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This Article is From Feb 15, 2022

'5 साल, 28 बैंक, 23000 करोड़ का कर्ज' : ABG Shipyard ने कैसे किया 'भारत का सबसे बड़ा बैंक घोटाला'

एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड, एबीजी समूह की प्रमुख कंपनी है. यह कंपनी गुजरात के दाहेज और सूरत में पानी के जहाजों के निर्माण और उनके मरम्मत का काम करती है. एबीजी शिपयार्ड लिमिडेट की स्थापना 1985 में हुई.

'5 साल, 28 बैंक, 23000 करोड़ का कर्ज' : ABG Shipyard ने कैसे किया 'भारत का सबसे बड़ा बैंक घोटाला'
सीबीआई ने ऋषि अग्रवाल सहित अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया (प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली:

देश के बैंकिंग इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला सामने आया है. इसने नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे भगोड़े कारोबारियों के 'घोटाले' को भी पीछे छोड़ दिया है. हम बात कर रहे हैं एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड (ABG Shipyard) और उसके निदेशकों ऋषि अग्रवाल, संथानम मुथास्वामी और अश्विनी कुमार द्वारा 28 बैंकों के साथ की गई 22,842 करोड़ रुपये की कथित धोखाधड़ी की. सीबीआई (CBI) ने देश के सबसे बड़े बैंक धोखाधड़ी मामले में एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड और उसके तत्कालीन अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक ऋषि कमलेश अग्रवाल सहित अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है. विपक्ष सवाल उठा रहा है कि कंपनी और उसके अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने में इतनी देरी क्यों हुई. 

क्या है ABG Shipyard और कैसे हुई धोखाधड़ी 
एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड, एबीजी समूह की प्रमुख कंपनी है. यह कंपनी गुजरात के दाहेज और सूरत में पानी के जहाजों के निर्माण और उनके मरम्मत का काम करती है. एबीजी शिपयार्ड लिमिडेट की स्थापना 1985 में हुई. वह अब तक 165 से ज्यादा जहाज बना चुकी है. एक समय में, भारत की सबसे बड़ी निजी शिपयार्ड कंपनी अब कर्ज में डूबी डिफॉल्टर कंपनी हो गई है. 

स्टेट बैंक की शिकायत के मुताबिक, कंपनी ने बैंक से 2,925 करोड़ रुपये, आईसीआईसीआई बैंक से 7,089 करोड़ रुपये, आईडीबीआई बैंक से 3,634 करोड़ रुपये, बैंक ऑफ बड़ौदा से 1,614 करोड़ रुपये, पंजाब नेशनल बैंक से 1,244 करोड़ रुपये, इंडियन ओवरसीज बैंक से 1,228 करोड़ रुपये का कर्ज लिया. इन पैसों का इस्तेमाल उन मदों में नहीं हुआ जिनके लिए बैंक ने इन्हें जारी किया था बल्कि दूसरे मदों में इसे लगाया गया.

कंपनी को 28 बैंकों और वित्तीय संस्थानों से ऋण सुविधाएं मंजूर की गई थीं, जिनमें एसबीआई का एक्सपोजर 2468.51 करोड़ था.

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डेढ़ साल की 'जांच' के बाद FIR
एसबीआई ने पहली शिकायत 8 नवंबर 2019 को की. सीबीआई ने 12 मार्च 2020 को इस पर कुछ स्पष्टीकरण मांगा. अगस्त 2020 में बैंक ने नई शिकायत दर्ज कराई. डेढ़ साल से अधिक समय तक जांच-पड़ताल करने के बाद, सीबीआई ने 7 फरवरी, 2022 को मामले में प्राथमिकी दर्ज की. 

पांच साल चला धोखाधड़ी का सिलसिला
अर्नेस्ट एंड यंग द्वारा 18 जनवरी 2019 को सौंपी गई फोरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट (अप्रैल 2012 से जुलाई 2017) से पता चला कि आरोपियों ने आपस में मिलीभगत की और गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम दिया. इसमें पूंजी का डायवर्जन, अनियमितता, आपराधिक विश्वासघात और जिस काम के लिए बैंकों से पैसे लिए गए वहां उनका इस्तेमाल न करके दूसरे उद्देश्य में लगाना शामिल है.

फॉरेंसिक ऑडिट से पता चला है कि साल 2012 से 201717 के बीच आरोपियों ने कथित रूप से मिलीभगत की और अवैध गतिविधियों को अंजाम दिया, जिसमें धन का दुरुपयोग और आपराधिक विश्वासघात शामिल है. यह सीबीआई द्वारा दर्ज सबसे बड़ा बैंक धोखाधड़ी का मामला है.

कब एनपीए हुआ खाता
भारतीय स्टेट बैंक कह रहा है कि 2013 में ही पता चल गया था कि इस कंपनी का लोन NPA हो गया था. स्टेंट बैंक आफ इंडिया ने अपने बयान में लिखा है कि नवंबर 2013 में कंपनी का लोन NPA हो जाने के बाद इस कंपनी को उबारने के कई प्रयास किए गए, लेकिन सफलता नहीं मिली. पहले मार्च 2014 में इसके ऋण खाते को पुनर्गठित किया गया, लेकिन जहाजरानी सेक्टर में अब तक की सबसे भयंकर गिरावट आने के काऱण इसे उबारा नहीं जा सका. उसके बाद जुलाई 2016 में इसके खाते को फ़िर से NPA घोषित कर दिया गया. दो साल बाद अप्रैल 2018 में अर्नस्ट एंड यंग नाम की एक एजेंसी नियुक्त की गई.

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