ग्राउंड रिपोर्ट : भूमि अधिग्रहण कानून को कोसता अम्बाला का कौंला गांव

अम्बाला : भूमि अधिग्रहण के कानून में फेरबदल को लेकर चर्चा गर्म है। लेकिन हरियाणा के अम्बाला में कौंला गांव के किसानों को बेहतर मुआवज़े के वादों और दावों से यकीन उठ चुका है। प्रदेश में 10 साल राज करने वाली कांग्रेस सरकार अपने भूमि अधिग्रहण कानून को देश में अव्वल बताती रही और किसानों को ठगती रही।

जिस ज़मीन पर कभी फसलें लहलहाती थीं वह आज बंजर पड़ी है। कौलां गांव के बेबस किसान अपनी किस्मत को कोसते हैं और हुड्डा सरकार को बददुआएं देते हैं। गांव की 319 एकड़ ज़मीन हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण(हुड्डा) ने अम्बाला में नए सेक्टर बनाने के लिए 2009 में अधिग्रहित कर ली। छह साल बीत गए, लेकिन सेक्टर का नामो-निशान नहीं। किसानों का आरोप सही लगता है, सरकार ने ज़मीन बिल्डरों के लिए हथिया ली।

किसान बुध राम कहते हैं, 'ये ज़मीन वह है जिसमें हम 3-4 फसलें ले लेते थे। मिलिट्री की वजह से ज़मीन पहले ही कम थी (1857 के आस-पास अंग्रेज सरकार ने बेहद कम मुआवज़े पर किसानों की 1400 एकड़ ज़मीन हथिया ली थी) और परिवार बड़े, जानवर रखकर और खेती-बाड़ी से गुज़ारा करते थे।' वह कहते हैं कि ज़मींदार किसी भी कीमत पर देने को तैयार नहीं थे, अगर सरकार हमारे साथ ज़बरदस्ती नहीं करती तो लोगों का कोई विचार नहीं था ये ज़मीन देने का।'

सरकार ने एक तो ज़मीन ज़बरदस्ती ली, ऊपर से ज़ुल्म ये कि कीमत भी 20 साल पुरानी लगा दी. एक एकड़ के सिर्फ 8 लाख रुपये, जबकि बाजार कीमत 50 से 70 लाख के बीच थी। किसानों ने विरोध किया तो सरकार ने समिति बना कर मामला रफा दफा कर दिया।

कौलां गांव के पूर्व सरपंच कुलविंदर सिंह बताते हैं कि मुख्यमंत्री तो भूपिंदर सिंह हुड्डा थे, हमारे गांव से 200 आदमी गए थे उनसे मिलने, जो हमारा मांगपत्र था उन्होंने एक बार देखा भी नहीं, बस पूछा कैसे आए हो, हमने बताया कि ज़मीन के सिलसिले में, तो फाइल देकर आगे बढ़ गए।'

कुलविंदर कहते हैं कि आज पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह जो ये बात कह रहे हैं कि मोदी सरकार ने बिल में से आत्मा निकाल ली, जब इनका अपना टाइम था तो ये पूछते नहीं थे, आज बड़ी-बड़ी बातें करते हैं।'

सरकार से निराशा हाथ लगी तो किसान कोर्ट गए और मुआवजा बढ़ गया, लेकिन वहां भी सरकार बाजार मूल्य देने को राज़ी नहीं हुई। अब केस हाई कोर्ट में चल रहा है। नई सरकार से भी कुछ ख़ास उम्मीद नहीं है।

65 साल के किसान निदान सिंह की सुनिए, 9 एकड़ ज़मीन चली गई, सिर्फ तीन एकड़ के सहारे परिवार चल रहा है। वह कहते हैं कि भूमि अधिग्रहण है न जो अंग्रेज़ों का इसे बिल्‍कुल ख़त्म करना चाहिए. लेकिन ये बताने पर कि अब तो नया कानून बन गया है, 2013 में कांग्रेस ने और अब मोदी सरकार नया कानून लाई है, निदान सिंह कहते हैं,' मोदी ने कौन सा ठीक कर दिया, वह कोई संन्यासी थोड़े हैं, अपनी बड़ाई के लिए ये सब कर रहे हैं कि मैं मालिक हूं देश का दिल में कुछ बात है और बहाने कुछ और हैं।'

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1894 में अंग्रेज़ों के बनाए गए भूमि अधिग्रहण कानून को सुधारने में सवा सौ साल लग गए. लेकिन क्या अब भी किसान को उसका हक़ मिलेगा. कौंला गांव का हश्र देखकर उम्मीद कम लगती है।