ष का समर्थन करते हैं और इसके लिए षांतिपूर्ण विरोध को उनका संवैधानिक अधिकार समझते हुए उसका समर्थन करते हैं.
कॉन्फ्रेंस के आरंभ में जमाअत के महासचिव मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने कहा कि यह बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि विगत कुछ सालों में दलितों, आदिवासियों, कमजोर वर्गों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ जुल्म बढ़े हैं. पश्चिमी बंगाल और बिहार में हालिया संप्रदायिक हिंसा की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि धार्मिक स्थलों पर हमले और उनकों नुकसान पहुंचाना सांप्रदायिक और असमाजिक तत्वों का पारंपरिक तरीका रहा है. वास्तविकता यह है कि सांप्रदायिक राजनीतिक नेता और फासीवादी शक्तियां संप्रदाय और जाति के आधार पर समाज को ध्रुवीकृत कर चुनावी लाभ लेना चाहते हैं.
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