नई दिल्ली:
गृहमंत्रालय इशरत जहां मामले से जुड़े सभी दस्तावेज संभवत: केन्द्रीय जांच ब्यूरो को नहीं सौंपेगा।
सरकारी सूत्रों ने बताया कि मंत्रालय मामले से जुड़े दस्तावेजों को लेकर अदालत से विशेष अधिकार मांग सकता है।
केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने सभी दस्तावेज मुहैया कराने का आग्रह गृह मंत्रालय से किया था, जिसे गृह मंत्रालय ने कानून मंत्रालय के विचारार्थ भेजा और राय पूछी कि क्या मांगी गई गोपनीय सूचना मामले की जांच के लिए प्रासंगिक है। गृह मंत्रालय इस संबंध में सीबीआई को जवाब भेजेगा।
सीबीआई ने गृह मंत्रालय से आग्रह किया था कि 2009 में उपसचिव आरवीएस मणि द्वारा उच्च न्यायालय में दो महीने के अंतराल पर इशरत को लेकर विरोधाभासी बयान वाले जो हलफनामे दाखिल किए गए, उनसे जुड़ी फाइलें मुहैया कराई जाएं।
आवश्यकता पड़ी तो गृह मंत्रालय गोपनीय दस्तावेजों को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है और कह सकता है कि इस जानकारी का खुलासा करना या साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल करना देश के सुरक्षा हितों के साथ समझौता हो सकता है इसलिए उसे दस्तावेजों को लेकर विशेष अधिकार मिलने चाहिए। इस मुद्दे पर हालांकि कोई अंतिम फैसला नहीं किया गया है।
6 अगस्त 2009 को दाखिल हलफनामे में इशरत और तीन अन्य को आतंकवादी बताया गया, जबकि 30 सितंबर 2009 को दाखिल हलफनामे में दावा किया गया कि इस बात के पक्के साक्ष्य नहीं हैं कि इशरत आतंकवादी थी।
सरकारी सूत्रों ने बताया कि मंत्रालय मामले से जुड़े दस्तावेजों को लेकर अदालत से विशेष अधिकार मांग सकता है।
केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने सभी दस्तावेज मुहैया कराने का आग्रह गृह मंत्रालय से किया था, जिसे गृह मंत्रालय ने कानून मंत्रालय के विचारार्थ भेजा और राय पूछी कि क्या मांगी गई गोपनीय सूचना मामले की जांच के लिए प्रासंगिक है। गृह मंत्रालय इस संबंध में सीबीआई को जवाब भेजेगा।
सीबीआई ने गृह मंत्रालय से आग्रह किया था कि 2009 में उपसचिव आरवीएस मणि द्वारा उच्च न्यायालय में दो महीने के अंतराल पर इशरत को लेकर विरोधाभासी बयान वाले जो हलफनामे दाखिल किए गए, उनसे जुड़ी फाइलें मुहैया कराई जाएं।
आवश्यकता पड़ी तो गृह मंत्रालय गोपनीय दस्तावेजों को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है और कह सकता है कि इस जानकारी का खुलासा करना या साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल करना देश के सुरक्षा हितों के साथ समझौता हो सकता है इसलिए उसे दस्तावेजों को लेकर विशेष अधिकार मिलने चाहिए। इस मुद्दे पर हालांकि कोई अंतिम फैसला नहीं किया गया है।
6 अगस्त 2009 को दाखिल हलफनामे में इशरत और तीन अन्य को आतंकवादी बताया गया, जबकि 30 सितंबर 2009 को दाखिल हलफनामे में दावा किया गया कि इस बात के पक्के साक्ष्य नहीं हैं कि इशरत आतंकवादी थी।
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