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This Article is From Sep 17, 2016

मेडल जीतने के बाद ही लोगों से हमें प्यार मिला, रियो से पहले सिर्फ NDTV ने हमारी बात की : दीपा मलिक

मेडल जीतने के बाद ही लोगों से हमें प्यार मिला, रियो से पहले सिर्फ NDTV ने हमारी बात की : दीपा मलिक
रियो पैरालिंपिक्स में रजत पदक जीतने वाली एथलीट दीपा मलिक
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Summary is AI generated, newsroom reviewed.
ठान लिया था अपनी अपंगता को अपनी पहचान नहीं बनने दूंगी : दीपा मलिक
ओलिंपिक मेडल जीतने के बाद जीवन बदल गया है : साक्षी मलिक
लोग पहले पूछा करते थे कि यह जिमनास्टिक होता क्या है : दीपा कर्मकार
नई दिल्ली: एनडीटीवी इंडिया के विशेष कार्यक्रम 'यूथ फॉर चेंज' के छठे सत्र 'खेलो इंडिया खेलो' में खेल-कूद के प्रति युवाओं में आकर्षण पर चर्चा के दौरान एथलीटों ने क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों को उतनी तवज्जो नहीं मिलने को लेकर दुख जताया. रियो पैरालिंपिक में रजत पदक विजेता पैरा एथलीट दीपा मलिक शिकायती लहजे में कहती हैं कि मेडल जीतने के बाद ही दूसरे लोगों से हमें प्यार एवं स्नेह मिला. रियो जाने से पहले सिर्फ एक को छोड़कर कोई दूसरा चैनल हमारे साथ खड़ा नहीं था. मैं एनडीटीवी को जागरूकता फैलाने और सपोर्ट देने के लिए धन्यवाद देती हूं.

दीपा मलिक ने कहा कि पैरालिंपिक को लेकर रूचि और जागरूकता न के बराबर है. लगने लगा था कि दीपा का जीवन एक कमरे में ख़त्म हो जाएगा, लेकिन मैंने ठान लिया था अपनी अपंगता को अपनी पहचान नहीं बनने दूंगी. दीपा बताती हैं, '39 साल की उम्र में पहली बार भाला, गोला पकड़ा. कौन कहता है कि खेलों से आजीविका नहीं हो सकती.'

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'जब रियो से लौटी तो पूरा खाप मुझे रिसीव करने आया'
इसके साथ ही दीपा मलिक कहतीं हैं, 'लोग कहते हैं कि हरियाणा में महिलाओं को खेल में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहन नहीं मिलता. मैं उस बारे नहीं जानती. लेकिन जब मैं रियो से लौटी तो मेरे गांव के 200 लोग, पूरा का पूरा खाप मुझे रिसीव करने आया. उन्होंने मुझे गांव का मान बढ़ाने के लिए गदा भेंट की.' वह बताती हैं, 'यह सम्मान पुरुषों को ही दिया जाता है. ऐसे में मुझे, एक अपंग महिला को यह (सम्मान) देना बड़ी बात हैं. जीवन के अखाड़े में दम दिखाने के लिए खाप ने सम्मान दिया.'

अकेले रियो गई थी, जब लौटी तो पूरे देश को साथ पाया
वहीं रियो ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली महिला पहलवान साक्षी मलिक कहती हैं कि हमारे देश में खेल सुविधाओं की भारी कमी है. मैंने जब कुश्ती खेलना शुरू किया, तो बहुत कम लड़कियां थीं. वह कहती हैं, 'मेडल जीतने के बाद जीवन बदल गया है. मैं अकेले गई थी और जब लौटी तो पूरे देश को साथ पाया. यह बेहद खास ऐहसास था.'



लोग पहले पूछते थे जिमनास्टिक होता क्या है
ओलिंपिक में बेहद शानदार प्रदर्शन करने वाली जिमनास्ट दीपा कर्मकार लोगों में इस खेल के प्रति जागरूकता को लेकर कहती हैं, 'लोग पहले मुझसे पूछा करते थे कि यह जिमनास्टिक होता क्या है, क्या यह सर्कस से जुड़ा कुछ है? और जब मैंने ओलिंपिक्स में स्थान पक्का किया, तब मुझ पर मेडल लाने का बहुत दबाव था. हालांकि मैं यह भूल कर बस अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश की.'


दीपा साथ ही कहती हैं, 'खिलाड़ी बुद्धिमान होते हैं, उन्हें (परीक्षा में) अच्छे अंकों के लिए खास मेहनत की जरूरत नहीं होती. मैं रियो से लौटने के अगले दिन परीक्षा देने बैठ गई थी. मुझे 80% तो नहीं, लेकिन 60-70%  अंक मिले.'

दीपा कर्मकार के कोच विश्वेश्वर नंदी ने कहा कि हमें आधारभूत सुविधाओं की बहुत सख़्त ज़रूरत है. जिम्नास्टिक्स में हमने चीन को भी चुनौती दी. तो कुश्ती कोच मंदीप सिंह कहते हैं कि हरियाणा कुश्ती में पहले से आगे रहा है. आज कल हर दिन नई लड़कियां सीखने आ रही हैं. साक्षी की कामयाबी ने कई लड़कियों को प्रोत्साहित किया है. साक्षी की कामयाबी से रोज़ कुश्ती में नई लड़कियां आ रही हैं.


वहीं बॉलीवुड अभिनेता और आने वाली एक फिल्म में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का किरदार निभाने वाले सुशांत सिंह राजपूत का कहना है कि ऐसा नहीं कि देश में सिर्फ़ क्रिकेट ही पॉपुलर है. 1950 में फुटबॉल बहुत लोकप्रिय था. क्रिकेट की पॉपुलेरिटी इसलिए है, क्योंकि उसकी गवर्निंग बॉडी मजबूत है. हर खेल में क्रिकेट जैसे मैनेजमेंट की ज़रूरत है.

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