प्रवासी मजदूरों की घर वापसी की इससे मार्मिक तस्वीर शायद पहले देखने में ना आई हो. बालाघाट का एक मजदूर जो कि हैदराबाद में नौकरी करता था, 800 किलोमीटर दूर से एक हाथ से बनी लकड़ी की गाड़ी में बैठा कर अपनी 8 माह की गर्भवती पत्नी के साथ अपनी 2 साल की बेटी को लेकर गाड़ी खींचता हुआ बालाघाट पहुंच गया. कुछ दूर तक तो इस मजदूर ने अपनी बेटी को गोद में चलना शुरू किया था, लेकिन रास्ता लंबा होने के कारण रास्ते में ही लकड़ी और बांस के टुकड़े बीन उनसे एक गाड़ी बनाई और उसे खींचता हुआ अपनी मासूम बेटी को लिए वह 800 किलोमीटर दूर पैदल चला आया.
रोड पर छोटी-सी गाड़ी में 2 साल की मासूम अनुरागिनी को खींचता हुआ चला आ रहा रामू नाम का यह मजदूर हैदराबाद से तपती दोपहरी में 17 दिन पैदल चल बालाघाट पहुंचा है. साथ में गर्भवती पत्नी भी है जिले की रजेगांव सीमा पर जवानों ने इस दंपति को आते देखा. मासूम बिटिया के पैरों पर चप्पल तक ना थी पुलिस ने उसे खाने को बिस्किट और चप्पल दी और फिर यहां से उसके घर तक एक निजी गाड़ी का बंदोबस्त भी किया. मजदूर ने बताया कि वह घर वापसी के लिए तमाम मिन्नतें कर जब थक गया तो वह पैदल ही चल पड़ा.
बालाघाट का एक #मजदूर जो कि हैदराबाद में नौकरी करता था 800 किलोमीटर दूर से एक हाथ से बनी लकड़ी की गाड़ी में बैठा कर अपनी 8 माह की गर्भवती पत्नी के साथ अपनी 2 साल की बेटी को लेकर गाड़ी खींचता हुआ बालाघाट पहुंच गया @ndtvindia @ndtv #modispeech #selfreliant #Covid_19 pic.twitter.com/0mGvMmsWul
— Anurag Dwary (@Anurag_Dwary) May 13, 2020
लांजी के एसडीओपी नितेश भार्गव ने कहा, ''हमें बालाघाट की सीमा पर यह मजदूर मिला जो अपनी पत्नी धनवंती के साथ हैदराबाद से पैदल चला आ रहा था. साथ में 2 साल की मासूम बेटी भी थी जिसे वह हाथ की बनी गाड़ी में खींचकर यहां तक ले आया. हमने उसकी बेटी को चप्पल दी खाने की बिस्किट भी दिए और सीमा से लगे उसके गांव तक एक निजी गाड़ी से भेज दिया है.''
प्रवासी मजदूरों की तकलीफ देखते ही बनती है. रोजगार नहीं, खाने को जरिया नहीं, आने का साधन नहीं, ऐसे में कैसे भी घर पहुंच जाएं यह मजबूरी उन्हें सैकड़ों किलोमीटर सड़कें नापने मजबूर कर रही है.'' (बालाघाट से सचिन पांडे के इनपुट के साथ)
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